शादी के बाद प्रेग्नेंसी और शादी से पहले प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं को आमतौर पर देखा जाता है, लेकिन समाज में अन्य लोगों द्वारा इसे एक्सेप्ट और सपोर्ट नहीं किया जाता है। कई बार यह देखा गया है कि जो महिलाएं रेप, सेक्सुअल हेररेस्मेंट और अन्य सहमति के बिना सेक्सुअल रिलेशन्स बनने की वजह से प्रेग्नेंट होती हैं, उन्हें एबॉर्शन कराने में परेशानी आ रही है, इसीलिए प्रेग्नेंट महिलाओं की इन कैटेगरीज के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए कई कानून और एक्ट बनाए गए है ताकि कई मुश्किल और अनचाही सिचुएशन से प्रेग्नेंट हुई महिलाओं की रक्षा की जा सके।
महिलाओं के ऐसे अधिकारों को बचाने और उनके जीवन को और ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए, एक एक्ट “मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट” बनाया गया है। इस एक्ट के द्वारा 20 हफ्ते से ज्यादा समय से प्रेग्नेंट महिला कानूनी रूप से एबॉर्शन करा सकती है।
हाल ही में, इसी तरह का एक केस तब सुर्खियों में आया जब दिल्ली हाई कोर्ट ने उन महिलाओं के बारे में एक आर्डर पास किया जो सहमति से प्रेग्नेंट हुई थीं, लेकिन 23 हफ्ते की प्रेग्नेंनसी के दौरान एबॉर्शन नहीं करा सकती थीं।
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दिल्ली हाई कोर्ट का आर्डर –
दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को 25 साल की अनमैरिड महिला को अंतरिम रिलीफ देने से मना कर दिया, जिसने अपने 23 हफ्ते और 5 दिन की प्रेग्नेंनसी को ख़त्म करने की अनुमति मांगी थी। बेंच ने कहा कि एक अनमैरिड महिला जो सहमति से सेक्सुअल रिलेशन्स बनाने की वजह से प्रेग्नेंट होती है, 2003 के मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के किसी भी सेक्शन के तहत नहीं आती है।
बेंच के जज ने कहा, कि पिटीशनर, एक अनमैरिड महिला, जो सहमति से सेक्सुअल रिलेशन्स बनाती है, स्पष्ट रूप से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के किसी भी क्लॉज़ के तहत नहीं आती है। परिणामस्वरूप, सेक्शन 3 (2)(बी) की अधिनियमता इस केस के फैक्ट्स पर लागू नहीं होती है।
केस के बारे में फैक्ट्स –
वह महिला मणिपुर से बिलोंग करती है और वर्तमान में दिल्ली में रहती है। अदालत के अनुसार, महिला की प्रेग्नेंनसी एक सहमति से बने रिश्ते का परिणाम है, लेकिन वह बच्चे को जन्म नहीं दे सकती है क्योंकि वह अभी अनमैरिड महिला है और उसके पार्टनर ने उससे शादी करने से मना कर दिया है। उसके लॉयर ने कोर्ट में आगे कहा कि अगर अनमैरिड महिला, जो सिर्फ आर्ट्स की फील्ड से ग्रेजुएट है, बच्चे को जन्म देती है, तो उसे “बहिष्कार” और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ेगा। कोर्ट के अनुसार, लास्ट मोमेंट पर महिला को उसके साथी ने “डंप” कर दिया और अपना शादी का वादा तोड़ दिया।
सुनवाई के दौरान –
हम आपको बच्चे की हत्या नहीं करने देंगे। कोर्ट ने कहा कि 23 हफ्ते पहले ही बीत चुके हैं। नॉर्मल डिलीवरी के लिए बच्चा और कितने हफ्ते गर्भ में रहेगा? कितने हफ्ते बचे हैं? आप अपने बच्चे को किसी जरूरतमंद कपल को गोद दे सकते हैं। “आप बच्चे की हत्या क्यों कर रहे हैं?” बेंच ने कहा।
सेक्सुअल असॉल्ट या रेप के विक्टिम्स, प्रेग्नेंसी के दौरान (विधवापन और तलाक) मरियल स्टेटस में बदलाव; राइट्स ऑफ़ पर्सन विद डिसाबिलिटीज़, 2016 द्वारा डिफाइन शारीरिक विकलांग और प्रमुख विकलांग महिलाएं इस एक्ट के तहत रिलीफ ले सकती हैं।
मानसिक रूप से बीमार या मंद बुद्धि वाली महिलाएं इस एक्ट के तहत रिलीफ ले सकती है। क्योंकि यह बच्चे के जीवन के लिए भी महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करता हैं। और अगर बच्चा पैदा होता है, तो वह शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं या विकलांगता का विक्टिम हो सकता है। साथ ही जो महिलाएं सरकार द्वारा घोषित मानवीय सेटिंग्स, डिजास्टर या इमरजेंसी सिचुएशनस में प्रेग्नेंट हुई हैं, वह भी यह रिलीफ ले सकती है।
उनके वकील, डॉ. अमित शर्मा ने कोर्ट को बताया कि उनका केस मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के सेक्शन 3 (2) (बी) (i) के तहत आता है, जिसमें कहा गया है कि 20 से 24 सप्ताह के बीच की प्रेग्नेंसी को ख़त्म किया जा सकता है, अगर दो डॉक्टर इस बात से सहमत हैं कि “प्रेग्नेंसी को जारी रखने से प्रेग्नेंट महिला की जान को खतरा होगा या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट लग सकती है।”
शुक्रवार को, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि वह महिला को बच्चे को उस बच्चे को पालने के लिए मजबूर नहीं कर रहे है, बल्कि उसे सभी जरूरी सुविधाएं मिलेंगी। कृपया बच्चे की डिलीवरी के बाद आप उसे भारत सरकार को सौंप दें। सब कुछ सरकार या दिल्ली के मान्यता प्राप्त हॉस्पिटल द्वारा संभाला जाएगा।
जबकि कानून 20 और 24 हफ्ते तक प्रेग्नेंसी को ख़त्म करने की अनुमति देता है अगर महिलाएं एमटीपी एक्ट और एमटीपी रूल्स में बताये गए स्टैंडर्ड्स को पूरा करती हैं, तो उस टाइम पीरियड से परे प्रेग्नेंसी को सिर्फ तभी ख़त्म किया जा सकता है जब डॉक्टरों का मानना है कि प्रेग्नेंट महिला की जान बचाने के लिए तुरंत प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करना जरूरी है।