जब एक मैरिड कपल एक साथ रहने को तैयार नहीं होते और डाइवोर्स लेने का फैसला लेते है, तो उस सिचुएशन में सबसे ज्यादा पीड़ित उनका 18 साल से कम उम्र का बच्चा होता है, जो उस कपल से पैदा हुआ है। वह बच्चा कस्टडी के नाम पर अपने पेरेंट्स से अलग हो जाता है। बच्चों के अधिकारों की रक्षा और सर्वोत्तम हित के लिए भारत की न्यायपालिका प्रणाली ने कानूनी रूप से बच्चे की कस्टडी का अधिकार रखा है। इस संबंध में भारतीय कानून बच्चे के कल्याण को सबसे ज्यादा महत्व देता है। संरक्षक माता-पिता की बच्चे की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है, जिसमें बच्चे को सुरक्षित रखना, बच्चे को नैतिकता सिखाना, अच्छी शिक्षा, चिकित्सा, भावनात्मक रूप से साथ देना, आर्थिक खर्च उठाना आदि शामिल है। वहीँ दूसरी तरफ गैर-संरक्षक माता-पिता को केवल बच्चे से मिलने का अधिकार है। भारतीय कानून में कई तरह की चाइल्ड कस्टडी होती है जैसे कि जॉइंट कस्टडी, फिजिकल कस्टडी या लीगल कस्टडी और थर्ड पार्टी कस्टडी।
इस लेख में हम चाइल्ड कस्टडी से सम्बंधित भारत में पुरुषों(पिता) के अधिकारों के बारे में चर्चा करते हैं।
पिता को इन तरीकों से कस्टडी मिलती है:
परंपरागत रूप से भारत में, कस्टडी ज्यादातर मां को दी जाती है, क्योंकि वह बच्चे की मेन केयरटेकर है। अभी भी कई माताएं और समाज के लोग इसी सोंच को सही मानते हैं। इस वजह से फादर के लिए चाइल्ड कस्टडी की लड़ाई को बहुत मुश्किल और चुनौतीपूर्ण बन जाती है। कई बार कोर्ट फादर्स की पिटीशन को खारिज कर चुकी हैं। लेकिन फादर इन तरीकों से अपने बच्चे की कस्टडी का दावा कर सकता है:
- अगर मदर बच्चे की कस्टडी सरेंडर करने के लिए मान जाती है, तो पिता को कस्टडी दी जा सकती है।
- अगर मदर बच्चे की देखभाल करने में असमर्थ है, तो बच्चा फादर को दे दिया जाएगा।
- अगर मदर मेंटली अनस्टेबल है, तो इस केस में भी बच्चे की कस्टडी फादर को दी जाती है।
- अगर बच्चा 13 साल या उससे बड़ा है और वह अपने फादर के साथ रहना चाहता है, तो कोर्ट बच्चे के कहने पर कस्टडी पिता को दे देगी।
- अगर मदर कैरेक्टर लेस साबित हुई है, जो उसका गलत असर बच्चे पर भी पड़ सकता है इसीलिए बच्चे की कस्टडी फादर को दी जाती है।
- अगर फादर फ्यूचर में बच्चे के पालन-पोषण और अच्छी देखभाल करने के लिए फायनेंशियली स्ट्रांग है, और मदर फायनेंशियली स्टेबल नहीं है तब भी फादर के फेवर में केस जा सकता है।
- अगर मदर दोषी है तो, बच्चे की कस्टडी फादर को दी जाएगी।
क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?
बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट पर नाम नहीं है, तो फादर ऑब्जेक्शन उठा सकते हैं।
बर्थ सर्टिफिकेट पर पिता का नाम होना या न होना, उनके चाइल्ड कस्टडी के राइट्स को एफेक्ट कर सकता है। कई बार अगर व्यक्ति का नाम बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट पर बच्चे के पिता के रूप में लिखा हुआ है, तो कोर्ट्स अपनेआप ही यह निष्कर्ष निकाल लेती है कि वे बच्चे के लीगल फादर हैं और बच्चे के लीगल फादर के रूप में उन्हें बहुत से कस्टडी राइट्स दिए जाते हैं। लेकिन कई केसिस में भले ही व्यक्ति बच्चे का बायोलॉजिकल फादर नहीं है और उसका नाम बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट में पिता के रूप में लिखा है, तो कोर्ट्स उन्हें बच्चे के कस्टडी राइट्स दे सकती हैं। यह कस्टडी राइट्स उन पर बहुत सी डीएस को भी लागू करता है, जैसे कि फ्यूचर में होने वाले बच्चे के सभी खर्च।
अगर फादर का नाम बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट पर नहीं है, तो उसका बच्चे पर आधा या पूरा किसी भी प्रकार का कस्टोडियल राइट नहीं दिया जायेगा। अगर वह बच्चे के बायोलॉजिकल फादर के रूप मे लीगल राइट्स लेना चाहता है, तो उसे कोर्ट को साबित करने के लिए पैटर्निटी टेस्ट करने की जरूरत है कि वह बायोलॉजिकल फादर है। क्योंकि बच्चे ज्यादातर अपनी मां से जुड़े होते हैं, जब एक पिता बच्चे की कस्टडी चाहता है, तो उसे अपने बच्चे की इच्छाओं और उसकी भलाई के बारे में सोंचना चाहिए। पेरेंट्स के बीच कस्टडी की लड़ाई हमेशा एक बच्चे के लिए दर्दनाक और थका देने वाला एक्सपीरियंस होता है, इसलिए पेरेंट्स की पहली प्रायोरिटी यह होनी चाहिए कि वह जो कुछ भी कर रहें है, वह बच्चे के लिए बेस्ट हो और उसके हित में हो।
अब भी कभी-कभी एक फादर के लिए अपने बच्चे की कस्टडी का केस जीतना मुश्किल हो जाता है, भले ही कोर्ट फादर के साथ भेदभाव ना करें। फादर को अपने ही बच्चे की कस्टडी पाने के लिए कड़ी लड़ाई के लिए तैयार रहना चाहिए, खासकर अगर बच्चे की माँ भी उसी के लिए लड़ रही हो।
अब भी कभी-कभी एक फादर के लिए अपने बच्चे की कस्टडी का केस जीतना मुश्किल हो जाता है, भले ही कोर्ट फादर के साथ भेदभाव ना करें। फादर को अपने ही बच्चे की कस्टडी पाने के लिए कड़ी लड़ाई के लिए तैयार रहना चाहिए, खासकर अगर बच्चे की माँ भी उसी के लिए लड़ रही हो।
कस्टडी लेने के लिए एक फादर की मदद करने के लिए कुछ टिप्स:
- चाइल्ड सपोर्ट पेमेंट टाइम पर करें।
- बच्चे से एक मजबूत रिश्ता बनाएं।
- सही रिकॉर्ड बनाए रखें।
- स्कूल और सोशल गेथरिंग्स अटेंड करें।
- ध्यान रखें आप जो भी कर रहे हैंवह बच्चे के हित में ही हो।
चाइल्ड कस्टडी का केस फाइल करने के लिए किस प्रोसेस को फॉलो करना जरूरी है:
चाइल्ड कस्टडी की मांग करने वाले हस्बैंड या वाइफ को नाबालिग बच्चे की लीगल कस्टडी, टेम्पररी कस्टडी या फिर मिलने के राइट्स लेने के लिए एक पिटीशन फाइल करनी होती है।
पेरेंट्स और उनके संबंधित गवाहों, यदि कोई हो, दोनों द्वारा साक्ष्य को बंद करने के बाद, अंतिम तर्क और परिणामी निर्णय किया जाता है।
बाल हिरासत के मामले ज्यादातर संवेदनशील होते हैं, माता-पिता, संबंधित काउंसल, साथ ही न्यायाधीश (न्यायाधीशों) दोनों के लिए मांग के साथ-साथ चुनौतीपूर्ण भी होते हैं और इसलिए अदालतें अक्सर परामर्शदाताओं, मनोवैज्ञानिक और बाल हिरासत के मुद्दों से निपटने वाले अन्य विशेषज्ञों जैसे विशेषज्ञों की मदद लेती हैं।
चाइल्ड कस्टडी लॉज़:
भारत में चाइल्ड कस्टडी के केसिस इन सभी लॉज़ के अंदर आते हैं:-
- गार्डियन एंड वार्ड एक्ट, 1890
- हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 का सेक्शन 26
- हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956
- स्पेशल मैरिज एक्ट, 1958 का सेक्शन 38
- हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट, 1956
- मुस्लिम लॉ के तहत कस्टडी
- हिंदू लॉ के तहत कस्टडी
चाइल्ड कस्टडी का केस कहाँ फाइल करें:
चाइल्ड कस्टडी के केस फैमिली कोर्ट के में फाइल किए जाते हैं ,जहां नाबालिग बच्चा वर्तमान में रहता है।
हम आपकी किस प्रकार मदद कर सकते हैं?
लीड इंडिया आपको लॉयर्स की एक लम्बी लिस्ट देती है, जो आपके लिए परेशानी मुक्त मुकदमेबाजी सुनिश्चित करेंगे। हम चाइल्ड कस्टडी, कस्टडी के अधिकार, डाइवोर्स, कोर्ट मैरिज, डाइवोर्स की पिटीशन फाइल करने आदि जैसे अलग-अलग डोमेन में काम करने वाले बेस्ट लॉयर्स की एक टीम की पेशकश करते हैं और उनकी स्पेशल एडवाइस के साथ आपका मार्गदर्शन करते हैं।