अगर पत्नी बिना वजह ससुराल छोड़ दे तो क्या लीगल नोटिस भेज सकते है?

अगर पत्नी बिना वजह ससुराल छोड़ दे तो क्या लीगल नोटिस भेज सकते है?

विवाह का अर्थ पति पत्नी के साथ रहने से ही पूर्ण होता है। भारत जैसे देश मे जहां विवाह एक परंपरा से कहीं ज़्यादा अधिक है वहाँ पति पत्नी का साथ रहना हमेशा एक अच्छी निशानी मानी जाती है। मगर हर बार ऐसा नहीं होता है। कई बार घर में हुए छुट पुट झगड़ों से रुष्ट हो कर पत्नी ससुराल छोड़ देती है। कई बार तो ये छुट पुट झगड़े भी नहीं होते हैं। ऐसे मामलों में पत्नी कई बार बे-वजह ही ससुराल को छोड़ कर चली जाती हैं और लंबे वक्त तक लौट कर नही आती हैं।

इन मामलों में कई बार पतियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बुलाने पर भी जब पत्नियां नहीं लौटती तो यह उनके लिए परेशानी का कारण बन जाता है। ऐसी स्थिति में उचित कानूनी उपाय क्या है यह समझना हम सब के लिए बहुत ज़रूरी है। आइये आज इस लेख के माध्यम से हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि यदि पत्नी बे-वजह ससुराल छोड़ दे तो क्या उसे लीगल नोटिस भेज सकते हैं ?

हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9 के तहत बिना वजह ससुराल छोड़ कर जाने वाली पत्नी को एक लीगल नोटिस भेजा जा सकता है। साथ ही इस बात का भी अधिकार पति के पास होगा कि वह कुटुंब न्यायालय या जिला न्यायालय में पत्नी को वापस लाने के लिए याचिका दायर कर सकता है। यदि न्यायालय द्वारा पाया जाता है कि पत्नी बिना किसी ठोस आधार के बिना बताए पति से अलग रह रही है तो न्यायालय उसे साथ रहने के आदेश पारित कर सकता है।

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यहाँ ठोस कारणों का अर्थ उन सभी आधारों से है जो क्रूरता की श्रेणी में आते हैं और जिन्हें हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के अन्तर्ग तलाक के लिए आधार माना गया है।

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हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 9 के तहत अपने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए निम्न शर्तों को पूर्ण करना आवश्यक होगा:

  1. पति या पत्नी में से कोई भी बिना कारण बताए अलग रह रहा हो।
  2. न्यायालय इस बात पर संतुष्ट हो कि याचिका में उल्लेखित कथन सत्य हैं।
  3. ऐसा कोई कानूनी अधिकार न हो जिस के आधार पर याचिका खारिज़ की जा सके।

वहीं हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत किसी भी याचिका को दायर करने के लिए कुछ आवश्यक तत्वों का होना भी बाह्य आवश्यक होता है। आइये समझते हैं वे आवश्यक तत्व कौन से हैं?

आवश्यक तत्व

  1. याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के मध्य विवाह वैध तरीके से हुआ हो।
  2. याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के मध्य सहवास नहीं हो रहा हो।
  3. एक दूसरे से अलग होना बिना किसी उचित कारण के हो रहा हो।

न्यायालय द्वारा प्रदत्त डिक्री के बाद भी पत्नी यदि इसका पालन नहीं करती है और ससुराल वापस नहीं आती है तो इसके लिए सी पी सी के आदेश 21 के रूल 32 के तहत उसे सिविल जेल में डिटेंशन या फिर उसकी संपत्ति की कुर्की की सजा मिल सकती है।

हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत दायर की गई याचिका में बर्डन ऑफ प्रूफ यानि कि सबूत का भार याचिकाकर्ता पर होता है। न्यायालय द्वारा संतुष्ट होने के बाद सबूत का भार प्रतिवादी के ऊपर चला जाता है। 

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पी राजेश कुमार बागमार बनाम स्वाति राजेश कुमार बागमार, 2008 के मामले में न्यायालय ने कहा कि प्रारम्भ में सबूत का भार याचिकाकर्ता पर है जो यह साबित करे कि प्रतिवादी ने बिना किसी उचित कारण के याचिकाकर्ता के साथ नहीं रहता है। और जब न्यायालय याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए बयानों के से संतुष्ट हो जाती है तो यह साबित करने के लिए कि इस तरह के त्याग के लिए एक उचित आधार मौजूद है यह बोझ प्रतिवादी पर स्थानांतरित हो जाता है। यहां उचित आधार से अर्थ उन आधारों से है जिन के आधार पर तलाक की याचिकाएं दायर की जाती हैं जैसे कि क्रूरता, नपुंसकता या व्याभिचार।

अपने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 9 के अतिरिक्त भारतीय तलाक अधिनियम की धारा 32 और 33, विशेष विवाह अधिनियम की धारा 22 भी मौजूद है। 

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