भारत में चल रहे डाइवोर्स केस पर क्या विदेशी कोर्ट का फैसला मान्य होगा?

भारत के डाइवोर्स केस पर विदेशी कोर्ट्स फैसला नहीं कर सकतीं है।

बॉम्बे हाई कोर्ट के ऐतिहासिक केस में कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस बात में कोई शक नहीं है की कपल की शादी मुंबई में हुई थी। और केवल इसलिए कि रिस्पोंडेंट (आदमी) के पास ब्रिटेन (यूके) में रहने का अधिकार है, चाहे वह अधिकार जन्म से हो या अपनी पसंद से लिया गया हो या किसी अन्य रीज़न की वजह से हो, वह अधिकार हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के सेक्शन 19 के तहत भारतीय कोर्ट के फैसले लेने के अधिकार क्षेत्र को बाँट नहीं सकता है। 

कोर्ट ने डिफाइन किया कि हस्बैंड ने यूके की कोर्ट से राहत मांगी थी, जो दोनों पार्टी हस्बैंड और वाइफ पर लागू नहीं होती है क्योंकि कपल की शादी हिन्दू मैरिज एक्ट के अकॉर्डिंग और रजिस्ट्रेशन मीरा भयंदर नगर निगम के तहत हुआ था।

यहां एक सवाल उठता है कि एक ऐसा कपल जिसकी शादी भारत की सीमा में सम्पन्न हुई है उनको विदेशी कोर्ट द्वारा दी गई डाइवोर्स की डिक्री मान्य है या नहीं?”

वाई. नरसिम्हा राव v वाई. वेंकट लक्ष्मी के केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला लिया कि जिस कानून के तहत कपल की शादी हुई है, उस कानून के क्षेत्राधिकार में आने वाले कोर्ट ही कपल की डाइवोर्स डिक्री जारी करने का हक़ रखते है। कोई भी अन्य कोर्ट बिना अधिकारिता वाला कोर्ट होगा, जब तक कि दोनों पार्टीज़ अपनी मर्ज़ी से और बिना किसी शर्त के खुद को उस कोर्ट के क्षेत्राधिकार के अधीन ना कर दें।

टाइप्स :

विदेशी कोर्ट्स द्वारा डाइवोर्स की डिक्री को दो कैटगरीज़ में बांटा जा सकता है – 

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1.  विदेशी कोर्ट्स द्वारा दी गई म्यूच्यूअल कंसेंट/ आपसी सहमति से डाइवोर्स की डिक्री

2. कन्टेस्टिड डाइवोर्स/एकतरफा तलाक की डिक्री 

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विदेशी कोर्ट्स द्वारा आपसी सहमति से डाइवोर्स की डिक्री – आपसी सहमति से डाइवोर्स लेने के केस में विदेशी कोर्ट द्वारा दी गई डाइवोर्स की डिक्री को लीगल, वैलिड और बाध्यकारी माना जाता है और सिविल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 13 और सेक्शन 14 के आधार पर सक्षम अधिकार क्षेत्र का आर्डर माना जाता है। हालांकि, सेक्शन 13 उस कंडीशन का विश्लेषण करता है, जहां एक विदेशी कोर्ट के फैसले को भारत में वैलिड नहीं माना जाता है और सेक्शन 14 बताता है कि भारतीय कोर्ट विदेशी फैसले को कब निर्णायक मानेंगे। एक ऐसी डिक्री जो सेक्शन 13 से अफ्फेक्टिड/प्रभावित नहीं है, उसे भारत में वैलिड करने की जरूरत नहीं है। साथ ही, उसे सिविल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 14 के तहत भारत में निर्णायक माना जाएगा।

हालांकि, ऐसे केस में जहां विदेशी कोर्ट द्वारा कन्टेस्टिड डाइवोर्स की डिक्री दी जाती है, उस डिक्री का वैलिड होना और ना होना अलग अलग सिचुएशन पर डिपेंड करता है। 

विदेशी डिक्री निर्णायक नहीं:

जब एक एकतरफा डिक्री (ex-parte decree) पास की जाती है। हालाँकि, अगर अपोजिट पार्टी को कोई समन ना भेजा गया तो इस तरह की डिक्री को जानबूझकर एकतरफा पास करने के लिए जानबूझकर छोड़ देना समझा जायेगा। जैसे कि हिंदू कानून में बताये गए आधारों के अलावा अन्य आधारों पर लिया गया डाइवोर्स। 

विदेशी डिक्री वैलिड है:

  1. अगर एक पार्टनर विदेश में केस फाइल करता है और दूसरा पार्टनर उस अधिकार क्षेत्र में केस की कार्यवाही के लिए सहमति देता है, तो डिक्री वैलिड मानी जाएगी।
  2. अगर पार्टनर विदेशी कोर्ट में कन्टेस्टिड डाइवोर्स फाइल करते हैं, तो इसका मतलब इस केस को फाइल करने में उनकी सहमति है, इसलिए डिक्री वैलिड होगी। 
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निष्कर्ष :

निष्कर्ष के तौर पर हम यह कह सकते हैं कि एक विदेशी कोर्ट द्वारा पास की गयी एक डाइवोर्स की डिक्री को सेक्शन 44 ए के तहत एक्ज़िक्युट किया जा सकता है या फिर इसको लागू करने के लिए एक नया केस फाइल किया जा सकता है। अगर एक विदेशी डाइवोर्स डिक्री सेक्शन 13 के तहत पास हो जाती है तो उसे सीपीसी के सेक्शन 14 के तहत निर्णायक/कन्क्लूसिव माना जाता है।

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