उधार दिए हुए पैसे वापस लेने की प्रोसेस

पैसा वसूलने की स्टेप बाय स्टेप प्रोसेस यह है।

एक व्यक्ति से अपने दिए हुए क़र्ज़ के पैसों को वापस लेने के लिए व्यक्ति के अगेंस्ट कोर्ट केस फाइल करना सबसे एफ्फेक्टिव और एफ्फिसिएंट तरीकों में से एक है। इस प्रकार, उचित जूरिस्डिक्शन के कोर्ट में केस फाइल करना डिफॉल्टर से अपने क़र्ज़ के पैसे निकलवाने के लिए एक सिविल रेमेडी है।

यह केस सिविल प्रोसीजर कोड, 1908 के आर्डर IV के तहत फाइल किया जाता है।

लिमिटेशन पीरियड:

पैसों की रिकवरी के लिए केस फाइल करने का एक लिमिटेड टाइम पीरियड होता है, जो मैटर की शुरुवात होने की तारीख से लेकर 3 साल तक का होता है। हालाँकि, अगर कोर्ट को सही लगता है तो कोर्ट केस फाइल करने में किसी भी तरह की होने वाली देरी को कोर्ट द्वारा माफ किया जा सकता है।

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पैसे की वसूली के लिए केस कहाँ फाइल किया जाता है?

पैसों की रिकवरी के लिए कोर्ट केस उस क्षेत्राधिकार के कोर्ट में किया जा सकता है जिस अधिकार क्षेत्र में डिफाल्टर/लेनदार रहता है। एक डिफॉल्टर या लेनदार उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसने क़र्ज़ के पैसे लेकर वापस नहीं लौटाए। 

अमाउंट के बेस पर कोर्ट के क्षेत्राधिकार का फैसला इस प्रकार किया जाता है-

दिल्ली में,

  • 1-20,00,000 रुपये तक के अमाउंट का फैसला डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स द्वारा किया जाता है। 
  • 20,00,000 रुपये से ज्यादा के अमाउंट का फैसला दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा किया जाता है।

लीगल प्रोविजन्स –

क़र्ज़ लिए गए पैसों की रिकवरी के लिए, सबसे पहले कोर्ट में केस फाइल करने की मंशा/इंटेंशन को ज़ाहिर करते हुए, डिफॉल्टर को एक नोटिस भेजना होता है।

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लीड इंडिया इस तरह के लीगल नोटिस भेजने के साथ-साथ पैसों की रिकवरी से जुड़े कोर्ट मैटर्स को सुलझाने में लीगल हेल्प भी देता है।

अगर डिफॉलटर आपकी संतुष्टि के अनुसार उचित उत्तर देता है, तो आप बातचीत के लिए जा सकते हैं, और केवल शांतिपूर्वक बातचीत करके भी मटर को सुलझाया जा सकता है। हालाँकि, अगर भेजे गए लीगल नोटिस का डिफॉलटर कोई जवाब नहीं देता या उसके दिए गए जवाब से आप संतुष्ट नहीं होते है, तो आप कोर्ट केस फाइल करने का प्रोसीजर कंटिन्यू कर सकते हैं।

सबसे पहले इसमें शामिल कानूनों को समझते हैं-

सीपीसी का आर्डर 37-

समरी सूट – लिखित/रिटन एग्रीमेंट्स से जन्म लेने वाले मुद्दों में कर्ज़ के पैसे निकलवाने के लिए समरी सूट/केस किया जाता है। वह प्रोमिसरी नोट्स और कॉन्ट्रैक्ट्स, बिल ऑफ़ एक्सचेंज या चेक आदि हो सकते हैं। अगर मैटर पुराने पेंडिंग ड्यूज़ या किसी अन्य अनिश्चित अमाउंट के पैसों को निकलवाने से रिलेटेड है, तो इस सिचुएशन में समरी केस फाइल नहीं किया जा सकता है।

सीपीसी के आर्डर 37 के तहत उधार देने वाले व्यक्ति को एक समरी केस फाइल करना होता है। यह लोन रेकवरी का एक सबसे कॉमन तरीका या सोल्युशन है। डिफॉल्टर के पास केस फाइल होने की तारीख से लेकर 10 दिन तक का समय होता है और डिफॉल्टर को पेश होने के लिए कोर्ट द्वारा सम्मन जारी किया जाता है। अगर डिफॉल्टर पेश नहीं होता है, तो कोर्ट कम्प्लेनेंट के दावों को सही/वैलिड मानती है और कम्प्लेनेंट के फेवर में फैसला सुना देती है।

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नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881-

उक्त एक्ट बिल ऑफ़ एक्सचेंज, या चेक जैसे इंस्ट्रूमेंट्स से जन्म लेने वाले मनी रिकवरी केसिस से डील/समझौता करने में मदद करता है। सेक्शन 138 चेक बाउंस के मैटर्स से निपटने की प्रोसेस समझाता है। यहां, चेक रिटर्न मेमो मिलने के 30 दिनों के अंदर डिफॉल्टर एक लीगल नोटिस भेजा जाता है। अगर डिफॉलटर नोटिस मिलने के 30 दिनों के अंदर क़र्ज़ का भुगतान नहीं करता है, तो क़र्ज़ देने वाला व्यक्ति डिफॉलटर के अगेंस्ट क्रिमिनल केस फाइल कर सकता है। 

इंडियन पीनल कोड, 1860 –

आईपीसी के तहत क्रिमिनल ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट मतलब आपराधिक विश्वासघात का केस फाइल किया जा सकता है।

इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016
इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872
कंपनी एक्ट, 2013

कोर्ट के बाहर सम्झौता/सेटलमेंट –

दिए गए क़र्ज़ के पेंडिंग अमाउंट को निकलवाने का सबसे तेज़ और किफायती तरीका आर्बिट्रेशन, मेडिएशन या कॉंसिलिएशन जैसी प्रोसेस के द्वारा कोर्ट के बाहर समझौता/सेटलमेंट करना होता है, अगर दोनों पार्टनर्स इसके लिए सहमत हैं। अगर मैटर को आर्बिट्रेशन में भेजा जाता है, तो आर्बिट्रेटर दोनों पार्टीज़ को सुनता है, दोनों पार्टीज़ के नजरिये से केस को समझता है और उसके बाद अपना आर्डर पास करता है, जो दोनों पार्टनर्स को मानना जरूरी होता है। हालाँकि, आर्बिट्रेटर के फैसले/अवार्ड को चुनौती देते हुए अपील भी फाइल की जा सकती है-

  • अगर अवार्ड इनवैलिड है
  • अगर रिस्पोंडेंट को अपना केस पेश करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला 
  • अगर आर्बिट्रेटर को अप्पोइंट करने से रिलेटेड सुचना देने का नोटिस डिफ़ॉल्टर को नहीं दिया गया था।

लोन रिकवरी की प्रोसेस को आसानी से हैंडल किया जा सकता है अगर आपके पास उचित लीगल हेल्प और असिस्टेंस के साथ-साथ प्रोफेशनल एडवाइस है, जो आपको पूरी प्रोसेस में मार्गदर्शन देना का रोल निभाती है, जिसमें लीड इंडिया आपकी मदद कर सकता है। हमारे पास अनुभवी/एक्सपेरिएंस्ड एडवोकेट्स की एक समर्पित टीम है जिन्होंने ऐसे ही कई केसिस को सफलतापूर्वक जीत दिलाई है।

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