रेप के आरोपों को रद्द करने के लिए शादी करना पर्याप्त नहीं है।

रेप के आरोपों को रद्द करने के लिए शादी करना पर्याप्त नहीं है।

रेप जैसे जघन्य अपराध को माफ नहीं किया जा सकता है और ना ही आरोपी को सिर्फ इस आधार पर छोड़ा जा सकता है कि वह विक्टिम से शादी करने के लिए तैयार है।

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि रेप के आरोपों को खत्म करने के लिए विक्टिम से शादी कर लेना पर्याप्त नहीं है। इस पिटीशन में चार्जशीट फाइल होने के बावजूद भी एक कपल ने 2013 में एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए फाइल की थी। यह कपल पहले लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा था जो बहुत अच्छा नहीं चल रहा था और बाद में वह लड़का, लड़की से शादी करने के लिए तैयार हो गया था।

जज बृजेश सेठी ने आपराधिक/क्रिमिनल कार्यवाही को खत्म करने के लिए कपल के तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि, “सुलह होने पर भी, अपराधी और विक्टिम का दृष्टिकोण/पॉइंट ऑफ़ व्यू नहीं बदलेगा क्योंकि समाज के हित में यही है कि अपराधी को सज़ा दी जाए।”

केस के दौरान कोर्ट ने कहा, “ऐसे केसिस से डील करना जहां अपराध की प्रकृति जघन्य/ हत्या, बलात्कार, डकैती, आपराधिक कार्यवाही जैसे गंभीर है, को अपराधी और विक्टिम द्वारा निपटाए जाने पर भी रद्द नहीं किया जा सकता है।”

रिपोर्ट्स

नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि 2017 में रेप के टोटल 32,559 केसिस फाइल किए गए और सभी विक्टिम्स और अपराधियों में से एक तिहाई या तो ऑनलाइन या ऑफलाइन दोस्त या अलग हुए हस्बैंड थे। यह भी देखा गया कि शादी का झूठा लालच देकर लिव-इन-पार्टनर या दोस्त द्वारा बनाये जाने वाले सेक्सुअल रिलेशन्स को भी इसे रेप माना जाता है।

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हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कि अगर दोनों पार्टनर खुशी-खुशी मैरिड हैं तो एफआईआर रद्द हो जाती है, कई कानूनी सवालों को जवाब दिए बिना ही छोड़ दिया है। 2019 में, कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में आरोपों की प्रकृति और फैक्ट्स को ध्यान में रखते हुए एफआईआर का कोई आधार नहीं बचा है। फैक्ट यह था कि ‘गलत सूचना की वजह से एफआईआर फाइल की गयी थी, लेकिन अब दोनों पार्टनर्स के बीच सभी गलतफहमियां दूर हो गई है और दोनों पार्टनर्स शादी करके खुशी-खुशी अपना जीवन बिता रहे है, जिस वजह से आरोपों को ख़ारिज कर दिया गया था।

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अपमानजनक और हिंसक रिलेशन

पार्टीज़ की मुलाकात जनवरी 2013 में एक प्रोफेशनल असाइनमेंट के दौरान हुई थी। कम्प्लेनेंट 36 साल की विधवा थी और आरोपी की उम्र लगभग 28 साल थी। वे दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे। फिर, थोड़े समय में ही उनके बीच चीजें खराब होने लगी।

दिल्ली हाई कोर्ट के अनुसार, कम्प्लेनेंट ने आरोप लगाया कि जब वे दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे तब आरोपी अक्सर “अपमानजनक और हिंसक” थे। कम्प्लेनेंट ने आरोप लगाया कि आरोपी कई बार उस पर हावी हुआ और बाद में अबॉरशन कराने के लिए मजबूर किया।

कम्प्लेनेंट ने आरोपी के अगेंस्ट 17 सितंबर 2013 को आईपीसी के सेक्शन 376 और सेक्शन 380 के तहत एफआईआर फाइल की क्योंकि यह तर्क दिया गया था कि आरोपी अपने कीमती सामान को लेकर फरार हो गया था।

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हालाँकि, पार्टीज़ ने अपने मैटर्स को सुलझा लिया और अक्टूबर 2014 में शादी के बंधन में बंध गए और मतभेदों और गलतफहमियों की वजह से ये ट्रायल अगले सात सालों तक चला।

सुप्रीम कोर्ट में फाइल हुई पिटीशन के अनुसार, उन्होंने अगस्त 2019 में दोस्तों और शुभचिंतकों के समझाने पर अपने मैटर्स को सुलझा लिया और एक समझौते/एग्रीमेंट पर साइन किया। कम्प्लेनेंट ने बाद में एफआईआर को रद्द कराने के लिए वाइफ की एनओसी दी और तभी उसने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

जज रजनीश भटनागर ने कहा, “रेप किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे समाज के खिलाफ एक अपराध है।”

हालांकि, आईपीसी के सेक्शन 376 के तहत केसिस को रद्द नहीं किया जाना चाहिए और इसे बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ अपराध माना जाना चाहिए। हालांकि, मैट्रिमोनियल इश्यूज के केस की अजीबोगरीब सिचुऎशन्स में जहां कम्प्लेनेंट का कहना है कि उसका फ्यूचर एफआईआर को रद्द करने पर निर्भर करता है और कहता है कि रेप नहीं किया गया था उस पर, यह न्याय के हित में होगा कि एफआईआर को रद्द कर दिया जाए।

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