क्या भारत में पोर्न देखना गैरकानूनी है?

क्या भारत में पोर्न देखना गैरकानूनी है

पोर्नोग्राफी या पोर्न एक सेक्सुअल फोटो या वीडियो होता है, जिसे कामुकता पैदा करने के लिए या यौन उत्तेजना के उद्देश्य से बनाया जाता है। भारत में अकेले या प्रायवेटली पोर्न देखना कानूनन अपराध नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एक अडल्ट को उसकी पर्सनल आज़ादी के मौलिक अधिकार से वंचित भी किया जा सकता है, मतलब अपने कमरे के प्रायवेट स्पेस में पोर्न देखना।

पोर्नोग्राफिक मीडिया का यूज़ कानून के तहत कुछ केसिस में अपराध हो सकता है जैसा कि-

– भारतीय दंड संहिता, 1860

सेक्शन 292 और 293 के तहत, अश्लील वस्तुओं, फोटो, वीडियो आदि को बेचना, सोशल मीडिया या किसी अन्य तरीके से अश्लील चीजों को फ़ैलाना आदि इनवैलिड या गैरकानूनी है। 2013 में निर्भया केस के बाद, इंडियन पीनल कोड, 1860 में संशोधन करके एक नया सेक्शन 354 डी को जोड़ा गया था। जिसमें कहा गया है कि “एक महिला के इंटरनेट, ईमेल या किसी अन्य प्रकार के कम्युनिकेशन यूज़ करने की निगरानी करना” सेक्शन 354D (b) के तहत अपराध है। इस प्रकार, सोशल मीडिया अकाउंट से महिलाओं की फोटोज़ इकठ्ठा करने पर तीन साल तक की जेल की सजा हो सकती है।

– इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) एक्ट 2000

सेक्शन 66 एफ में यह प्रावधान है कि, “किसी भी व्यक्ति के प्राइवेट पार्ट की फोटोज़ को उसकी सहमति के बिना पब्लिक या प्रकाशित करना” दंडनीय अपराध है। इसके लिए तीन साल की जेल या दो लाख रुपये या दोनों हो सकता है। 

इस ऐतिहासिक फैसले में जस्टिस के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और Anr v U.O.I. और अन्य (2018), प्राइवेसी का अधिकार संविधान के पार्ट III में जीवन के अधिकार के तहत एक बेसिक/बुनियादी अधिकार है।

सेक्शन 67 में अश्लील चीजों का प्रकाशन/पब्लिकेशन करने पर तीन (3) से पांच (5) साल की जेल की सजा और 10 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। सेक्शन 67 ए कुछ भी ऐसा प्रकाशित करने या भेजने के केस में लागू होती है, जो सेक्सुअल कामों या आचरणों को साफ़ शो करती है। ऐसा करने पर 10 लाख रुपये के जुर्माने के साथ पांच साल तक की जेल की सजा हो सकती है। 

– यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012

इस एक्ट का मेन उद्देश्य बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना और बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण को रोकना है। POCSO एक्ट के चैप्टर III में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति अपने अश्लील उद्देश्यों के लिए किसी भी नाबालिग बच्चे का यूज़ नहीं कर सकता है। अश्लील कामों के लिए नाबालिगों का यूज़ करने पर सेक्शन 14(1) के तहत पांच साल तक की जेल की सजा और जुर्माने की सजा दी जाती है।

– महिला अश्लील प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम 1986 (IRWA)

यह एक्ट विज्ञापनों, प्रकाशनों, लेखन, पेंटिंग, आंकड़े और अन्य रूपों में महिलाओं के अश्लील प्रदर्शन को बैन करता है।

 भारत में पोर्न देखने की लीगलिटी:

-2015 के एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि निजी/ पर्सनल कमरे में पोर्न देखना संविधान के व्यक्तिगत स्वतंत्रता/पर्सनल लिबर्टी के अधिकार के तहत आ सकता है। हालांकि, अगर इसे प्राइवेट स्पेस में भी देखा जाये, तो भी चाइल्ड पोर्नोग्राफी, रेप, या महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित चीजों को देखना और इकठ्ठा करना अवैध और गैरकानूनी है।

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2014 में, अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के केस में हिकलिन टेस्ट को खारिज कर दिया गया। इस टेस्ट में एक स्टैण्डर्ड रूल था, जिसके तहत कुछ पर्टिकुलर काम,आचरण, सामान को भारत में अश्लील माना जाता था। अब इस टेस्ट के बजाय कम्युनिटी स्टैण्डर्ड टेस्ट का यूज़ किया जा रहा है। 

निष्कर्ष:

निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि,

a) अकेले में पर्सनली ‘एडल्ट पोर्नोग्राफ़ी’ देखना लीगल है। 

b) पोर्नोग्राफ़ी बनाना इललीगल/अवैध है। 

c) किसी भी उम्र की महिला, वाइफ या दोस्त को पोर्न देखने के लिए मजबूर करना इललीगल/अवैध है। 

d) चाइल्ड पोर्नोग्राफी पूरी तरह से प्रतिबंधित/बैन है। चाहे इसे देखना, स्टोर करना या बनाना सब इललीगल है। 

e) पोर्नोग्राफ़ी मूवी या वीडियोस के लिंक शेयर करना अवैध है। 

f) पब्लिक में या ग्रुप में पोर्न देखना अवैध है।

लीड इंडिया एक्सपेरिएंस्ड लॉयर्स प्रदान करता है, जो कोर्ट केसिस से रिलेटेड मामलों में हेल्प और एडवाइस दे सकते हैं। साथ ही, लीगल मैटर्स पर सही रास्ता भी दिखा सकते हैं।

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