केस टी. सदानंद पाई v सुजाता एस पाई के फैसले में, कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि रोजगार करने में सक्षम व्यक्ति अपनी वाइफ से पर्मनेंट एलिमनी नहीं मांग सकता है। हस्बैंड ने हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 25 के तहत मेंटेनेंस लेने के लिए एप्लीकेशन फाइल की थी, जिसे जस्टिस आलोक अराधे और जेएम खाजी की बेंच ने खारिज कर दिया था। बेंच की राय थी कि अपीलकर्ता एक सक्षम शरीर वाला व्यक्ति है और कमाई कर सकता है। और इस प्रकार सेक्शन 25 के तहत उनकी एप्लीकेशन को फैमिली कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया।
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केस के फैक्ट्स –
- अपीलकर्ता द्वारा यह तर्क दिया गया था कि उसकी वाइफ ने अपने बच्चे के जन्म से पहले फरवरी 1994 में ससुराल छोड़ दिया और बेटे के जन्म के बाद भी ससुराल वापस नहीं लौटी।
- बाद में अपीलकर्ता ने डाइवोर्स फाइल किया और सेक्शन 25 के तहत मेंटेनेंस के लिए भी फाइल किया। उसे 9 अगस्त 2015 को डाइवोर्स दे दिया गया लेकिन फॅमिली कोर्ट ने मेंटेनेंस की मांग को ख़ारिज कर दिया था।
- एप्लीकेशन में बताया कि रेस्पोंडेंट एक कोओपरेटिव सोसाइटी में असिस्टेंट मैनेजर का काम करती है जबकि हस्बैंड कॉन्ट्रैक्ट बेस पर एक मंदिर में सिक्योरिटी गार्ड था लेकिन अब उसकी नौकरी चली गई है। इस प्रकार, रेस्पोंडेंट हस्बैंड का मेंटेनेंस देने के लिए मजबूर है।
- रेस्पोंडेंट मतलब पहली वाइफ ने तर्क दिया कि उसकी सैलरी सिर्फ 8000 रुपये महीना था, जबकि उसे अपने बेटे की भी देखभाल करनी है जो अब 15 साल का है।
कोर्ट का फैसला –
- कोर्ट द्वारा यह देखा गया कि पर्मनेंट एलिमनी का फैसला लेने से पहले दोनों पार्टियों की फाइनेंसियल कंडीशन, पार्टी की जरूरतें, और अन्य प्रॉपर्टी को ऑब्ज़र्व करने के बाद ही फैसला लिया जाना चाहिए।
- कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता ने अपनी क्रॉस-एग्जामिनेशन में खुद एक्सेप्ट किया कि खेत और घर की प्रॉपर्टी में उसका कीमती हिस्सा है। साथ ही कोर्ट की राय थी कि अपीलकर्ता कमाने के लिए एक सक्षम व्यक्ति है।
- कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने कभी भी अपने बेटे की परवरिश के लिए खर्च नहीं दिया था जिसके लिए एक बड़े अमाउंट की जरूरत थी, साथ ही, उसकी पढ़ाई के लिए काफी पैसे की जरूरत होती थी जो खर्च अकेले रेस्पोंडेंट ने उठाया है।
- कोर्ट ने कहा कि ऊपर मेंशन किये गए तर्कों में कोई ऐसा रीज़न नहीं है जिससे फैमिली कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप किया जाये।
हस्बैंड किन सिचुऎशन्स में मेंटेनेंस के लिए फाइल कर सकता है?
- हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 25 के तहत, कोर्ट के फैसले के अनुसार एक फिक्स अमाउंट दिया जाना है। यह अमाउंट दावेदार की लाइफटाइम तक नहीं बल्कि कोर्ट द्वारा लिए गए डिसिशन के अनुसार, या तो हर महीने या एक फिक्स समय तक दिया जा सकता है।
- कोर्ट पार्टियों की फाइनेंसियल कंडीशन और सोशल स्टेटस के बेस पर ही दावेदार को दी जाने वाली मेंटेंनेस का अमाउंट तय करता है।
- दोनों पार्टियों की क्षमता को भी ध्यान में रखा जाता है।
- कोर्ट वाइफ की इनकम को भी ध्यान में रखती है ताकि उस पर कोई बोझ न डाला जाए।
- कोर्ट हस्बैंड की इनकम के साथ-साथ प्रॉपर्टीज़ को भी ध्यान में रखती है, और अगर पर्याप्त पाया जाता है तो ऐसे केस में कोर्ट हस्बैंड द्वारा मेंटेंनेस की एप्लीकेशन को एक्सेप्ट नहीं करती है।