दिल्ली हाई कोर्ट ने बच्चे को उसके मानित पिता से मिलने का अधिकार दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने बच्चे को उसके मानित पिता से मिलने का अधिकार दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने बच्चों और पेरेंट्स के लिए एक अहम फैसला दिया। यह फैसला था कि एक नाबालिग़ बच्चे को उसके ‘मानित पिता’ (Putative Father) होने का दावा करने वाले पुरुष से मिलने का पूरा अधिकार है। एक नाबालिग़ बच्चे की पर्सनल ग्रोथ और डेवेलप्मेंट के लिए दोनों पेरेंट्स, माता और पिता का लाड प्यार मिलना जरूरी है। किसी भी सिचुएशन में एक बच्चे को उसके पेरेंट्स के स्पर्श से महरूम नहीं किया जाना चाहिए। मानित पिता एक ऐसा पुरुष होता है, जो उस महिला से पैदा हुए बच्चे का बायोलॉजिकल फादर होने का दावा करता है, लेकिन बच्चे के जन्म के समय उस महिले से पुरुष की शादी नहीं हुई है। सरल भाषा में समझे तो एक ऐसा बच्चा जिसके पेरेंट्स की वैलिड शादी नहीं हुई है। 

बच्चे के कल्याण सबसे जरूरी:

एक मां की तरफ से फाइल की गयी पिटीशन पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि यह विवादित या कॉन्ट्रोवर्सियल नहीं हो सकता कि पुरुष अपने बच्चे का पिता होने के नाते मुलाकात के अधिकारों का हकदार होगा. अदालत ने कहा कि इस तरह के अधिकारों का निर्धारण करते समय, खासकर जब बच्चा तीन साल से कम उम्र का हो, तो निश्चित रूप से उसके कल्याण का विचार सर्वोपरि रखा जाना चाहिए. साथ ही अदालत ने कहा कि नाबालिग बच्चे के स्वास्थ्य विकास और उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए को माता-पिता के स्पर्श से और प्रभाव से अछूता नहीं रखा जाना चाहिए.

जस्टिस वी कामेश्वर राव ने यह आर्डर एक मां के द्धारा फाइल की गयी पिटीशन पर सुनवाई करते समय सुनाया था। इस केस में कोर्ट ने देखा कि बच्चे की उम्र तीन साल से कम है। बच्चे की उम्र इतनी कम होने की वजह से फॅमिली कोर्ट फैसले को बदलते हुए बच्चे के मानित पिता से मिलने के समय में बदलाव किया। जहां फॅमिली कोर्ट ने मानित पिता को अपने बच्चे से हर रोज़ 2 घंटे के लिए ​मिलने का समय दिया था, अब हाई कोर्ट ने उस समय को बदलकर हफ्ते में 3 अल्टरनेटिव कार्यदिवस कर दिया है। अतः अब मानित पिता को हाई कोर्ट द्वारा एक दिन के गैप से अपने बच्चे से मिलने का अधिकार दिया गया है। 

फैमिली कोर्ट के आदेश को मां ने दी चुनौती:

इस केस में बच्चे की मां के द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट में फैमिली कोर्ट साकेत के आर्डर को चुनौती दी गई थी। बच्चे की माँ के द्वारा पिटीशन फाइल की गयी कि फैमिली कोर्ट ने मानित पिता की तरफ से गार्जियन एंड वार्ड एक्ट 1890 के तहत फाइल की गयी एप्लीकेशन में मिलने की अनुमति देकर गलती की है। साथ ही माँ का यह भी कहना था कि फैमिली कोर्ट के आर्डर को रद्द कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि अपीलकर्ता ने यह स्वीकार किया कि वह उस नाबालिग बच्चे का मानित पिता हो सकता है।

रोज़ 2 घण्टे मिल सकते थे पिता: 

28 अक्टूबर 2021 को साकेत फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज ने एक आर्डर पास किया और अपीलकर्ता मानित पिता को नाबालिग बच्चे से रोज़ मिलने की अनुमति दे दी। आर्डर के हिसाब से मानित पिता को हर रोज़ शाम 6 बजे से 8 बजे तक बच्चे से मिलने का अधिकार दिया गया था। फैमिली कोर्ट ने पिता को हर रोज़ शाम को मिलने का अधिकार दो प्रमुख आधारों पर दिया था। सबसे पहला यह कि अपीलकर्ता पिता ने नाबालिग बच्चे के पितृत्व को स्वीकार किया था। और दूसरा यह कि पिता भी उसी कंपाउंड की एक अलग मंजिल पर रहता था, जहां नाबालिग बच्चा और उसकी माँ रहते थे।

मां ने फैमिली कोर्ट की इन बातों का विरोध करते हुए कोर्ट के सामने कहा कि फैमिली कोर्ट के सामने रेस्पोंडेंट मानित पिता ने अपीलकर्ता माँ से शादी होने से मना कर दिया है, इसलिए यह बच्चा अवैध है। साथ ही, हिंदू माइनॉरिटीज एंड गार्डियंस एक्ट, 1956 के सेक्शन 6 के अनुसार वह पुरुष बच्चे की कस्टडी का हकदार नहीं है और इसलिए उसे बच्चे से मिलने का अधिकार भी नहीं देना चाहिए। माँ ने तर्क दिया कि मानित पिता कई महीनों से उस कंपाउंड में नहीं रह रहा है और 2 साल के बच्चे को आर्डर की ताकत पर विभिन्न अनजान और अज्ञात जगहों पर ले जाया जा रहा है, जो एक नाबालिग बच्चे के जीवन के लिए बिलकुल भी सही नहीं है। 

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बच्चे की माँ ने यह भी कहा कि हिंदू माइनॉरिटीज एंड गार्डियंस एक्ट, 1956 के तहत एक मानित पिता, बिलोजिकल फादर के बराबर नहीं हो सकता है। साथ ही, मां और बच्चे की रोज की दिनचर्या को इस तरह के सख्त, मुश्किल और अनुचित दबाव के अधीन नहीं रखा जा सकता कि वो हर रोज उससे मिले। 

दो बातों पर हाई कोर्ट में माँ ने दी चुनौती:

1.) क्या मानित पिता को हर रोज दो घंटे के लिए नाबालिग बच्चे से मिलने के अधिकार की अनुमति देना सही है?

2.) क्या एक मानित पिता भी एक बायोलॉजिकल फादर के बराबर ही अपने बच्चे से मिलने का अधिकार रखता है?

कोर्ट से मानित पिता ने क्या कहा:

दूसरी तरफ मानित पिता ने कोर्ट में बच्चे की माँ के तर्कों का विरोध करते हुए कहा कि उन दोनों के बीच कोई वैलिड शादी नहीं हुई, लेकिन वह बच्चे के पैदा होने को मानता है और यह मानता है कि यह बच्चा उसी का है। इस प्रकार पिता अपने बच्चे के पितृत्व को स्वीकार करता है। साथ ही, उसने यह भी तर्क दिया कि नाबालिग बच्चे के लिए पितृत्व भाव को कभी भी विवादित नहीं माना गया है। फैमिली कोर्ट के सामने भी उसने यही स्टैंड लिया था कि वह नाबालिग़ बच्चे का बायोलॉजिकल फादर है। 

हाई कोर्ट के अनुसार:

दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि मानित पिता ने माना कि बच्चा उसका है। इस फैक्ट को ध्यान में रखते हुए कि बच्चे की मां और मानित पिता के बीच कोई वैलिड शादी नहीं हुई है। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के अमायरा द्विवेदी बनाम अभिनव द्विवेदी केस और हाई कोर्ट के प्रदीप संतोलिया बनाम राज्य सरकार के केस के फैक्ट्स को शामिल करते हुए अपना फैसला सुनाया कि बच्चे के मानसिक और भावनात्मक ग्रोथ के लिए उसे माता-पिता दोनों का लाड-प्यार मिलना चाहिए। बच्चे और पिता के संबंधों को हमेशा के लिए ख़त्म नहीं किया जाना चाहिए।

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फैमिली कोर्ट के आर्डर में बदलाव:

हाई कोर्ट के अनुसार, बच्चे की रक्षा और कल्याण के लिए कोविड-19 प्रोटोकॉल को बनाए रखा जाना जरूरी है। साथ ही, मानित पिता को बच्चे की रक्षा के लिए उपाय अपनाने का आर्डर दिया। कोर्ट ने मानित्त पिता को बच्चे को सार्वजनिक या गैर जरूरी जगहों पर ले जाने और उसकी पहचान ना बताने के ऑर्डर दिए। इसके अलावा, बच्चे को पिता द्वारा दिल्ली कोर्ट की सीमा क्षेत्र से बाहर ले जाने से भी मना किया है। 

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