सुप्रीम कोर्ट ने हरि शंकर रस्तोगी v गिरिधर शर्मा (1978) के केस में यह ऑब्ज़र्व किया कि ‘बार काउन्सि जुडीशियल सिस्टम का ही विस्तार/एक्सटेंशन है और एक एडवोकेट कोर्ट का एक ऑफ़िसर होता है। एक एडवोकेट कोर्ट के प्रति जवाबदेह होता है और हाई प्रोफेशनल एथिक्स के द्वारा चलाया जाता है। जुडीशियल सिस्टम की सफलता अक्सर लीगल प्रॉफ़ेशन की सेवाओं पर ही डिपेंड करती है।
साल 1990 में हवाना, क्यूबा में आयोजित की गई ‘आठ संयुक्त राष्ट्र कांग्रेस’ अपराधों की रोकथाम और अपराधियों के उपचार से रिलेटेड थी। इसमें भारत भी एक पार्टिसिपेंट्स था, जिसने “लॉयर्स के रोल पर बेसिक सिद्धांतों” को अपनाया था। डिक्लेरेशन के क्लॉज़ 16-18 में “लॉयर के कामकाज की गारंटी” को डेस्क्रिबे किया गया है-
क्लॉज़ 16-
- लॉयर बिना किसी धमकी, बाधा, उत्पीड़न या गलत इंटरफेयर का सामना किए अपना काम कर सकते हैं,
- वे अपने क्लाइंट से सलाह करने के लिए देश के अंदर या बाहर स्वतंत्र रूप से ट्रेवल कर सकते हैं,
- उन्हें अपने प्रोफेशनल ड्यूटीज़ और एथिक्स के दौरान किए गए किसी भी काम के लिए किसी भी अभियोजन या आर्थिक या प्रशासनिक या किसी अन्य तरीके से धमकाया या पीड़ित नहीं किया जाना चाहिए।
क्लॉज़ 17-
अगर एडवोकेट को अपना कर्तव्य निभाते समय धमकी दी जाती है, तो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना ऑफिसर्स की जिम्मेदारी होती है।
क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?
क्लॉज़ 18-
जैसा कि लॉयर ने अपने क्लाइंट्स को रिप्रेजेंट किया है, एक वकील की पहचान उसके क्लाइंट के द्वारा नहीं की जानी चाहिए।
इस प्रकार, डिक्लेरेशन के पीछे मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि एडवोकेट बिना किसी डर या दबाव के अपनी प्रोफेशनल ड्यूटीज़ प्रदान कर सकें ताकि अंततः न्याय किया जा सके और कानून का शासन स्थापित किया जा सके।
एडवोकेट्स (प्रोटेक्शन) बिल, 2021 को साल 1990 में भारत द्वारा साइन किये गए डिक्लेरेशन(ऊपर बताया गया) पर विचार किया गया था। बिल में 14 क्लॉज़ हैं, बिल के कुछ जरूरी पॉइंट्स नीचे बताये गए हैं-
सेक्शन 2 –
इन निचे समझे गयी सभी डेफिनेशंस से रिलेटेड है-
“वायलेंस का काम” किसी भी कोर्ट के सामने मुकदमेबाजी की प्रोसेस को प्रभावित करने के इरादे से किसी लॉयर के अगेंस्ट किसी भी व्यक्ति के कामों को बताता है। वह सब इसमें शामिल हो सकते हैं-
- जीवन या रहने की सिचुएशन को एफेक्ट करने वाला उत्पीड़न, जबरदस्ती या अटैक
- कॉउचर के प्रेमिसिस के अंदर एडवोकेट्स की ज़िंदगी के लिए गंभीर नुकसान या साधारण चोट, चोट या खतरा अन्यथा
- किसी भी ऐसे विशेष जानकारी को प्रकट करने के लिए जबरदस्ती करना, जो लॉयर, कानून के तहत रखने के लिए बाध्य है
- अपने केस का प्रतिनिधित्व न करने या वकालतनामा वापस लेने के लिए जबरदस्ती
- जुडिशल या सेमि-जुडिशल कार्यवाही के दौरान किसी भी प्रकार की अपमानजनक भाषा का प्रयोग करना।
सेक्शन 3 –
ऊपर बताये गए अपराधों के लिए दंड से रिलेटेड है। इसमें 5 से 10 साल की सजा या 1-2 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
सेक्शन 4-
अपराधों के मुआवज़े/कंपनसेशन से रिलेटेड है। यह कोर्ट द्वारा एडवोकेट या किसी प्रॉपर्टी को हुए किसी भी नुकसान के लिए दिया जाता है।
सेक्शन 5-
अपराधों की प्रकृति और कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से रिलेटेड है-
- सेक्शन 3 के तहत अपराध संघेज्ञ और गैर-जमानती होंगे
- फाइल किये गए केसिस की चेकिंग एक पुलिस ऑफ़िसर द्वारा की जाएगी जो सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस के पद से नीचे का न हो
- चेकिंग 30 दिनों की के अंदर पूरी की जाएगी
- अपराध का सेशन और डिस्ट्रिक्ट जज से नीचे के कोर्ट द्वारा नहीं किया जाएगा
सेक्शन 8-
एडवोकेट इंस्टिट्यूट के ऑफिसर्स माने जाते हैं- कोर्ट के सामने पार्टी का फेवर लेने वाला एडवोकेट ऐसी इंस्टीटूशन का ऑफिसर समझा जाएगा।
सेक्शन 10-
एडवोकेट के साथ मिसबिहैव से रिलेटीड है-
- अगर कोर्ट या जुरिडिक्शन के सामने दुर्भावनापूर्ण इरादे से किसी एडवोकेट के अगेंस्ट कोई कार्यवाही केस के निष्पक्ष व्यवहार के प्रोसेस को गलत करने के लिए पाई जाती है, तो यह कार्यवाही, फाइन के साथ खारिज ककर दी जाएगी।
- कोई भी व्यक्ति जो एडवोकेट के अगेंस्ट इस तरह की दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही शुरू करता पाया जाता है, वह कोर्ट द्वारा तय किये गए अमाउंट या फाइन का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है, जो कि 1 लाख रुपये से कम नहीं होगी।
सेक्शन 11-
एक पब्लिक सर्वेंट के लीगल व्यवसायी से विशेषाधिकार प्राप्त जानकारी प्राप्त करने के केस में जबरदस्ती के रूप में अनुमान लगाने से रिलेटेड है।
लीड इंडिया एक्सपेरिएंस्ड लॉयर्स की एक बड़ी संख्या करता है, जिनके पास लीगल मैटर्स को सॉल्व करने का अच्छा एक्सपीरिएंस है, जैसे कि क्रिमिनल लॉ, सिविल लॉ, फॅमिली लॉ, कॉर्पोरेट फील्ड, आदि।