भारत में सभी धर्मों के अलग अलग पर्सनल लॉ है। उनके अनुसार वाइफ और बच्चों के अधिकार भी अलग अलग है। मुंबई हाईकोर्ट हाल ही में एक ऐसा ही केस सॉल्व कर रहा है। तो आईये जानते है कि एक वाइफ के जीवित होते हुए दूसरी वाइफ और उसके बच्चों के क्या अधिकार है।
केस क्या है:-
महाराष्ट्र रेलवे पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर ने 1992 में पहली शादी और 1998 में दूसरी शादी की थी। कोविड-19 से उनकी मृत्यु हो गयी। कोरोना काल की ड्यूटी के दौरान मृत हुए सरकारी कर्मचारियों के लिए राज्य सरकार ने 50 लाख के इंश्योंरेस देने की बात की थी। इस केस में, इंश्योंरेस, पुलिस वेलफ़ेयर फ़ंड और ग्रेच्युटी सभी को मिलाकर 65 लाख टोटल हुआ था।
यह रक़म पाने के लिए उनकी दूसरी वाइफ से हुई बेटी ने हाई कोर्ट में अपील की, कि कोर्ट उन्हें और उनकी मां को भूखा और बेघर ना किया जाये। और इसके लिए उनके पिता की मुआवज़े की रक़म को समान रूप से पहली और दूसरी वाइफ में बांटा जाए।
जस्टिस कतावाला की बेंच के सामने पहली वाइफ की बेटी ने यह दावा किया कि वे मृतक की दूसरी शादी के बारे में नहीं जानती थी। वहीँ दूसरी वाइफ के वकील ने दावा किया कि मृतक की पहली वाइफ को पता था कि मृतक ने दूसरी शादी की और वह दूसरी वाइफ और उनकी बेटी के साथ धारावी में रहते थे। साथ ही, दोनों शादियां हिंदू मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर थी। अब केस मुआवज़े के बंटवारे साथ-साथ यह भी था कि कौन सी शादी मान्य है।
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किसे मिलेगा हक़:-
हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 5 के तहत, शादी के समय कोई भी पार्टनर शादीशुदा नहीं होना चाहिए। दूसरी शादी तभी कर सकते हैं, जब व्यक्ति का पर्टनर मर गया, या उनका डाइवोर्स हो गया या पहली शादी रद्द हो चुकी है। अगर किसी ने दूसरी शादी कर ली है, तो भी दूसरी शादी मान्य नहीं होगी। लेकिन दूसरी शादी से हुए बच्चे को क़ानूनी रूप से पिता की प्रॉपर्टी का हक़ है।
वहीँ भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत, केवल ‘विल’ में मौजूद सभी लोगों का संपति में अधिकारी हो सकता है। अगर ‘विल’ नहीं बनाई है, तो सेक्शन 8 के क्लॉज़ 1 के तहत, अगर बेटे की मृत्यु हुई है, तो सबसे पहला अधिकार उसकी विधवा, बच्चे और माँ का होता है। और अगर बेटी की मृत्यु हुई है, तो केवल बच्चों को यह हक़ मिलेगा। हस्बैंड को हिस्सा नहीं मिलेगा। अगर क्लॉज़ 1 के तहत कोई उत्तराधिकारी नहीं है, तो प्रॉपर्टी का अधिकार क्लॉज़ 2 के तहत, पिता के अलावा, भाई-बहन और दूसरे रिश्तेदारों को मिल जाता है। साथ ही, सभी को उनकी अर्जित की हुई प्रॉपर्टी में बराबर हिस्सा मिलेगा।
इस केस में कोर्ट का फैसला था कि पहली वाइफ और दोनों शादियों से पैदा हुई बेटियों में मुआवज़े की रक़म एक-एक तिहाई बाँट दी जाएगी। लेकिन पिता की जगह पर किसे नौकरी मिलेगी और बाकि मुद्दों पर दोनों परिवार मिलकर सेटलमेंट कर सकते हैं।