बाल योन शोषण में क्या सज़ा मिलती है?

नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले सेक्सुअल क्राइम्स

सभी देशों के लिए वहां के बच्चे सबसे जरूरी और अनमोल संपत्ति होते है। 43 करोड़ से ज्यादा बच्चे जो देश का भविष्य हैं, देश के विकास के लिए एक जरूरी स्तंभ/पिलर माने जाते हैं। बच्चे भोले-भाले, कमजोर होते हैं और उनका आसानी से शोषण/अब्यूज़ किया जा सकता है। वह ना केवल अजनबियों से, बल्कि अपने खुद के पारिवारिक रिश्तों या दोस्तों से भी मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक, या सामाजिक अब्यूज़ का सामना कर सकते हैं। बच्चों के अब्यूज़ के कई केसिस में यह देखा गया है कि बच्चों के साथ बुरा और गलत व्यवहार ज्यादातर बच्चे के रिश्तेदारों या दोस्तों की वजह से या उन्ही के द्वारा किया जाता है।

भारत में बच्चों का अब्यूज़ –

बच्चों के साथ सेक्सुअली अब्यूज़ करना समाज में मौजूद एक तरह की बुराई है। हालांकि, इसके बारे में अक्सर बात नहीं की जाती है। बच्चों के अब्यूज़ के रिजल्ट्स विनाशकारी हो सकते हैं क्योंकि यह लंबे समय में बच्चे की मेन्टल हेल्थ को बुरी तरह एफेक्ट करता है। बच्चे के नेचर, परसनेलिटी को एफेक्ट कर सकता है या बच्चे के विकास पर नेगटिव एफेक्ट कर सकता है।

यह बताया गया है कि हर दस में से एक बच्चे का 18 साल की उम्र से पहले यौन/सेक्सुअली अब्यूज़ किया जाता है। बच्चों के अब्यूज़ के साथ मुख्य मैटर यह है कि कई केसिस में बच्चा अपने अगेंस्ट किए गए अपराध को समझने या बताने के लिए बहुत छोटा होता है, जबकि कुछ केसिस में बच्चे के पेरेंट्स या गार्डियन खुद समाज के प्रेशर की वजह स इस मैटर को दबा देते है।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

सेक्सुअल अब्यूज़ के प्रकार –

  • शारीरिक/फिजिकल – छूने और चूमने के सेक्सुअल इरादे को शारीरिक अब्यूज़ माना जाता है।
  • गैर-शारीरिक/नॉन-फिजिकल – किसी बच्चे को अश्लील साहित्य/कंटेंट दिखाना, कोई अश्लील इशारा करना जैसे भद्दी बातें करना, गाली देना, सेक्सुअल टॉपिक्स या थीम के साथ खेल खेलना, आदि चीजें भी एक तरह का यौन अब्यूज़ माना जाता है।
  • अनाचार/इन्सेस्ट – इन्सेस्ट एक फैमिली के करीबी रिश्तेदारों जैसे भाई, बहन, माता-पिता, आदि के बीच वर्जित सेक्सुअल रिलेशन्स को रेफर करता है।
  • बच्चों का व्यावसायिक सेक्सुअल अब्यूज़ – जब कोई अडल्ट पैसे या किसी अन्य वस्तु के बदले में किसी बच्चे के साथ सेक्सुअल अब्यूज़ करता है तो उसे व्यावसायिक सेक्सुअल अब्यूज़ कहा जाता है। यहां, इस केस में पीड़िता/विक्टिम को सेक्सुअल ऑब्जेक्ट के रूप में यूज़ किया जाता है। यह बच्चों की वेश्यावृत्ति/प्रोस्टीटूशन, बच्चों का सेक्स टूरिज्म और बच्चों को खरीदने-बेचने के रूप में हो सकता है।
  • ऑनलाइन सेक्सुअल अब्यूज़ – इंटरनेट पर, सेक्सुअल अब्यूज़ का काम सोशल नेटवर्किंग साइटों, ऑनलाइन गेम खेलने या मोबाइल फोन के माध्यम से हो सकता है। आजकल के युवा/ यूथ साइबर-बुलिंग, ग्रूमिंग, सेक्सुअल अब्यूज़ या इमोशनल अब्यूज़ जैसी सिचुऎशन्स का सामना कर रहे हैं।
इसे भी पढ़ें:  वेबसाइट पॉलिसीज़ का क्या महत्व है?

पोक्सो – सेक्सुअल अब्यूज़ के अगेंस्ट बच्चों की प्रोटेक्शन बिल, 2011

भारत सरकार द्वारा 22 मई, 2012 को पोक्सो एक्ट पास किया गया था ताकि बच्चों को सेक्सुअल अब्यूज़, हैरेसमेंट और अश्लील कंटेंट के अपराधों से बचाने के लिए एक कानूनी प्रोसेस के द्वारा हेल्प दी जा सके और इस कानूनी प्रोसेस के हर स्टेज में बच्चे के हितों को सुनिश्चित किया जा सके। 

पॉक्सो एक्ट से पहले-

  • बच्चों के अगेंस्ट सेक्सुअल अब्यूज़ से रिलेटिड सिर्फ एक स्पेसिफिक कानूनी प्रोविज़न गोवा चिल्ड्रन्स एक्ट, 2003 था।
  • बच्चों के अगेंस्ट होने वाले सेक्सुअल अब्यूज़ को निम्नलिखित प्रोविज़न के तहत डील किया जाता था – 
  1. आईपीसी के सेक्शन 375, 1860 –  रेप – पुरुष विक्टिम्स की रक्षा के लिए काम नहीं करता है।
  2. आईपीसी के सेक्शन 354, 1860 – एक महिला की इज़्ज़त को चोट पहुंचना – यह प्रोविज़न कम सज़ा देता है और महिला के अलावा किसी बच्चे की “विनम्रता” की रक्षा के लिए काम नहीं करता है।
  3. आईपीसी के सेक्शन 377, 1860 – अप्राकृतिक/अननैचुरल अपराध – अप्राकृतिक अपराधों को डिफाइन नहीं करता है। बच्चों के सेक्सुअल अब्यूज़ से डील करने के लिए नहीं बनाया गया था।

पॉक्सो के तहत अपराध –

पोक्सो के नए एक्ट के तहत कई तरह के अपराधों के बारे में बताया गया है जिसके तहत एक आरोपी को सज़ा दी जा सकती है। इसमे शामिल है –

  • पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट- बच्चे के प्राइवेट पार्ट्स या मुंह में अपने लिंग आय शरीर का कोई अन्य हिस्सा या कोई वस्तु डालना या बच्चे को ऐसा करने के लिए कहना।
  • सेक्सुअल हमला – अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे को गलत तरह से छूता है, या अगर वह किसी अन्य व्यक्ति को छूने के लिए कहता है।
  • सेक्सुअल हैरेसमेंट – कोई भी सेक्सुअल टिप्पणी/कॉम्पलिमेंट करना, सेक्सुअल इशारे करना, बार-बार पीछा करना आदि।
  • बच्चों की पोर्नोग्राफी 
  • गंभीर सेक्सुअल हमला
इसे भी पढ़ें:  क्या चेक केस को एक से दूसरे राज्य में ट्रांसफर किया जा सकता है?

एक्ट की विशेषताएं –

  • बच्चे की परिभाषा – एक्ट के अनुसार, वह व्यक्ति जिसकी उम्र 18 साल से कम है, वह एक बच्चा है।
  • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के विपरीत- एक्ट के अनुसार, अगर 18 साल से कम उम्र की लड़की एबॉर्शन कराने की मांग करती है, तो सर्विस देने वाले व्यक्ति या डॉक्टर को पुलिस में इस सेक्सुअल असॉल्ट की कम्प्लेन फाइल करना जरूरी है। जबकि, 1975 के एक्ट के तहत एबॉर्शन के लिए जाने वाले व्यक्ति की पहचान की रिपोर्ट करना जरूरी नहीं है। इस प्रकार, दोनों कानून विपरीत प्रवृति के है।
  • रिपोर्टिंग करना जरूरी – एक व्यक्ति जिसे बच्चे के साथ हुए अब्यूज़ की जानकारी है और अगर वह ऑफिसर को इस बात की जानकारी नहीं देता तो उसे छह महीने के लिए जेल, जुर्माना या दोनों हो सकता है। इस प्रकार, इस एक्ट के तहत, बच्चों के साथ हो रहे शोषण के अपराध की रिपोर्ट करना जरूरी है।
  • लीगल हेल्प – पोक्सो एक्ट के सेक्शन 40 के तहत, पीड़ित कानूनी हेल्प के लिए अप्लाई कर सकता है, हालांकि सीआरपीसी के प्रोविजन्स के अधीन, इस प्रकार बच्चे का लॉयर केवल पब्लिक प्रॉज़िक्यूटर की हेल्प कर सकता है।

दुनिया में 18 साल से कम उम्र के बच्चों की सबसे बड़ी आबादी भारत में है, जो लगभग 472 मिलियन है। भारत के संविधान के आर्टिक्ल 21 के तहत बच्चों को सुरक्षा दी गई है। हालांकि, बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ना केवल राज्य जिम्मेदार है, बल्कि देश के हर जिम्मेदार नागरिक का भी यह कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि उनके आस-पास का बच्चा किसी भी तरह की मुश्किल में तो नहीं फंसा है। 

इसे भी पढ़ें:  जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1969 क्या है?

लीड इंडिया आपको एडवोकेट्स की एक जिम्मेदार और अनुभवी टीम देता है जो बच्चों के लिए एक सुरक्षित माहौल की जरूरत को समझते हैं और क्रिमिनल लॉ से रिलेटेड केसिस से सफलतापूर्वक डील कर रहे हैं और इस प्रकार, आपको हेल्प के साथ-साथ कानूनी एडवाइस भी दे सकते हैं।

Social Media