एक वाइफ को अपने हस्बैंड की प्रॉपर्टी/घर में तब तक रहने का अधिकार है, जब तक वे एक कपल हैं। जब तक कोर्ट द्वारा डाइवोर्स नहीं दिया जाता, तब तक वाइफ को हस्बैंड के घर से बेदखल नहीं किया जा सकता है।
रंजन गोगोई, सीजे, एल नागेश्वर राव, और एसके कौल जे की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने यह ऑब्ज़र्व किया कि “हस्बैंड या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गयी क्रूरता से परेशान होकर घर छोड़ने पर या ससुराल से निकाल दिए जाने पर, जिस जगह वाइफ आश्रय लेती है, वहां की कोर्ट्स सिचुएशन को देखते हुए संविधान के सेक्शन 498 ए के तहत वाइफ की कम्प्लेन पर विचार करने का अधिकार रखती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितंबर, 2021 को कहा कि एक कपल को साथ रहना ज़रूरी नहीं है। अगर एक कपल के डाइवोर्स या अलग होने की प्रोसेस चल रही है तो यह उनकी अपनी मर्ज़ी है कि वह साथ रहें या अलग रहें। हालाँकि, कोर्ट के पास अपनी संवैधानिक शक्तियों का यूज़ करके डाइवोर्स डिक्री जारी करके कपल को अलग करने की पावर है।
ऐसी सिचुऎशन्स में, आपसी डाइवोर्स फाइल किया जाता है और दोनों पार्टनर्स अपने मतभेदों/डिफ्रेंसिस को दूर करते हैं। कपल एक साथ रह सकते हैं भले ही कोर्ट में उनकी डाइवोर्स लेने के लिए कार्यवाही चल रही है। साथ ही अगर कपल डाइवोर्स के लिए दी हुई अपनी सहमति वापस लेना चाहते है, तो वह डाइवोर्स के लिए मना भी कर सकते है।
कानूनी रूप से, वाइफ अपने हस्बैंड के साथ उसकी प्रॉपर्टी (ससुराल) में रह सकती है, भले ही कपल में से किसी एक ने डाइवोर्स लेने के लिए पिटीशन फाइल की हो। हालांकि, डाइवोर्स की कार्यवाही के दौरान दोनों पार्टनर्स को किसी तरह के सेक्सुअल रिलेशन्स नहीं बनाए रखना चाहिए।
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कारण/वजह –
डाइवोर्स की कार्यवाही के दौरान भी, कोई एक पार्टनर एक साथ क्यों रहना चाहता है, इसकी कई वजह हो सकती हैं:
- सिचुएशन को खराब या बिना बिगाड़े नार्मल रखने के लिए
- बच्चों की ख़ुशी और अच्छे फ्यूचर के लिए
- फाइनेंसियल/ पैसों की जरूरतों के लिए
- सेक्सुअल रिलेशन्स बनाने के अन्य वैलिड रीज़न के लिए
ब्रैडली v. ब्रैडली के केस में, यह माना गया था कि ऊपर बताई गयी सिचुऎशन्स में डाइवोर्स की कार्यवाही की अनुमति इस आधार पर दी गई थी कि पिटीशनर के पास रहने के लिए कोई अन्य ऑप्शंस नहीं थे।
यह साबित करना कि हम एक ही घर में रहकर भी अलग रह रहे हैं?
एक प्रॉपर्टी या घर में रहना, लेकिन एक साथ एक कपल की तरह ना रहना , यह एक अलग सिचुएशन है। इन सिचुएशन को इन 2 अलग-अलग केसिस द्वारा समझा जा सकता है।
हॉलेंस v हॉलेंस के केस में, दोनों पार्टनर्स के एक ही छत के नीचे रहने के बावजूद, वाइफ द्वारा फाइल की गयी डाइवोर्स की पिटीशन को आगे बढ़ने की अनुमति दी गई थी। यह अनुमति इस बेसिस पर दी गयी थी कि वाइफ और हस्बैंड, डाइवोर्स की कार्यवाही के दौरान ना तो आपस में बात की थी, ना ही कभी साथ में खाया था और न ही कभी एक साथ सोये थे।
जबकि इसके विपरीत, मौंसर v मौंसर के केस में, दोनों पार्टनर्स के सोने की अलग व्यवस्था थी, लेकिन फिर भी वाइफ हस्बैंड के लिए खाना बनाती थी और वह एक साथ खाना खाते भी थे। हालाँकि, बाद में इस केस में कोर्ट ने आर्डर दिया कि डाइवोर्स नहीं दिया जा सकता है।
इसलिए, अगर कपल अलग होना चाहते है और पूरा मन बना चुके है तो उन्हें उपर की स्टेटमेंट्स को फॉलो करते हुए अपनी एक्टिविटीज़ को पूरी तरह सेध्यान में रखना चाहिए। जिसका मतलब है सिर्फ अलग सोने से नहीं बल्कि फाइनेंस, कपड़े धोना और भोजन करना, आदि।
लीड इंडिया में हमारे लॉयर्स डाइवोर्स की कार्यवाही के दौरान एक साथ रहने की वैधता के बारे में आपका मार्गदर्शन कर सकते है।