हाईकोर्ट की एप्रोच से सुप्रीम कोर्ट निराश, दी जमानत।

हाईकोर्ट की एप्रोच से सुप्रीम कोर्ट निराश, दी जमानत।

एक विश्वसनीय प्रिंट मीडिया स्रोत के अनुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट के साथ-साथ अन्य बेंचों में अगस्त 2021 तक लगभग 1,83,000 आपराधिक अपीलें पेंडिंग हैं। उत्तर प्रदेश की कई जेलों में 7214 कैदी हैं, जो अपनी सज़ा के आर्डर के तहत 10 साल से ज्यादा जेल की सजा काट चुके हैं। इन दोषियों की आपराधिक अपीलें हाई कोर्ट में फैसले के लिए पेंडिंग हैं। 

इसी संदर्भ में एक व्यक्ति ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ फाइल हुयी पिटीशन के पेंडिंग रहने के दौरान, अपनी जमानत की मांग करते हुए हाई कोर्ट में एक एप्लीकेशन फाइल की थी। ट्रायल कोर्ट ने उस व्यक्ति को दोषी ठहराया और उसे एक क्रिमिनल केस के लिए जेल की सजा सुनाई।

उसके बाद व्यक्ति ने जमानत लेने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में बेल एप्लीकेशन फाइल की, लेकिन कोर्ट ने उस व्यक्ति की अप्लीकेशन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि सज़ा हुए अपराधी की अपील पर सुनवाई की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले में उसका साथ नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के इस फैसले को खारिज कर दिया क्योंकि इससे पहले से पेंडिंग पड़े केसिस और ज्यादा बढ़ जायेंगे। 

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सुप्रीम कोर्ट ने यह देखा कि जिस तारीख को हाई कोर्ट ने बेल एप्लीकेशन खारिज की थी, उस समय तक व्यक्ति 14 साल की जेल की सजा काट चूका था। जबकि, अपील हाई कोर्ट में 7 साल से पेंडिंग थी।

1 अप्रैल 2022 को, एक आर्डर में, जज एस के कौल और एम एम सुंदरेश की बेंच ने कहा कि आर्डर को इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जज के सामने पेश करने की जरूरत है। साथ ही, इलाहाबाद हाई कोर्ट के जजों को लाने और निरीक्षण करने के लिए परिचालित किया गया है। लंबे समय से जेल की सज़ा काट रहे व्यक्तियों के लिए प्रावधान करने ओर दृष्टिकोण में कुछ बदलाव करने पर विचार किया गया। 

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दो-जजों की बेंच ने कहा कि “अगर किसी दोषी ने 14 साल या उससे ज्यादा की सजा काट ली है, तो उस केस में सज़ा काम करने या बदलने पर विचार किया जा सकता है। “न्यायालय द्वारा राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि अपीलकर्ता के माफी के आवेदन पर 3 महीने के अंदर विचार किया जाना चाहिए या उसे बेल पर रिहा कर दिया जाए।

निम्नलिखित आदेश के आधार पर, दो जजों की बेंच ने हाई कोर्ट द्वारा खारिज की गयी दोषियों की बेल एप्लीकेशन के खिलाफ जाकर ऐसे 21 केसिस में जमानत दे दी।

जिन दोषियों ने बेल एप्लीकेशन लगाई है, उन्हें जमानत देने के लिए न्यायालय द्वारा किन बातों पर विचार किया जाता है?

सुप्रीम कोर्ट ने दो मापदंड तय किए है, जिनके आधार पर दोषियों को जमानत दी गई है।

1. सबसे पहले, जब दोषी 14 साल की कैद की सजा काट चुका है और उसने दोबारा कोई अपराध नहीं किया है, तो इन केसिस में एक बार में जमानत दी जा सकती है।

2. दूसरे, 10 साल से जीतदा जेल की सजा काटने वाले दोषियों को भी एक बार में जमानत दी जा सकती है, बशर्ते कि कुछ अन्य परिस्थितियां हों।

इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा बेल एप्लीकेशन खारिज:

सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2019 में, अपीलकर्ता की बेल एप्लीकेशन को खारिज करने के लिए हाईकोर्ट द्वारा बताए गए कारण को नोट किया। हाईकोर्ट द्वारा कहा गया कारण यह था कि बेल एप्लीकेशन के डाक्यूमेंट्स दो हफ्ते में तैयार किए जाने चाहिए और सुनवाई के लिए तुरंत सूचीबद्ध किए जाने चाहिए। 

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इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस किया कि फाइल तैयार होने और पेश किए जाने के बाद, बेल एप्लीकेशन को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने के बावजूद भी इसे एक्सेप्ट नहीं किया गया था।

बेंच ने कहा कि “जो आदेश जमानत की जांच करने के बजाय केवल इस आधार पर खारिज कर दिए गए है कि अपील को ही सुना जाना चाहिए, इलाहाबाद हाईकोर्ट में बड़ी संख्या में अपील लंबित होने के कारण कोई उद्देश्य नहीं है।”

सुप्रीम कोर्ट बेंच द्वारा ऑब्जरवेशन:

दो-जजों की बेंच ने कहा कि जमानत के केसिस को सोल्व करने के लिए हाईकोर्ट द्वारा इस तरह के दृष्टिकोण से कोर्ट पर ज्यादा दबाव पड़ता है, जिसकी सराहना नहीं की जा सकती है। साथ ही, बेंच ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता 12 साल से जेल की सज़ा काट रहा है। ऐसे केस में जहां दोषियों की अपील लंबे समय से जेल में रहने पर भी हाईकोर्ट में पेंडिंग पड़ी है, वहां जमानत देने से इनकार करने की कोई वजह नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हाईकोर्ट के बेल एप्लीकेशन खारिज करने पर निराशा जताई। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह राज्य से उम्मीद करता है कि राज्य ऐसे दोषियों की जमानत के मैटर की जांच करेगा जो अन्य राज्यों में प्रचलित नीतियों के संदर्भ में, क्रिमिनल केसिस के बहुत बड़े बैकलॉग की वजह से ट्रायल कोर्ट और उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट में पेंडिंग पड़ी है, क्योंकि उससे पहले भी बहुत सी अपीलें पेंडिंग है। 

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