आर्बिट्रेशन के फैसले में देरी होने पर उसके फैसले को चैलेंज किया जा सकता है।

आर्टीब्रेशन के फैसले में देरी होने पर उसके फैसले को चैलेंज किया जा सकता है।

जज विभु बाखरू की सिंगल जज बेंच ने कहा कि अगर बिना किसी वैलिड रीज़न के आर्बिट्रल अवार्ड में देरी होती है, तो ऐसे केसिस में आर्बिट्रेशन के फैसले को चैलेंज किया जा सकता है। इस केस के दौरान यह माना गया कि बिना किसी एक्सप्लेनेशन दिए आर्बिट्रेशन के फैसले में देरी करना भारत की पब्लिक पोलिसी के अगेंस्ट है। साथ ही, इसे आर्बिट्रेशन एंड कंसीलिएशन एक्ट, 1996 के सेक्शन 34 के तहत चैलेंज किया जा सकता है।

केस क्या था:

शुरुवात में, पिटीशनर, सीआरपीएफ(Central Reserve Police Force) के डायरेक्टर जनरल ने, बोली लगाते हुए एक टेंडर पास किया था। इसके साथ ही, रेस्पोंडेंट फाइब्रोप्लास्ट मरीन प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी ने उस बिड को समिट करते हुए, उसे सक्सेसफुल डिक्लेअर कर दिया गया। लेकिन, एग्रीमेंट साइन होने के बाद, एक डिस्प्यूट पैदा हुआ। दरअसल, रेस्पोंडेंट कम्पनी ने एग्रीमेंट के रूल्स को फॉलो करने से मना कर दिया और आर्बिट्रेशन फाइल करने का फैसला लिया। इसके बाद, रेस्पोंडेंट कम्पनी ने ए एंड सी एक्ट, 1996 के सेक्शन 11 के तहत, आर्बिट्रेशन फाइल करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में एक पिटीशन फाइल की। जिसके परिणामस्वरूप, डिस्प्यूट को सॉल्व करने के लिए कोर्ट द्वारा एक आर्बिट्रेटर अप्पोइंट किया गया। इस प्रकार केस को दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (डीआईएसी) में ट्रांसफर कर दिया गया था। आर्बिट्रेटर ने रेस्पोंडेंट के फेवर में अपना फैसला सुनाया, जिसके जवाब में पिटीशनर ने ए एंड सी एक्ट,1996 के सेक्शन 34 के तहत दिल्ली हाई कोर्ट में चैलेंज किया था।

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पिटीशनर ने कोर्ट के सामने यह प्रेजेंट किया कि आर्बिट्रेशन द्वारा फैसला लेने और हियरिंग कम्पलीट होने में 18 महीने की देरी हुई, और यह देरी क्यों हुई इस बात को भी एक्सप्लेन नहीं किया गया। साथ ही, यह भी कहा कि यह कार्यवाही आर्बिट्रेशन अवार्ड डीआईएसी के रूल्स के अगेंस्ट की गयी थी। डीआईएसी के 36(2) रूल में प्रोविज़न है कि कार्यवाही 6 महीने में पूरी हो जानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि कार्यवाही में दिए गए टाइम से 3 गुना ज्यादा टाइम लगा। 

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कोर्ट ने कहा कि कार्यवाही में बिना किसी एक्सप्लेनेशन के लगभग 2 साल तक के टाइम पीरियड की देरी हुई और इसे बिलकुल भी सही नहीं ठहराया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि हरजी इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड v भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और Anr (2008) के केस में, दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि आर्बिट्रल अवार्ड के फैसले लेने में बिना किसी एस्प्लेनड रीज़न के देरी होना न्याय/जस्टिस के अगेंस्ट है। 

इस प्रकार, कोर्ट ने माना कि एक आर्टिब्रल अवार्ड, जो न्याय को ही हरा देता है, वह भारत की पब्लिक पोलिसी के अगेंस्ट है। कोर्ट ने माना कि, फैसला लेने में बहुत ज्यादा और अनएक्सप्लेनड देरी भारत की पब्लिक पोलिसी के अगेंस्ट है, जिस वजह से 1996 के एक्ट के सेक्शन 34 (2) (बी) (ii) के तहत इसे चैलेंज किया  जा सकता है।

इस प्रकार, कोर्ट ने आर्बिट्रेशन के फैसले को रद्द कर दिया और पिटीशन को परमिशन दे दी।

निष्कर्ष:

लास्ट में यही कहा जा सकता है कि पार्टी आर्टिब्रेशन की कार्यवाही को फॉलो करने का फैसला इसीलिए लेती हैं ताकि कोर्ट द्वारा केसिस का फैसला करने में लगने वाले टाइम को कम किया जा सके और साथ ही साथ उन्हें कोर्ट की बिज़ी हियरिंग्स को फॉलो ना करना पड़े। हालांकि, अगर आर्बिट्रेशन को फैसला लेने में इतना ज्यादा टाइम लगेगा, तो इसके फैसले पर भरोसा करना लोगों के लिए काफी मुश्किल हो जायेगा। जो कि हमारे देश के कानून के लिए अच्छी बात नहीं है। 

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