गुजरात हाई कोर्ट ने कोविड-19 से पीड़ित एक मरीज़ के स्पर्म को सुरक्षित रखने का आदेश दिया था। यह आदेश बीमार व्यक्ति की वाइफ की पिटीशन पर किया गया था।
केस क्या था:-
एक महिला के हस्बैंड की कोविड-19 की वजह से तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई थी। वडोदरा में स्थित स्टर्लिंग हॉस्पिटल में पिछले 45 दिनों से उनका इलाज चल रहा था।
लॉयर निलय पटेल ने बताया कि मरीज़ की उम्र भी लगभग 30 साल थी। इस कपल की शादी को केवल आठ महीने ही हुए थे। कपल कनाडा में रहते थे। लेकिन कोरोना काल के दौरान इस मरीज़ के पिता की तबीयत बहुत ख़राब हो गयी थी। इसीलिए यह कपल कनाडा से वडोदरा आये थे। इस दौरान यह व्यक्ति कोविड की चपेट में आ गया।
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ज़िन्दा रहने के चान्सीस कम:-
मरीज़ के शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। डॉक्टर्स ने यह बात मरीज़ के परिवार को बता दी कि उनके मरीज़ के ज़िन्दा रहने के चान्सीस बहुत कम है। इसीलिए उनकी वाइफ चाहती थी कि उनके हस्बैंड का स्पर्म सुरक्षित रख लिया जाए। तो महिला ने इस बारे में हॉस्पिटल के स्टाफ से बात की।
TESE प्रोसेस:-
डॉक्टरों की टीम ने इस बात पर विचार किया कि क्या किसी प्रक्रिया से मरीज़ का स्पर्म कलेक्ट किया जा सकता है? उसके बाद डॉक्टर्स की टीम ने विचार-विमर्श करके, यह निष्कर्ष निकाला कि TESE प्रोसेस से मरीज़ के शरीर से स्पर्म निकाला जा सकता है।
कोर्ट की मदद:-
स्पर्म तो सुरक्षित रखा जा सकता है। लेकिन अब सवाल यह था कि क्या ऐसा करना क़ानूनी तौर पर सही होगा? इसपर डॉक्टर्स का कहना था कि मरीज़ की सहमति के बिना ऐसा करना ग़लत है। ऐसा करने के लिए हस्बैंड की सहमति होना जरूरी है। लेकिन उनके इसकी हस्बैंड सहमति देने की हालत में नहीं थे तो महिला ने इसके लिए कोर्ट से मदद मांगी।
महिला ने कोर्ट में अपील की कि उनके हस्बैंड का स्पर्म कलेक्ट करके सुरक्षित रखा जाये। कोर्ट ने भी इसकी अनुमति देने में ज्यादा देर नहीं लगाई। और जल्द ही डॉक्टर्स ने उनके हस्बैंड का स्पर्म कलेक्ट करके, उसे संरक्षित करने का पूरा प्रोसेस कम्पलीट कर लिया। हालाँकि, ऐसा करने के कुछ दिन बाद, हस्बैंड की मौत हो गई।
आईवीएफ़:-
अब यह पूरी तरह उनकी वाइफ पर डिपेंड करता है कि वे आईवीएफ़ का रास्ता अपनाना चाहती हैं या नहीं। आईवीएफ़ एक ऐसा प्रोसेस है जिसमें मशीनों की मदद से अंडाणु और शुक्राणुओं को लैब में मिलाया जाता है। और इससे बने भ्रूण या बच्चे को माँ की कोख में डाला जाता है।