परंपरागत रूप से, यह माना जाता है कि कानून और टेक्नोलॉजी एक-दूसरे के विपरीत है। कानून अधिकारों की रक्षा करने के लिए बना है, जबकि टेक्नोलॉजी का उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना है। बहरहाल, जज चंद्रचूड़ के अनुसार, कानून और टेक्नोलॉजी का आपस में संबंध है, जो व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और समाज में नवाचार को बढ़ावा, दोनों को प्राप्त कर सकता है। लोग हमेशा मानते हैं कि कानून और टेक्नोलॉजी के बीच संबंध वह है, जहां टेक्नोलॉजी को रोकने के लिए कानून का यूज़ किया जाता है। यह इस धारणा की वजह से है कि एक अनुशासन जो इतिहास और पूर्वता पर निर्भर करता है, वह कभी भी उस दुनिया की सुविधा को कम नहीं समझेगा जो लगातार भविष्य की फिर से कल्पना करना चाहता है। टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के उपयोग ने, ना केवल व्यक्ति के अधिकारों के दायरे को बढ़ाया है, बल्कि उन सेवाओं तक व्यक्ति की पहुंच भी है, जो उन्हें इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं को महसूस करने में बेहतर मदद करती हैं।
कानून और टेक्नोलॉजी के प्रभाव और महत्वपूर्ण संबंध के साथ आगे बढ़ने से पहले, आइए हम ई-कोर्ट मिशन मोड प्रोजेक्ट पर एक नज़र डालें।
ई-कोर्ट प्रोजेक्ट:
भारतीय न्यायपालिका में इनफार्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी (आईसीटी) को लागू करने के लिए राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना के आधार पर, ई-कोर्ट प्रोजेक्ट की अवधारणा की गई थी। 2005 में यह प्रोजेक्ट ई-समिति, भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोर्ट्स में आईसीटी को सफल करके भारतीय न्यायपालिका को बदलने के लिए प्रस्तुत की गई थी।
भारत के चीफ़ जस्टिस से मिले एक प्रस्ताव के अनुसार, भारतीय न्यायपालिका के कम्प्यूटरीकरण पर राष्ट्रीय नीति तैयार करने के साथ-साथ तकनीकी संचार पर सलाह देने के लिए ई-समिति की स्थापना की गई थी।
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ई-कोर्ट प्रोजेक्ट का उद्देश्य:
- ई-कोर्ट लिटिगेंट्स चार्टर के अनुसार, कुशल और समयबद्ध नागरिक-केंद्रित सेवाएं प्रदान करना।
- कोर्ट्स में डिसीज़न सपोर्ट सिस्टम विकसित करना, स्थापित करना और कार्यान्वित करना।
- नागरिकों तक सूचना आसानी से पहुंचे ये सुनिश्चित करना।
- न्याय वितरण प्रणाली को वहनीय, सुलभ, लागत प्रभावी, पूर्वानुमेय, विश्वसनीय और पारदर्शी बनाने के लिए गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों तरह से न्यायिक उत्पादकता को बढ़ाना।
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ई-कोर्ट नेशनल पोर्टल 2013 में लॉन्च किया गया था, जहां 2852 से ज्यादा जिलों और तालुका कोर्ट कॉम्प्लेक्स ने रजिस्टर किया है। हम वाद सूची के साथ ऑनलाइन केस की स्थिति भी प्रदान करते हैं। आप कोर्ट के आदेश भी प्राप्त कर सकते हैं।
संवैधानिक अधिकारों पर इंटरनेट और टेक्नोलॉजी का प्रभाव:
अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि इंटरनेट एक महत्वपूर्ण उपकरण है, जिसने मानव अधिकारों के उल्लंघन की निगरानी करने वाले कई मानवाधिकार संगठनों के काम और प्रासंगिकता में काफी सुधार किया है। इस बात के जवाब में, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एक ऐसे तकनीकी परिवर्तन के प्रभाव को बताया, जो कि इंटरनेट युग का आगमन, कानूनी अधिकारों और शासन के ढांचे पर है। उन्होंने एक उदाहरण दिया, जहां 1994 में फ्रीडम फोरम के मीडिया स्टडीज सेंटर ने बताया, कि मानवतावादी और मानवाधिकार गतिविधियों की दुनिया के साथ इंटरनेट जैसी लोकतांत्रिक तकनीक के शादी के लिए अनिवार्यता की गुणवत्ता प्रतीत होती है।
परंपरागत रूप से, सरकार के पास ऐसे प्लेटफॉर्म्स होते हैं, जिनके माध्यम से व्यक्ति अपना भाषण दूसरों को सुना सकते हैं। हालाँकि, इंटरनेट और सोशल मीडिया के आने से व्यक्ति अब इन प्लेटफार्मों पर सीधे नियंत्रण कर सकते हैं। इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण 2011 की मिस्र की क्रांति(इजिप्शियन रिवोलुशन) के दौरान है, जब विरोध प्रदर्शन आयोजित करने और अपनी सरकार द्वारा किए जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन को उजागर करने के लिए बाहरी दुनिया से बात करने के लिए प्रदर्शनकारियों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का बहुत ज्यादा यूज़ किया गया था। भारत में भी, सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट के माध्यम से नागरिकों के बोलने, व्यक्त करने और जानकारी प्राप्त करने के मौलिक अधिकारों को मान्यता दी है। इंटरनेट पर एक व्यक्ति के प्राइवेसी के अधिकार को इसी तरह कई वैश्विक संस्थानों और कोर्ट्स ने बरकरार रखा है।
आप लीड इंडिया से संपर्क करके दिल्ली में एक वकील की मदद से किसी भी मौलिक अधिकार के उल्लंघन के लिए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन फाइल कर सकते हैं।
भारत में, न्यायमूर्ति के.एस पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ के केस में, नौ-न्यायाधीशों की एक बेंच ने कहा कि प्राइवेसी का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने तर्क दिया कि प्राइवेसी के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में पढ़ना संविधान के लिए जरूरी है, ताकि डिजिटल युग में हमारे लोगों की रक्षा की जा सके, जहां पर्सनल डिजिटल पहचान भी भौतिक दुनिया में उनकी पहचान के बराबर ही महत्वपूर्ण है।
कानून और टेक्नोलॉजी के संबंध पर महामारी का प्रभाव:
COVID 19 भारत में वर्चुअल और डिजिटल कोर्ट प्रोजेक्ट के लिए एक शानदार सोल्युशन साबित हुआ। जब 2020 में लॉकडाउन लगाया गया, तो सुप्रीम कोर्ट ने वर्चुअल सुनवाई शुरू की। हालाँकि, शुरुआत में, न्यायपालिका को उन तकनीकी बाधाओं को कम करना पड़ा, जिनका सामना वादियों को न्याय तक पहुँचने में करना पड़ा। एक डर यह भी था कि महामारी, केसिस के बैकलॉग को बढ़ा देगी। इस प्रकार कोशिश यही थी कि एक मजबूत तकनीक बनाई जाये, जो नए मुकदमों से प्रभावी ढंग से निपट सके और साथ ही पेंडिंग केसिस को प्राथमिकता दे सके। इससे नागरिकों द्वारा पूरे भारत में सभी कोर्ट्स द्वारा आभासी कोर्ट प्रणाली को प्रभावी ढंग से अपनाया गया।
ई-कोर्ट प्रोजेक्ट का रोल:
ई-समिति का ई-कोर्ट प्रोजेक्ट, जो 2015 से अपने दूसरे फेज़ में है, ने एक टेक्नोलॉजी-सक्षम न्यायिक प्रणाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो महामारी की नई चुनौतियों का सामना कर सके। ई-कोर्ट प्रोजेक्ट के माध्यम से, जज एक ऐसी प्रणाली बनाने में कामयाब रहे जो वर्चुअल कोर्ट, इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग और ऑनलाइन भुगतान के लिए अनुकूल थी।
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