चेक एक फॉर्मल डॉक्यूमेंट होता है। चेक देने वाला व्यक्ति (पेयर/payer) एक पर्टिकुलर अमाउंट का चेक उस व्यक्ति को देता है जिसे वह पैसे देना चाहता है। फिर यह चेक पैसे लेने वाले व्यक्ति (प्राप्तकर्ता) के द्वारा बैंक में जमा किया जाता है। चेक जमा होने के बाद बैंक द्वारा, पैसे को सही तरीके से पेयर के आकउंट से प्राप्तकर्ता के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किया जाता है। हालांकि, कई बार जब पेयर का बैंक प्राप्तकर्ता के अकाउंट में पैसा ट्रांसफर करने से मना कर देता है, तो उस सिचुएशन को चेक बाउंस कहा जाता है।
चेक बाउंस होने की बहुत सी वजहें हो सकती है –
- चेक इशू करने या देने वाले व्यक्ति के अकाउंट में पर्याप्त पैसे या अमाउंट ना होना
- चेक पर साइन मैच ना करना
- अकॉउंट नंबर लाइन अप ना होना
- चेक कटा-फटा होना
- चेक इशू करने की तारीख गलत होना
- चेक एक्सपायर हो जाना
- चेक इशू करने वाले व्यक्ति का पेमेंट रोकने का फैसला कर लेना आदि
इसके अलावा भी बैंक द्वारा किसी चेक को एक्सेप्ट ना करने की बहुत सी वजह हो सकती है।
चेक बाउंस होने पर बैंक द्वारा जुर्माना –
अगर किसी व्यक्ति का चेक बाउंस हो जाता है तो उसे डिफॉल्टर माना जाता है। जब कोई चेक बाउंस होता है तो डिफॉल्टर और प्राप्तकर्ता दोनों को अपने-अपने बैंकों को चेक बाउंस चार्जिस देना पड़ता हैं। अगर बाउंस हुए चेक से किसी लोन का भुगतान किया जाना था, तो डिफॉल्टर बैंक की पेनल्टी के साथ-साथ लोन की लेट फीस भरने के लिए भी जिम्मेदार होता है।
कुछ क्लाइंट्स अपने ओवरड्राफ्ट एकाउंट्स का यूज़ करते हैं, जो की बैंकों को बाउंस चेक के लिए भुगतान करने को कहता है। ओवरड्राफ्ट लोन के बचे हुए अमाउंट पर ब्याज/इंटरस्ट भरने की जिम्मेदारी क्लाइंट की होती है।
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चेक बाउंस के परिणाम –
जब भी कोई चेक बाउंस होता है तो डिफॉल्टर सज़ा का पात्र होता है। हालाँकि, सज़ा या पेनल्टी इस बात को ध्यान में रखते हुए ही दी जाती है कि चेक कितने अमाउंट का था और किस वजह से बाउंस हुआ है।
1881 के नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत, चेक देने वाले व्यक्ति के अकाउंट में पर्याप्त अमाउंट ना होने की वजह से चेक बाउंस होना एक क्राइम है। अपर्याप्त पैसों वाले अकाउंट का चेक इशू करने के लिए पेयर को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। हालाँकि, पेयर तीन महीने के अंदर चेक को फिर से इशू करने का ऑप्शन चुन सकता है, या प्राप्तकर्ता कानूनी कार्रवाई करने का फैसला ले सकता है। अगर पेयर एक अस्वीकृत/डिसोनर चेक इशू करता है, तो चेक बाउंस होने पर दो साल तक की जेल की सजा हो सकती है।
चेक बाउंस केस के कुछ परिणाम निम्नलिखित हैं:
बैंक पेनल्टी:
अगर कोई चेक इस वजह से बाउंस हो जाता है कि अकाउंट में पर्याप्त अमाउंट नहीं है, साइन मैच नहीं हो रहे हैं, या कुछ तकनीकी/टेक्निकल प्रॉब्लम है, तो बैंक एक गैर-पर्याप्त/नॉन-सफ्फीसिएंट फीस लेता है। बैंक द्वारा अकाउंट के टाइप के बेस पर एक अलग जुर्माना लगाया जा सकता है। इसके अलावा अगर लौटाया गया चेक रीपेमेंट के लिए दिया गया है, तो पेमेंट में देरी होने पर बैंक की लेट फीस के अलावा पेनल्टी भी भरनी होती है। केस और चेक का अमाउंट कोर्ट की फीस को एफेक्ट करता है।
CIBIL स्कोर पर एफेक्ट :
बैंक और अन्य नॉन-बैंकिंग फाइनेंसियल इंस्टीटूशन्स समय पर लोन रीपेमेंट करने के लिए डिफाल्टर की क्षमता का अंदाज़ा लगाने के लिए तीन अंकों के CIBIL स्कोर का यूज़ करते हैं, जो 300 से 900 के बीच होता है। चेक बाउंस के आरोपी के सिबिल स्कोर पर नेगेटिव इफ़ेक्ट पड़ सकता है। साथ ही भविष्य में उनके लिए बैंक से लोन लेना और ज्यादा मुश्किल हो सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक :
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इंस्ट्रक्शंस दी है, जिससे बैंकों को उन डिफॉल्टरों को चेकबुक इशू ना करने की अनुमति मिलती है, जिन पर 1 करोड़ रुपये से ज्यादा के अमाउंट के कम से कम चार चेक बाउंस करने का आरोप लगाया गया है।
सिविल और क्रिमिनल केस :
डिफॉल्टर द्वारा बाउंस किए गए चेक के परिणामस्वरूप उसके अगेंस्ट सिविल और क्रिमिनल दोनों आरोप लगाए जा सकते हैं। अगर डिफॉल्टर के अगेंस्ट धोखाधड़ी और बेईमानी का आरोप साबित हो जाता है तो इन अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता, 1860 के सेक्शन 420 के तहत केस लगाया जा सकता है।
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