कानून के तहत, सभी के साथ सेम बीहेवियर होना चाहिए। लेकिन कई बार अलग-अलग सिचुऎशन्स के चलते कानून में भी फर्क करना पड़ता है। जैसे भारत में पुरुषों और महिलाओं के लिए डाइवोर्स लेने की प्रोसेस, तरीके और शर्तों में अंतर है। उदाहरण के लिए, हिंदू मैरिज एक्ट में दोनों पार्टनर्स भरण-पोषण के लिए दावा कर सकते हैं। वहीं, स्पेशल मैरिज एक्ट में केवल वाइफ ही यह दावा करने की हकदार है।
तो इस लेख में देखते है कि अगर पुरुष को मैरिड लाइफ में अपनी वाइफ से प्रोब्लेम्स है, तो उनके क्या अधिकार है। अगर हस्बैंड शारीरिक या ,मानसिक रूप से वाइफ से परेशान है, तो वह मुआवज़े की मांग कर सकता है। जरुरत पड़ने पर पुरुष कोर्ट से डाइवोर्स ले सकता है। हस्बैंड गुजारा भत्ता, भरण-पोषण और बच्चे की कस्टडी के लिए भी कोर्ट से मदद ले सकता है।
डाइवोर्स लेने के लिए आधार:-
यह कुछ आधार है, जिनके तहत एक हस्बैंड आपसी सहमति के बिना भी अपनी वाइफ से डाइवोर्स फाइल कर सकता है –
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(1) क्रूरता –
अगर वाइफ अपने हस्बैंड पर शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक या किसी अन्य प्रकार की क्रूरता करती है। तो हस्बैंड को डाइवोर्स फाइल करने का अधिकार है। साँस को थप्पड़ मारना, ससुराल वालों से अलग रहने की ज़िद करना, हस्बैंड के बैंक अकाउंट से फ़ालतू खर्चा करना और हस्बैंड का परित्याग करना भी क्रूरता के तहत आता है।
(2) परित्याग –
अगर वाइफ बिना किसी वैलिड रीज़न के हमेशा के लिए अपने हस्बैंड को छोड़ देती है। तो यह भी डाइवोर्स का कारण बन सकता है।
(3) अडल्ट्री –
अगर वाइफ शादी के बाद अपने हस्बैंड के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ सेक्सुअल रिलेशन्स बनाती है, तो उसे अडल्ट्री माना जाता है।
(4) धर्म परिवर्तन –
अगर वाइफ किसी अन्य धर्म में परिवर्तित हो जाती है, जिस धर्म का हिस्सा वह जन्म से नहीं थी।
(5) संसार का त्याग-
अगर वाइफ सन्यासी बन जाती है। मतलब जिसने संसार की सभी चीजों से मोह माया त्याग दी हो।
(6) मानसिक विकार –
अगर वाइफ किसी मानसिक रोग या किसी भी प्रकार के पागलपन से पीड़ित है। जिससे वह रोज़ के नार्मल काम नहीं कर पा रही है।
(7) यौन रोग से संक्रमित –
अगर वाइफ एचआईवी/एड्स, सूजाक या कुष्ठ रोग या इसके अलावा किसी और फैलने वाले यौन रोग से पीड़ित है।
(8) सात साल से लापता –
अगर वाइफ सात साल या उससे ज्यादा समय से लापता है। मतलब उसे सात साल तक देखा या सुना नहीं जाता है, तो उसे मृत मान लिया जाता है।
इनमे से किसी भी आधार पर कोर्ट द्वारा डाइवोर्स की डिक्री ली जा सकती है।
भरण-पोषण से मना करने का अधिकार:-
कई केसिस में हस्बैंड अपनी वाइफ को भरण-पोषण देने से भी मना कर सकता है। इसके आधार हैं-
(1) अगर वाइफ अपने हस्बैंड को बिना किसी रीज़न के छोड़ देती है।
(2) अगर वाइफ अडल्ट्री या हस्बैंड के साथ क्रूरता करती है।
(3) अगर वाइफ के पास अपने भरण-पोषण के लिए पर्याप्त साधन हों। मतलब, अगर वाइफ अपना खर्च उठाने में सक्षम है, तो उसे हस्बैंड से इंटरिम मेंटेनेंस भी नहीं मिलेगा।
(4) अगर वाइफ की दूसरी शादी हो जाती है।
(5) अगर हस्बैंड खुद की जरूरतों के लिए और कार्यवाही के लिए, कोर्ट की फीस भरने में असमर्थ है। लेकिन उसकी वाइफ फायनेंशियली इंडिपेंडेंट है। तब भी हस्बैंड वाइफ को खर्चा देने से मना कर सकता हैं। साथ ही , ऐसे केसिस में कोर्ट वाइफ को डाइवोर्स की कार्यवाही की फीस भरने और हस्बैंड को गुज़ारा भत्ता देने के लिए आर्डर कर सकती है।
बच्चे की कस्टडी:-
भारत में डाइवोर्स के बाद बच्चे की कस्टडी दोनों पेरेंट्स में से किसी एक पैरेंट को दी जाती है। हालाँकि, बच्चे का पालन-पोषण और ख़ुशहाली सबसे ज़रूरी है। बच्चे की कस्टडी लेने के लिए पिता को यह साबित करना होगा कि वह बच्चे की परवरिश करने के लिए अपनी वाइफ से बेहतर स्थिति में है। तो आसानी से पिता को बच्चे की कस्टडी मिल सकती है।