हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत जायज़ बच्चों के अधिकार क्या है?

हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 16 के तहत जायज़ बच्चों के अधिकार

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत वोयड और वॉइडेबल मैरिज/शादी के बीच अंतर बताया गया है। एक्ट के सेक्शन 16 वोयड और वॉइडेबल मैरिज से पैदा हुए बच्चों की प्रॉपर्टी पर उनकी वैधता/वैलिडिटी और उनके अधिकारों के प्रोविज़न के बारे में बताती है।

वैलिड मैरिज –

हिंदू कानून के अनुसार, एक वैलिड मैरिज वह है जो हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के सेक्शन 5 और 7 के तहत बताई गयी शर्तों को पूरा करती है। अगर सेक्शन 5 के तहत दी गई शर्तों को पूरा नहीं किया जाता है, तो शादी या तो वोयड या वॉइडेबल मानी जाती है। जैसा कि सेक्शन 11 और 12 के तहत भी बताया गया है। 

वोयड मैरिज [हिन्दू मैरिज एक्ट का सेक्शन 11]

  • यह शादियां शुरू से ही गैरकानूनी/इललीगल या इनवैलिड होती हैं। 
  • वोयड मैरिज कोई वैलिड शादी होती ही नहीं है, इसलिए इसकी शून्यता को साबित करने के लिए किसी डिक्री की भी जरूरत नहीं होती है। 
  • शादी किये हुए दोनों पार्टनर्स में से केवल एक ही शादी को नल्ल् एंड वोयड कराने के लिए फाइल कर सकता है। 
  • शादी को कुछ आधारों पर ही नल्ल् एंड वोयड घोषित कराया जा सकता है, जो हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 11 में बताये गए है। वह आधार हैं-
  • अगर शादी के समय दोनों पार्टनर्स में से किसी का जीवनसाथी जीवित हो।
  • अगर उनके रीति-रिवाजों द्वारा अनुमति नहीं दी जाती तो पार्टनर्स निषिद्ध संबंधों/प्रोहिबिटिड रिलेशन की डिग्री में आते हैं।
  • अगर पार्टनर एक दूसरे के सपिण्डा हैं मतलब वह एक ही पीढ़ी या पूर्वजों के बच्चे है, तो उनकी शादी शुरुवात से ही इनवैलिड होगी, जब तक कि उनके रीति-रिवाजों में सपिंडा शादी की अनुमति नहीं दी गई हो। 

वॉइडेबल मैरिज –

वॉइडेबल मैरिज में वोयड मैरिज से उल्टा होता है। इस मैरिज को नल्ल एंड वोयड घोषित कराने के लिए जुडशियल डिक्लेरेशन की जरूरत पड़ती है। बिना डिक्लेरेशन के यह शादी इनवैलिड नहीं मानी जाती है। हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 12 के तहत बताया गया है कि किन आधारों पर एक शादी को वॉइडेबल माना जा सकता है। वह आधार इस प्रकार हैं-

  • नपुंसकता – एक पार्टनर में शारीरिक या मानसिक किसी भी प्रकार की नपुंसकता होने पर दूसरा पार्टनर अपनी शादी को ख़त्म करने के लिए कोर्ट से रिक्वेस्ट कर सकता है।
  • पार्टनर्स की मेन्टल हेल्थ – अगर पार्टनर किसी मानसिक बिमारी का शिकार है।
  • धोखाधड़ी – अगर शादी के लिए पार्टनर की सहमति धोखाधड़ी या जबरदस्ती ली गयी है।
  • प्रेग्नेंसी – ऐसे केसिस में जहां लड़की शादी के समय किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रेग्नेंट है और जिस लड़के से शादी हो रही है उसे यह बात पता नहीं है।

वोयड और वॉइडेबल शादी से पैदा हुए बच्चों के कानूनी अधिकार –

  • संशोधन/अमेंडमेंट से पहले –

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के लागू होने के समय, एक वैलिड शादी से पैदा हुए बच्चों की वैधता/वैलिडिटी के लिए मैट्रिमोनियल कॉसीस एक्ट, 1950 के अनुसार फैसले लिए जाते थे। जिसमें यह प्रोविज़न था कि एक रद्द की गयी वोयड शादी से पैदा हुए बच्चे थे एक शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चों सहित वैध के रूप में सम्मानित किया गया।

  • मैरिज लॉज़ एक्ट(अमेंडमेंट), 1976 के अमेंडमेंट के बाद-
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ऊपर बताये गए एक्ट के अनुसार, केवल घोषित हो चुकी वोयड मैरिज से हुए बच्चों को वैलिड दर्जा दिया गया था। 1976 के अमेंडमेंट के बाद, हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के सेक्शन 16 में यह प्रोविज़न किया गया है कि रद्द की गयी वोयड मैरिज मतलब एक इनवैलिड शादी से हुए बच्चे भी वैलिड बच्चे हैं। एक्ट की सेक्शन 16, वोयड और वॉइडेबल मैरिज से पैदा हुए बच्चों को भी वैलिड दर्जा देती है। 1976 के अमेंडमेंट से पहले, वोयड मैरिज के बच्चे तभी वैलिड माने जाते थे जब एक्ट के सेक्शन 11 के तहत शादी रद्द होने की डिक्री दी जाती थी।

वर्तमान में, 1955 के एक्ट के सेक्शन 16 के तहत बताई गई, एक वोयड या वॉइडेबल मैरिज से पैदा हुए बच्चों की सिचुएशन यह है –

एक रद्द शादी से हुए बच्चे भी उसी तरह वैलिड होंगे जैसे की एक वैलिड शादी के बच्चे होते हैं।

एक रद्द हुई शादी या वॉइडेबल शादी (घोषित या नहीं) से हुए बच्चे भी वैलिड होंगे लेकिन ऐसे बच्चे केवल अपने माता-पिता की प्रोपेर्टी के वारिस होंगे।

अगर शादी एक्ट के सेक्शन 11 और 12 द्वारा बताये गए आधार के अलावा किसी अन्य आधार के तहत वोयड या वॉइडेबल है, तो ऐसी शादी से पैदा हुए बच्चे नाजायज होंगे। उदाहरण के लिए, अगर शादी कानून में बताये गए प्रोविजन्स के अनुसार नहीं की गयी थी और इसलिए उस शादी को वोयड बना दिया गया था, तो ऐसी शादी से पैदा हुए बच्चे नाजायज होंगे।

जैसा कि सुजाता बनाम जिगर (1992, एपी) के केस में कहा गया था, ऐसे बच्चे अपने पिता की अलग प्रॉपर्टी के वारिस हो सकते हैं, जैसा कि हिंदू उत्तराधिकार एक्ट, 1956 के सेक्शन 8 के तहत बताया गया है, हालांकि ऐसे बच्चे अपने पूर्वजों की प्रॉपर्टी में कोई दावा नहीं कर सकते थे। इस प्रकार इस तरह की शादी से पैदा हुए बच्चे का जॉइंट हिंदू फैमिली की प्रॉपर्टी पर कोई अधिकार नहीं है।

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