क्या हस्बैंड भी डाइवोर्स केस में मेंटेनेंस का दावा कर सकता है?

क्या हस्बैंड भी डाइवोर्स केस में मेंटेनेंस का दावा कर सकता है?

भारत में सभी धर्मों के अलग-अलग पर्सनल कानून है। शादी, डाइवोर्स और मेंटेनेंस जैसे फैसले इन पर्सनल कानूनों के तहत लिए जाते है। मेंटेनेंस कपल में से किसी एक पार्टनर द्वारा अपने पेरेंट्स, पार्टनर और बच्चों को कोर्ट के आदेश पर दी जाने वाली आर्थिक सहायता है। आमतौर पर यह सहायता हस्बैंड द्वारा अपनी वाइफ को दी जाती है। हालाँकि, अडल्ट्री के आधार पर डाइवोर्स होने पर वाइफ मेंटेनेंस का अधिकार खो देती है। आईये आगे जानते है कि मेंटेनेंस का दावा कौन और किन आधारों पर कर सकता है। 

मेंटेनेंस के लिए एलिजिबिलिटी: 

आईपीसी 1973 के सेक्शन 125 के तहत, बताया गया है कि कौन सा व्यक्ति किससे मेंटेनेंस लेने का हकदार है। इसके तहत निम्नलिखित व्यक्ति पर्सनल लॉ के बावजूद भी मेंटेनेंस पाने के लिए एलिजिबल है – 

  1. एक वाइफ अपने पति से;
  2. वैध या नाजायज नाबालिग बच्चे, अपने पिता से;
  3. अपने पिता से वैध या नाजायज बच्चे (शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग), बशर्ते कि ऐसा बच्चा विवाहित बेटी न हो;
  4. पिता या माता अपने बेटे से, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं;
  5. नाबालिग बेटी के एडल्ट होने तक

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मेंटेनेंस लेने के आधार:- 

हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 के सेक्शन 18 के तहत एक पत्नी निम्नलिखित आधारों पर अपने हस्बैंड से मेंटेनेंस ले सकती है,  चाहे वह अब अपने हस्बैंड के साथ रह रही हो या नहीं।

  • अगर हस्बैंड जानबूझकर अपनी वाइफ को छोड़ दे। 
  • अगर यह सिद्ध हो जाये कि हस्बैंड ने अपनी वाइफ पर क्रूरता की है। 
  • अगर हस्बैंड कुष्ठ रोग से पीड़ित है। 
  • अगर हस्बैंड, वाइफ के होते हुए भी दूसरी शादी कर ले। 
  • अगर हस्बैंड अपनी वाइफ की सहमति के बिना धर्म परिवर्तन कर ले। 
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हस्बैंड के मेंटेनेंस लेने के प्रावधान:- 

अब जानते है कि डाइवोर्स के बाद किस सिचुएशन में हस्बैंड अपनी वाइफ से मेंटेनेंस लेने का दावा कर सकता है और कौन से फैक्टर्स इस मेंटेनेंस का अमाउंट तय करते है। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 24 और 25 दोनों के तहत, हस्बैंड अपनी वाइफ से मेंटेनेंस लेने का दावा कर सकता है। 

सेक्शन 24 के तहत, हस्बैंड-वाइफ इंटरिम मेंटेनेंस के लिए अप्लाई कर सकते हैं। इंटरिम मेंटेनेंस वह आर्थिक सहायता होती है, जो पिटीशन फाइल होने की तारीख से, केस के खारिज होने या डिक्री पास होने तक एक पार्टनर द्वारा दूसरे पार्टनर को दी जाती है। यह उस पार्टनर की तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रदान की जाती है। सेक्शन 24 के अलावा, एक ‘योग्य व्यक्ति’ जिसकी इनकम जरूरी खर्चों के लिए भी पर्याप्त नहीं है या कार्यवाही के लिए उसके पास पर्याप्त खर्च नहीं है, वह भी अपनी वाइफ से मेंटेनेंस का दावा करने का अधिकारी है।

सेक्शन 25 के तहत, हस्बैंड को अपनी वाइफ से परमेनन्ट मेंटेनेंस या एलीमनी लेने की भी अनुमति है। परमेनन्ट मेंटेनेंस के तहत वाइफ द्वारा हस्बैंड को एक टोटल अमाउंट या हर महीने एक निश्चित अमाउंट का भुगतान करने का आर्डर दिया जाता है।

जब हस्बैंड द्वारा मेंटेनेंस का दावा किया जाता है, तो हस्बैंड को कोर्ट में यह साबित करना होगा कि वह कमाने और अपनी आजीविका चलाने में सक्षम नहीं है। 

मेंटेनेंस तय करने वाले फैक्टर्स: 

मेंटेनेंस के लिए कानून में कोई फिक्स अमाउंट का प्रावधान नहीं है। मेंटेनेंस की मांग करने वाले हस्बैंड को अपनी वाइफ से मेंटेनेंस के तौर पर कितना अमाउंट मिलेगा यह कई फैक्टर्स पर डिपेंड करता है। इन फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए ही कोर्ट मेंटेनेंस का अमाउंट तय करती है। 

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(1) हस्बैंड और वाइफ का स्टेटस – इसके लिए दोनों पार्टनर्स की फाइनेंसियल सिचुएशन और कोर्ट द्वारा उन दोनों की कमाई की क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।

(2) हस्बैंड द्वारा उचित दावे – हस्बैंड द्वारा कोर्ट में मेंटेनेंस लेने के लिए किए गए दावे उचित और उपयुक्त होने चाहिए। साथ ही, कोर्ट यह भी ध्यान रखती है की वाइफ मेंटेनेंस देने के लिए सक्षम है या नहीं। 

कोर्ट का रोल: 

शोभा सुएश जुमानी v/s अपीलीय ट्रिब्यूनल एआईआर 2001 केस और पी. श्रीनिवास राव v/s पी.इंदिरा एआईआर 2002 केस में, कोर्ट ने कहा कि एक वाइफ चाहे वो अपने हस्बैंड से अलग रह रही हो, या हस्बैंड द्वारा उसका परित्याग किया गया हो ,वह हिंदू एडॉप्शन और मेंटेनेंस एक्ट के सेक्शन 18 के तहत अपने पूरे जीवन के दौरान अपने हस्बैंड से मेंटेनेंस लेने की हकदार है। 

निव्या वी एम v/s शिवप्रसाद एम के 2017(2) केएलटी केस में केरल हाई कोर्ट ने कहा कि वाइफ से मेंटेनेंस पाने के लिए हस्बैंड को साबित करना होगा कि वह अपने लिए कमाने के योग्य नहीं है। 

रानी सेठी v/s सुनील सेठी 179 (2011) डीएलटी में, लोअर कोर्ट ने वाइफ को अपने हस्बैंड को मेंटेनेंस के रूप में 20,000 रुपये और मुकदमेबाजी खर्च के रूप में 10,000 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया। हालांकि, वाइफ ने लोअर कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दिल्ली होग़ कोर्ट में अपील की। केस को ऑब्ज़र्व करने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने लोअर कोर्ट का फैसले बरकरार रखा।

निष्कर्ष:

हस्बैंड द्वारा वाइफ से मेंटेनेंस का दावा करना, यह भारतीय कानून में एक सामान्य बात नहीं है, खासकर जब हस्बैंड कमाने में सक्षम हो। हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत मेंटेनेंस लेने के लिए हस्बैंड को कुछ शर्तों को पूरा करना होगा और अपने काम करने की अक्षमता को कोर्ट में साबित करना होगा। 
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