डिसमायसल आर्डर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने क्लास-4 के एम्प्लोयी को दी राहत

SC GRANTS RELIEF TO CLASS-4 EMPLOYEE AGAINST DISMISSAL ORDER

यह ऑब्ज़र्व करते हुए कि ‘ड्यूटी से गायब होना पार्लियामेंट की शक्तियों या आर्मी में एक बड़ा कदाचार/मिसकंडक्ट है, लेकिन सिविलियन एम्प्लॉयमेंट के केस में ऐसा नहीं है’, सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल गवर्नमेंट के उस फैसले को क्रिटिसाइज़ किया, जिसमें एक ग्रेड IV के एम्प्लोयी को उसकी ड्यूटी से गायब होने पर मिनिस्ट्री ऑफ़ स्टील से बर्खास्त कर दिया गया था। 

केस के फैक्ट्स-

  • अपीलकर्ताओं के वकील जो की मिनिस्ट्री ऑफ़ स्टील के यूओआई और डायरेक्टर है उन्होंने कोर्ट को बताया कि ड्यूटी से गायब रहने के अलावा, रेस्पोंडेंट कई बार कैसुअल और अर्न लीव्स पर रहा है। और यह छुट्टियाँ उन ऑफिसर्स द्वारा अप्रूव की गयी है, जिनके पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था।
  • हालांकि, अपीलकर्ताओं ने यह साबित नहीं किया कि ऐसी छुट्टियां जानबूझकर ली गई थी। इस पर कोर्ट की राय थी कि पॉसिबल है कि रेस्पोंडेंट को यह विश्वास था कि ऐसे ऑफिसर्स के पास यह छुट्टी देने का अधिकार था।
  • कोर्ट ने यह भी देखा कि उन ऑफिसर्स के अगेंस्ट कोई कार्रवाई नहीं की गई जिन्होंने ऐसा करने का अधिकार नहीं होने के बावजूद ऐसी छुट्टी की अनुमति दी थी।
  • एम्प्लोयी पर उसकी बर्खास्तगी/डिस्मिस्सल के दौरान यह आरोप इस प्रकार थे-
  • रेस्पोंडेंट [09-02-1998 से 23-03-1998] और [24-03-1998 से 23-05-1998] के टाइम पीरियड के लिए अपनी ड्यूटी से लगातार गायब रहा।
  • एम्प्लोयी को रजिस्टर्ड पोस्ट के माध्यम से भेजा गया लेटर नहीं मिला, और इस प्रकार उसने अपने रेजिडेंशियल एड्रेस के बारे में ऑफिस को अंधेरे में रखा।
  • 1993-98 के बीच के टाइम पीरियड से, एम्प्लोयी बिना किसी पूर्व सूचना के लगातार ड्यूटी से गायब रहा।
  • कि एम्प्लोयी बिना छुट्टी को पहले से अप्रूव कराये लगातार अपनी ड्यूटी से गायब रहा।

जजमेंट – 

  • कोर्ट ने अपीलकर्ताओं के एडवोकेट्स से पूछा कि “बड़ी मछलियां पकड़ी नहीं जाती हैं और आप छोटे लेवल के कर्मचारी के खून के पीछे पड़ जाते हैं… क्या आपने अंडर सेक्रेटरी या सेक्शन ऑफ़िसर के अगेंस्ट कार्रवाई की, जिन्होंने अपनी शक्तियों से बढ़कर छुट्टी दी थी?”
  • कोर्ट ने माना कि रेस्पोंडेंट की तरफ से उस टाइम पीरियड के दौरान कोई कदाचार नहीं पाया जा सकता है जब उसने छुट्टी का लाभ उठाया था।
  • जिस टाइम पीरियड के दौरान रेस्पोंडेंट ड्यूटी से गायब था, कोर्ट ने कहा कि उसकी राय है कि एम्प्लोयी को ड्यूटी से बर्खास्त करने का फैसला “बहुत कठोर, अनुपातहीन और आरोप से कहीं ज्यादा था और न्याय करने का लक्ष्य रेस्पोंडेंट पर कुछ कम लेकिन बड़ी सज़ा लगाकर पर्याप्त रूप से पूरा किया गया है”।
  • सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत अपनी पावर को यूज़ करते हुए एम्प्लोयी की बर्खास्तगी के आर्डर को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा और स्टील मिनिस्टर को उक्त एम्प्लोयी को रीइंस्टेट करने के भी इंस्ट्रक्शंस दिए। 
  • बेंच ने यह भी देखा कि काम कर रहे एम्प्लाइज को दी जाने वाली पेंशन और अन्य गवर्नमेंट बेनिफिट्स लेने के लिए भी एम्प्लोयी 20 सालों की मिनिमम क्वालीफाइंग टाइम पीरियड तक के लिए ड्यूटी पर बना रहेगा।

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