हिंदू कानून के तहत बच्चे की मेंटेनेंस का अधिकार।

हिंदू कानून के तहत बच्चे की मेंटेनेंस का अधिकार।

बच्चों के पालन-पोषण में उनके बचपन की देखभाल एक बहुत जरूरी रोल निभाती है। दोनों पेरेंट्स इसका एक अविश्वसनीय रूप से जरूरी हिस्सा है। फ्यूचर में बच्चे की क्षमता और निपुणता उसके बचपन की देखभाल और सपोर्ट पर डिपेंड होती है। यह माता और पिता दोनों की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चे की उन्नति और उसके मजबूत व् स्वस्थ विकास के लिए, वह सब कुछ दें जो वह कर सकते हैं। दोनों पेरेंट्स को अपने बच्चे के साथ रहने के लिए एक वैध, सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए, चाहे वे अलग-अलग रह रहे हों, अलग हो गए हों या डाइवोर्स ही क्यों ना ले लिया हो। हिंदू कानून के तहत कई प्रावधान हैं, जो माता-पिता के जरूरी दायित्व के रूप में चाइल्ड कस्टडी को समझते है।

मेंटेनेंस का मतलब आर्थिक सहायता होता है, जो लाइफ की बेसिक नीड्स को पूरा करता है। जैसे – खाना, कपड़ा, रहने के लिए घर, शिक्षा, मेडिकल सहायता आदि। 

इस आर्टिकल में बहुत से प्रावधानों को बताया गया है, जिसमें कहा गया है कि हिंदू लॉ के तहत चाइल्ड कस्टडी और कल्याण को बहुत महत्व दिया गया है।

हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 के सेक्शन 3(बी) में मेंटेनेंस को इस तरह समझाया गया है।

मेंटेंनेस में शामिल हैं-

सारे केसिस में, खाना, कपडे, रहने के लिए घर, शिक्षा और चिकित्सा उपलब्ध और उपचार का प्रावधान है। 

सिर्फ एक बेटी के केस में, उसकी शादी के लिए उचित शुल्क या खर्चा भी।

नीचे दी गयी सभी सिचुऎशन्स में एक माइनर बच्चा भरण-पोषण का अधिकार रखता है। जबकि केवल एक बेटी के केस में बेटी बालिग़ होने मतलब 18 वर्ष की पूरी होने के बाद भी भरण-पोषण का अधिकार रखती है।

  • जब बच्चा अपने माता-पिता के साथ रहता है।
  • पेरेंट्स के अलग होने की सिचुएशन में, जब बच्चे की कस्टडी किसी एक पैरेंट के पास है।
  • जब बच्चा शून्य विवाह से पैदा हुआ है।
  • जब बच्चा लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुआ है।
  • भारत में, बहुत से एक्ट्स के तहत बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण के लिए लाभकारी प्रावधान दिए गए हैं।

निष्कर्ष:

भारत में चाइल्ड कस्टडी लॉ माता और पिता दोनों की जिम्मेदारियों को तय करता है, जैसे – माता और पिता अपने बच्चों को मेंटेनेंस दे, जब वह खुद का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। ऊपर दिए सभी प्रावधानों और कानून से, यह स्पष्ट है कि कानून इस बात के लिए स्पष्ट है कि बच्चे का कल्याण सबसे जरूरी है। जैसा कि हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट, 1956 के सेक्शन 13 के तहत कहा गया है, जबकि बच्चे से संबंधित मुद्दे को समाप्त करते हुए कोई भी मामला। हिंदू कानून के साथ-साथ आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत चाइल्ड कस्टडी के प्रावधान बच्चे के हित को बढ़ावा देते हैं और बच्चों को किसी भी तरह के अलगाव से बचाते हैं। इसलिए, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि भारत बचपन की रक्षा करने और बच्चों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए सही रास्ते पर है, जो हमारे संविधान के तहत सुनिश्चित है।

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