हाल ही में देबनादा तमुली v श्रीमती काकुमोनी (2022) के केस में जस्टिस अजय रस्तोगी और अभय एस ओका की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने डिज़रशन के बेस पर डाइवोर्स ग्रांट कर दिया। ऐसा इसीलिए क्योंकि वाइफ अपने ससुराल मर नहीं रह रही थी और ना ही कोई वैलिड रीज़न बता रही थी।
केस के फैक्ट्स:
कपल 2009 से अलग रह रहे थे और इस दौरान वाइफ सिर्फ एक बार अपने ससुराल आई। हस्बैंड ने क्रूरता/क्रुएलिटी के आधार पर वाइफ के अगेंस्ट डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसकी फाइल की गयी पिटीशन को कोर्ट ने खारिज कर दिया। बाद में, उन्होंने गुवाहाटी हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनकी अपील फिर से खारिज कर दी गई।
इस प्रकार, हस्बैंड ने भारत के सुप्रीम कोर्ट में अपील की तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस समय अवधि के दौरान वाइफ केवल एक बार अपने ससुराल गई थी, इसलिए यह कहा जा सकता है कि कोई सेक्सुअल रिलेशन नहीं बने थे। साथ ही, कोर्ट ने कहा कि केस के फैक्ट्स से वाइफ की तरफ से साफ़ साफ़ अलगाव साबित हो गया है।
इसके बाद, कोर्ट ने अपील को आंशिक रूप से पास करते हुए शादी को भंग कर दिया। साथ ही, हस्बैंड को 15,00,000 रुपये देने का आर्डर भी पास किया।
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डाइवोर्स का आधार – परित्याग/डिजर्शन:
हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के सेक्शन 13 (1) (आई) के तहत डाइवोर्स के आधार के रूप में परित्याग दिया गया है। परित्याग/डिजर्शन का मतलब बिना किसी वैलिड रीज़न और बिना पार्टनर की सहमति के अपने जीवनसाथी का जानबूझकर परित्याग कर देना होता है।
बेसिकली चार एलिमेंट्स को परित्याग करना समझा जाता है –
- फैक्टम डिसेरेन्डी – अलगाव का फैक्ट।
- एनिमस डिसेरेन्डी – छोड़ने का इरादा।
- सहमति ना होना।
- ऐसा बेहेवियर जो सामने वाले पार्टनर को छोड़ने पर मजबूर करे।
बिपिन चंद्र v प्रभावती के केस में, सुप्रीम कोर्ट ने देखा है कि ‘परित्याग’ शब्द की परिभाषा इंग्लैंड के हल्सबरी के कानून में उपयुक्त रूप से परिभाषित की गई है, जो ना केवल एक जगह से बल्कि एक सिचुएशन से वापसी के रूप में परित्याग को डिस्क्राइब करता है। जिसे मैरिड स्टेट के सामान्य दायित्वों के रूप में मान्यता प्राप्त है।
छोड़ कर जाना रियल या अनरियल भी हो सकता है। रियल डिज़रशन में, ससुराल को पूरी तरह से छोड़ दिया जाता है, जबकि अनरियल डिज़रशन के केस में शादी से सम्बंधित रिश्तों का परित्याग होता है, इसे क्रूरता भी कहा जा सकता है। शादी से रिलेटीड रिश्तों का त्याग भी त्याग करने के इरादे से किया जाना चाहिए। इस प्रकार, शादी के संबंधों में होने वाली छोटी मोटी बातों या अनबन को परित्याग के आधार के रूप में नहीं गिना जाएगा।
अगर एक हस्बैंड या वाइफ चाहे बुरा बोलकर या किसी भी तरह के एक्शन के द्वारा अपने पार्टनर को शादी का संबंध छोड़ कर जाने के लिए मजबूर करता है, तो घर छोड़ने वाला पार्टनर त्याग/डिज़र्टेर नहीं होगा, लेकिन वह हस्बैंड या वाइफ जिसने उसे घर छोड़ने के लिए मजबूर किया उसे त्यागी माना जायेगा।
इस प्रकार, परित्याग को केवल घर या रिश्ते को छोड़कर जाने के रूप में डिफाइन नहीं किया जा सकता, बल्कि हर केस के फैक्ट्स को ठीक से समझने के बाद ही तय किया जाना चाहिए कि शादी के संबंधों को तोड़ने के लिए कौन सा पार्टनर जिम्मेदार है।
विनोद v श्रीमती संगीता के केस में वाइफ ने केवल एक हफ्ते में ही अपना ससुराल छोड़ दिया, हस्बैंड ने वाइफ के अगेंस्ट परित्याग और क्रूरता के आधार पर डाइवोर्स फाइल किया। हालांकि, इस केस में हस्बैंड और उसकी फैमिली को आईपीसी के सेक्शन 498ए और 406 के तहत वाइफ द्वारा फाइल की गयी कंप्लेंट पर दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने आर्डर किया कि ने फैसला सुनाया कि हस्बैंड पर लगाए गए इलज़ाम साबित हुए है कि वाइफ के पास ससुराल छोड़ने की बहुत सी वजहें थी इसीलिए वाइफ को परित्याग करने के रूप में नहीं माना जायेगा।
इस प्रकार, परित्याग को एक फिक्स पैटर्न में डिफाइन नहीं किया जा सकता है, कोर्ट को यह तय करना है कि जिस पार्टनर पर इलज़ाम लगाया गया है क्या वह सच में त्यागी है या उसे ससुराल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। यह अलग अलग केस के फैक्ट्स पर डिपेंड करता है।
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