भारत में फोर्थ नंबर पर आने वाला सबसे मुख्य क्राइम रेप है। रेप को आम तौर पर पुरुष द्वारा, एक महिला के अगेंस्ट किया गया क्राइम माना जाता है। हालाँकि, यह क्राइम पुरुषों, होमोसेक्सुअल्स और ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के अगेंस्ट भी होता है। यूनाइटेड स्टेटस अमेरिका में डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन सेंटर द्वारा की गयी एक स्टडी से क्लियर पता चला है कि इंटरव्यू किए गए हर 17 पुरुषों में से 1 को अपने जीवन में कभी न कभी सेक्सुअल रिलेशन्स बनाने के लिए मजबूर किया गया है और इनमें से 86.5% केसिस में यह क्राइम पुरुषों द्वारा किया गया है।
हाल ही में, एक डाइवोर्स हुए कपल के बीच कस्टडी को लेकर डिस्प्यूट की सुनवाई करते हुए, जज ए मोहम्मद मुस्तक ने मौखिक टिप्पणी की कि रेप को इंडियन पीनल कोड के तहत एक जेंडर न्यूट्रल ओफ्फेंस बनाया जाना चाहिए। केरल हाई कोर्ट ने कहा कि, “अगर कोई महिला शादी करने का झूठा वादा करके किसी पुरुष को धोखा देती है या उसे किसी तरह से सेक्सुअल रिलेशन्स बनाने के लिए मजबूर करती है, तो बाद में पुरुष पर लड़की का रेप करने या कोई अन्य केस नहीं चलाया जा सकता, लेकिन पुरुष उसी क्राइम के लिए महिला पर केस कर सकता है”।
सुनवाई के दौरान, वाइफ के पिटीशनर ने तर्क दिया कि बच्चे का पिता रेप का आरोपी है, जिस पर हस्बैंड की तरफ के काउंसलर ने कहा कि पिता को बेल पर रिलीज़ कर दिया गया है क्योंकि कोर्ट ने पाया कि उस पर “शादी करने के झूठा वादा करके सेक्सुअल रिलेशन्स बनाने” का आरोप निराधार/बेसलेस था।
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कोर्ट ने यह बात महसूस की कि आईपीसी का सेक्शन 376(रेप के लिए सज़ा) एक जेंडर न्यूट्रल प्रोविज़न नहीं है। दरसल, सेक्शन 375(4) में कहा गया है कि एक पुरुष को रेप करने के लिए दोषी माना जायेगा, अगर वह जानता है कि वह जिस महिला के साथ सेक्सुअल रिलेशन्स बना रहा है वह उसका हस्बैंड नहीं है और सेक्सुअल रिलेशन बनाने के लिए लड़की की सहमति इस विश्वास पर है कि वह पुरुष उसका लीगल हस्बैंड है या इन फ्यूचर वह उससे शादी करेगा।
2018 में, सुप्रीम कोर्ट में क्रिमिनल जस्टिस सोसाइटी ऑफ इंडिया नाम की एक एनजीओ ने एक पिटीशन फाइल की थी। इस पिटीशन के तहत मांग रखी गयी थी कि रेप लॉ के तहत पुरुषों और ट्रांसजेंडर्स को भी अपने साथ रेप होने पर कम्प्लेन कराने का अधिकार दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मांग वैलिड है, लेकिन एक मौजूदा प्रोविज़न को नए कानून के लाए बिना खत्म नहीं किया जा सकता है।
पुरुष विक्टिम्स के फेवर में लॉ:
भारत में पुरुष विक्टिम्स के लिए कोई स्पेशल लॉ नहीं है। हालाँकि, आईपीसी का सेक्शन 377 अननेचुरल ओफ्फेंसिस को डिफाइन करता है और किसी भी पुरुष, महिला या जानवर के साथ नेचर के आर्डर के अगेंस्ट सेक्सुअल रिलेशन्स बनाने को क्राइम घोषित करता है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सेक्शन 377 के तहत क्राइम नहीं माना जायेगा अगर सेक्सुअल एक्ट दो एडल्ट्स के बीच सहमति से किया जाता है।
साथ ही, पोक्सो एक्ट में बच्चे के साथ किये गए किसी भी सेक्सुअल असाल्ट को क्राइम घोषित किया गया है। इस एक्ट के तहत बच्चे का जेंडर मैटर नहीं करता है।
हालांकि, एडल्ट पुरुषों के लिए सेक्सुअल हैरेसमेंट की कंप्लेंट फाइल करने के लिए अभी तक कोई पर्टिकुलर प्रोविज़न नहीं है, लेकिन जब तक नया कानून नहीं आ जाता तब तक पुरुष भी आईपीसी के सेक्शन 376(रेप के लिए सज़ा) के तहत अपनी कम्प्लेन करा सकते है । पुराने टाइम से चले आ रहे विश्वास कि शोषण सिर्फ महिलाओं का किया जाता है, इस सोंच ने पुरुषों को कमजोर बना दिया है। आज के समय में कानून बनाते समय इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि महिलाओं के फेवर में कानून बनाये जाने की वजह से पुरुषों को किस तरह के शोषण का सामना करना पड़ रहा है। कानून बनाते समय यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि महिलाओं की सेफ्टी के लिए बनाये गए स्पेशल लॉ का समाज के दूसरे लोगों पर किस तरह का असर पड़ता है।
लीड इंडिया अपने क्लाइंट्स को बहुत अच्छे एक्सपीरिएंस्ड लॉयर्स प्रदान करता है, जो अलग अलग लीगल मैटर्स के स्पेशलिस्ट हैं। रेप, सेक्सुअल अब्यूज़, हरैसमेंट, मर्डर आदि से जुड़े क्राइम्स में आपको लीगल हेल्प के साथ-साथ एडवाइस भी प्रोवाइड कराता है।