एफआईआर की धमकी मिलने पर अपना बचाव कैसे करें?

क्या करें अगर कोई एफआईआर फाइल करने का प्लैन करे?

एफआईआर का मतलब “फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट” होता है। यह एक ऐसा डॉक्यूमेंट है, जिसके जरिए आपराधिक कार्यवाही/क्रिमिनल प्रोसीडिंग्स शुरू की जाती है। यह डॉक्यूमेंट सीआरपीसी के सेक्शन 154(1)(x) के तहत तैयार/रेडी किया जाता है। यह केवल कॉग्नीज़ेबल ओफ्फेंसिस/अपराधों के केसिस में ही फाइल किया जा सकता है। कॉग्नीज़ेबल ओफ्फेंसिस ऐसे क्राइम/अपराध होते है, जिनके तहत पुलिस ऑफिसर बिना वारंट के भी गिरफ्तार/अरेस्ट कर सकता है। यह क्राइम्स आमतौर पर गंभीर प्रकृति/सीरियस नेचर के होते हैं। जैसे – रेप, मर्डर केसिस आदि। 

कुछ केसिस में एफआईआर काफी प्रिडिक्टिड होती है, जैसा कि कई बार पर्सनल रिलेशन्स में कुछ परेशानी होने की वजह से या लोगों को अपने पर्सनल उद्देश्यों की वजह से भी एफआईआर या पुलिस कंप्लेंट द्वारा धमकी दी जाती है। भारत में झूठी एफआईआर से रिलेटिड केसिस के आंकड़े परेशान करने वाले हो सकते हैं और कहा जा सकता है कि इस तरह के इन्सिडेंट्स बार-बार होते है। इस तरह के इन्सिडेंट्स से डील करने के लिए यह जानना जरूरी है कि कोई भी 

झूठी एफआईआर या कंप्लेंट फाइल होने से पहले और बाद में किसी व्यक्ति के पास उससे बचने के लिए क्या-क्या ऑप्शन्स अवेलेबल हैं।

एफआईआर फाइल होने से पहले:

एफआईआर फाइल होने से तुरंत पहले क्या-क्या कार्रवाई की जा सकती है –

सबसे पहले, उस व्यक्ति के अगेंस्ट एक क्रिमिनल कंप्लेंट ड्राफ्ट करनी चाहिए, जो एफआईआर फाइल करने की धमकी देकर आपके लिए खतरा पैदा कर रहा है। कंप्लेंट में उन सभी सिचुएशंस का जिक्र किया जाना चाहिए, जिनमे यह धमकी दी गयी है। ऐसी कम्प्लेंट्स में केस की सभी पेंचीदा डिटेल्स शामिल होनी चाहिए। इसके बाद इस कंप्लेंट को सीनियर सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस और पुलिस स्टेशन के ऑफिस में पोस्ट और मेल किया जाना चाहिए। यह कंप्लेंट सीआरपीसी के सेक्शन 154(3) के तहत की जा सकती है। वैसे तो इस तरह की कंप्लेंट कानूनी एक्सपर्ट के बिना भी फाइल की जा सकती है लेकिन एक्सपर्ट्स की मदद से कंप्लेंट फाइल करना बेहतर होता है क्योंकि उसके द्वारा इसमें एक वैलिड और पर्याप्त कंप्लेंट के लिए सभी जरूरी डिटेल्स शामिल की जा सकती है।

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साथ ही, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड ने सेक्शन 438 के तहत एंटीसिपेटरी बेल का प्रोविज़न दिया है। एंटीसिपेटरी बेल केवल नॉन-बेलेबल आरोपों के लिए अप्लाई की जा सकती हैं। अरेस्ट होने की सिचुएशन में बेल लेने के लिए सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट में अप्लाई किया जा सकता है। इस तरह की एप्लीकेशन कोर्ट्स द्वारा कुछ शर्तों के साथ दी जाती हैं।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

एफआईआर फाइल होने के बाद:

आपके अगेंस्ट कोई भी झूठी एफआईआर फाइल होने पर संबंधित पुलिस ऑफिसर द्वारा आपको कुछ सूचनाएं/इन्फर्मेशन दी जाती है। जब ऐसी सूचना मिलती है, तो जिस व्यक्ति पर क्राइम करने का झूठा आरोप लगाया जाता है, वह काउंटर एफआईआर फाइल करने के लिए पुलिस स्टेशन जा सकता है। दंड संहिता के तहत कुछ प्रोविजन्स तय किये गए हैं जो झूठी एफआईआर फाइल किये जाने पर यूज़ किए जाते हैं। जैसे, 

  • सेक्शन 182 के तहत, किसी भी पब्लिक सर्वेंट द्वारा जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुंचाने या बेइज़्जत करने के इरादे से झूठी जानकारी दिए जाने पर छह महीने तक की जेल या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है।
  • किसी पर झूठा आरोप लगाना, यह जानते हुए कि इस तरह की कार्यवाही या आरोप के लिए कोई वैलिड लीगल आधार नहीं है, को भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 211 के तहत एक क्रिमिनल ओफ्फेंस कहा गया है और ऐसा करने पर दो साल तक की जेल की सज़ा या जुर्माना या दोनों भी भुगतना पड़ सकता है। 
  • अगर झूठी एफआईआर किसी ऐसे क्राइम के लिए की गयी है जिसकी सज़ा डेथ पेनलिटी या आजीवन जेल या सात साल से ज्यादा की जेल है, तो झूठी एफआईआर करने वाले व्यक्ति को सात साल तक की जेल की सज़ा और जुर्माना हो सकता है। 
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इस प्रकार, दंड संहिता के इन सेक्शंस के तहत झूठी कंप्लेंट करने वाले व्यक्ति के अगेंस्ट भी एक काउंटर एफआईआर फाइल की जा सकती है।

अगर पुलिस ऑफिसर एफआईआर फाइल करने से मना करता है. तो सीआरपीसी के तहत एक और सोल्युशन भी अवेलेबल है। सीआरपीसी के सेक्शन 156 (3) के तहत, मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह पुलिस स्टेशन के इन्चार्ज को क्रिमिनल कंप्लेंट फाइल करने और सही इन्वेस्टीगेशन करने के लिए सभी जरूरी कोशिशें करने का आर्डर दे सके। इस प्रकार, एक व्यक्ति यह सुनिश्चित करने के लिए मजिस्ट्रेट की कोर्ट में जा सकता है। 

झूठी एफआईआर रद्द करने के लिए सेक्शन 482 के तहत एप्लीकेशन :

एफआईआर रद्द करने के आर्डर के लिए हाई कोर्ट में एप्लीकेशन दी जा सकती है। यहां, सबूत देकर अपनी बात प्रूफ करने का भार पिटीशनर पर है। पिटीशन फाइल करने वाले व्यक्ति को कोर्ट के सामने यह साबित करना होगा कि एफआईआर सिर्फ चोट पहुंचाने या परेशानी पैदा करने के इरादे से फाइल की गई है और झूठी है। अगर हाई कोर्ट को यह विश्वास हो जाता है कि एफआईआर गलत और कपटपूर्ण तरीके से सामने वाली पार्टी को चुप कराने और परेशान करने के उद्देश्य से फाइल की गई है, तो वह कम्प्लेन को रद्द करने की अनुमति दे सकता है।

यह एडवाइस दी जाती है कि अगर कभी ऐसी सिचुएशन बन जाये, जहां एक झूठी एफआईआर या कंप्लेंट फाइल होने की उम्मीद है तो व्यक्ति को तुरंत कानूनी सलाह/लीगल एडवाइस लेनी चाहिए। भारत में कानूनी प्रोसिजर्स काफी थका देने वाले और लंबे हो सकते है। एक कॉमन व्यक्ति के लिए किसी केस के पेंचीदा पहलुओं को समझना बहुत मुश्किल होता है इसीलिए आपको एक एक्सपर्ट और एक्सपीरिएंस व्यक्ति या लॉयर की जरूरत होती है। ऐसी सिचुऎशन्स से डील करने के दौरान कानूनी एक्सपर्ट से ज्यादा सावधानी की उम्मीद की जा सकती है। शुरुवात के स्टेजिस में कानूनी सलाह लेने से यह सुनिश्चित हो जाता है कि झूठी एफआईआर के खतरे से डील करने के दौरान खामियां पैदा नहीं होती हैं और केस के बाद के इन्सिडेंट्स में परेशानियां पैदा नहीं होती हैं।

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