हाल ही में, दिल्ली हाई कोर्ट ने (जूकी प्राइवेट लिमिटेड v मेसर्स कैपिटल अपेरल्स टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड) के केस में फैसला किया कि अगर दोनों पार्टियों द्वारा साइन किये हुए एक मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग में कहा गया है कि बचे हुए अमाउंट की पेमेंट के लिए आर्टिब्रेशन सुनवाई की मांग की जा सकती है, तो आर्टिब्रेशन की मांग करने का पार्टियों को हक़ है। तो मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग की कंडीशंस के किसी भी ऐसे उल्लंघन के लिए आर्टिब्रेशन की मांग की जा सकती है, भले ही मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग में कोई आर्टिब्रेशन क्लॉज़ ना हो।
केस के फैक्ट्स:
जूकी प्राइवेट लिमिटेड के केस के फैक्ट्स इस प्रकार हैं:
- पार्टियों मतलब जूकी प्राइवेट लिमिटेड(पिटीशनर) और एम्/एस कैपिटल अपेरल्स टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड (रेस्पोंडेंट) ने एक डिस्ट्रीब्यूशन एग्रीमेंट पर साइन किए। बाद में कुछ डिस्प्यूट उत्पन्न हुआ, जिसमें पार्टियों ने पिछले सभी बकाया ड्यूज़ को क्लियर करने के लिए एक मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग पर साइन किए, और रेस्पोंडेंट ने पिटीशनर को सभी बकाया अमाउंट पे करने के लिए सहमती दिखाई थी।
- जब रेस्पोंडेंट मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग की कंडीशंस को पूरा नहीं कर पाया तो पिटीशनर ने एक डिमांड नोटिस जारी किया था। बाद में, पिटीशनर ने एग्रीमेंट में दोनों पार्टियों द्वारा तय किए गए आर्टिब्रेशन क्लॉज़ को लागू किया।
- पिटीशनर द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट के सामने A&C एक्ट के सेक्शन 11(6) के तहत पार्टीज़ के बीच डिस्प्यूट पर फैसला लेने के लिए एक आर्टिब्रेटर को अप्पोइंट करने के लिए एक एप्लीकेशन फाइल की गयी थी।
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- रेस्पोंडेंट एम्/एस कैपिटल अपेरल्स टेक्नोलॉजी द्वारा हाई कोर्ट के सामने यह तर्क दिया गया था कि पार्टियों के बीच डिस्प्यूट को मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग के तहत सोल्व किया गया था, हालांकि एग्रीमेंट मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग में कोई आर्टिब्रेशन क्लॉज़ नहीं था। इसलिए, पिटीशनर द्वारा को आर्टिब्रेशन क्लॉज़ को लागू नहीं किया गया था। साथ ही, हाई कोर्ट के पास पिटीशन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।
- पिटीशनर द्वारा यह तर्क दिया गया था कि डिस्ट्रीब्यूशन एग्रीमेंट में किसी भी प्लेस के जिक्र नहीं किया गया था और ना ही किसी भी सेक्शन के तहत किसी पर्टिकुलर कोर्ट के टेरेस्ट्रियल जूरिस्डिक्शन का फैसला नहीं किया था। साथ ही, यह भी बताया गया था कि आर्टिब्रेशन की कार्यवाही ऑर्गनाइज़ करने के लिए कोई “पर्टिकुलर प्लेस” या “सीट” तय नहीं की गयी थी।
- पिटीशनर ने अर्का स्पोर्ट्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड v कलसी बिल्डकॉन प्राइवेट लिमिटेड (2020) के केस में दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले को रेफर किया। इस केस में दिल्ली हाई कोर्ट ने माना कि अगर दोनों पार्टियों द्वारा आर्बिट्रेशन की सीट तय नहीं है, तो यह सीट आर्बिट्रेशन एंड कौंसिलिएशन एक्ट के सेक्शन 20 (2) के तहत आर्बिट्रेटर ट्रिब्यूनल द्वारा तय की जाएगी। साथ ही, अगर तब भी आर्बिट्रेटर का फैसला नहीं लिया गया, तो ए एंड सी एक्ट के सेक्शन 11 के तहत एप्लीकेशन पर विचार करने के लिए ए एंड सी एक्ट के सेक्शन 16 से 20 (के साथ पढ़ा जाना चाहिए) सीपीसी के सेक्शन 2 (1)(e) के तहत “कोर्ट” को डिफाइन किया जायेगा।
- जैसा कि सीपीसी के सेक्शन 20 में प्रोविज़न है कि केस उस कोर्ट में फाइल किया जा सकता है, जिसके अधिकार क्षेत्र/जूरिस्डिक्शन में रेस्पोंडेंट पार्टनर रहता है, काम करता है या जहां कार्रवाई करने की वजह पूरे या अधूरे रूप से उतपन्न हुई है।
जजमेंट-
- हाई कोर्ट द्वारा यह देखा गया कि रेस्पोंडेंट का रजिस्टरड ऑफिस दिल्ली में है, साथ ही रेस्पोंडेंट के अगेंस्ट दिल्ली में कुछ चालान/ इन्वॉइसीस भी किए गए थे।
- अत: अरका स्पोर्ट्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड v कलसी बिल्डकॉन प्राइवेट लिमिटेड (2020) के केस में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले और ए एंड सी एक्ट के सेक्शन 2 (1) (ई) (i) और सीपीसी के सेक्शन 20 के तहत प्रोविज़न को ध्यान में रखते हुए यह पाया गया कि दिल्ली हाई कोर्ट के पास पिटीशन पर फैसला करने के लिए टेरेस्ट्रियल जूरिस्डिक्शन का अधिकार है।
- कोर्ट ने माना कि यह डिस्प्यूट डिस्ट्रीब्यूशन एग्रीमेंट की वजह से उत्पन्न हुआ था और मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग भी लेनदेन का एक हिस्सा था, जो डिस्ट्रीब्यूशन एग्रीमेंट से उत्पन्न हुआ था। डिस्ट्रीब्यूशन एग्रीमेंट ने आर्बिट्रेशन क्लॉज़ दिया था। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि दोनों पार्टियों के बीच हुए इस डिस्प्यूट को आर्बिट्रेशन के लिए भेजा जा सकता है।