तलाक होने के कितने समय बाद दूसरी शादी की जा सकती है?

तलाक होने के कितने समय बाद दूसरी शादी की जा सकती है?

हर दिन तलाक के न जाने कितने ही मामले न्यायालयों में आ रहे हैं। पति पत्नी के मध्य उपजे विवाद की वजह से अक्सर ही तलाक की नौबत आ जाती है और इस के बाद न्यायालय में यह तलाक के मामले लंबित हो जाते हैं। ऐसे में यह भी सवाल उठता है कि तलाक होने के कितने समय बाद दूसरी शादी की जा सकती है?

आज के इस आलेख में हम इस बात को विस्तार से समझेंगे कि तलाक होने के कितने समय बाद दूसरी शादी की जा सकती है? तलाक के बाद दूसरी शादी करने के क्या प्रावधान हैं? 

हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि भारत मे तलाक हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 के तहत और विशेष विवाह अधिनियम के तहत दिए जाते हैं। जहाँ हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत हिन्दू और विशेष विवाह अधिनियम के तहत किसी भी धर्म के लोग तलाक दे सकते हैं। तलाक के मुकदमे इन अधिनियमों कस अंतर्गत फैमिली कोर्ट में ही चलाए जाते हैं। इन कोर्ट में हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत दिये गए आधारों पर तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है। 

तलाक के अंतिम आदेश के बाद कोई भी व्यक्ति दूसरी शादी करने के लिए स्वतंत्र है मगर सवाल यह है कि तलाक के बाद दूसरी शादी कब कर सकते हैं? आइये समझते हैं तलाक होने के कितने समय बाद दूसरी शादी की जा सकती है?

तलाक लिए जाने के तीन तरीके हैं जिन में तलाक के बाद दूसरी विवाह करने का समय अलग अलग है। वे तरीके हैं:

1. आपसी सहमति से तलाक– यदि पति पत्नी आपसी सहमति से तलाक ले रहे हैं तो कोर्ट के द्वारा दिए गए अंतिम आदेश या डिक्री प्राप्त होने के बाद दूसरा विवाह किया जा सकता है। आपसी सहमति से किये गए तलाक के बाद दूसरे विवाह के लिए समय सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है। 

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2. कॉंटेस्टेड तलाक की स्थिति में– यदि पति पत्नी द्वारा कॉंटेस्टेड तलाक लिया जा रहा है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय द्वारा प्रदान तलाक के अंतिम आदेश के प्राप्त होने के 90 दिन यानि कि तीन महीनों के बाद दूसरा विवाह किया जा सकता है।

3. एक तरफा तलाक की स्थिति में– एक तरफा तलाक की स्थिति में न्यायालय द्वारा तलाक की की डिक्री प्राप्त होने के 6 महीने बाद दूसरी शादी कर सकने का प्रावधान है।

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न्यायालय द्वारा तलाक की डिक्री दिए जाने के पश्चात दूसरे विवाह से सम्बंधित बातों को हिन्दू विवाह अधिनियन की धारा 15 में भी निर्दिष्ट किया गया है। इस धारा में इस बात का उल्लेख है कि यदि न्यायालय द्वारा प्राप्त डिक्री की अपील न हो तो पति या पत्नी अपनी इच्छानुसार दूसरा विवाह करने के लिए स्वतंत्र होते हैं।

आपसी सहमति से तलाक के मामले में एक और बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह है कि इस तरह के तलाक के मामले में पति और पत्नी आपसी सहमति से तलाक के लिए राजी होते हैं और इस स्थिति में न्यायालय द्वारा दी गई डिक्री की अपील नहीं होती है। अन्य मामलों में जब न्यायलय द्वारा तलाक की डिक्री दे दी जाती है और पत्रकार द्वारा अगर इसे 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये चुनौती दी जाती है तो इस यहां तलाक के मामले को लंबित ही माना जाएगा और इस दौरान कोई भी पक्षकार दूसरी शादी नही कर सकता।

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अपील दायर करने के बाद विवाह

यदि उच्च न्यायालय में तलाक की डिक्री को चुनौती देती हुई अपील दायर है और किसी भी पक्षकार ने विवाह कर लिया तो इस मामले में दूसरा विवाह शून्य माना जाएगा। हालांकि इस अपील के दौरान पति पत्नी के मध्य किसी प्रकार का राजीनामा हो जाए और उसे उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर दिया जाए तो इस के बाद तुरंत शादी की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस बात को कोई मामलों में स्प्ष्ट कर दिया गया है कि राज़ीनाम की अर्जी दिये जाने के पश्चात उच्च न्यायालय के पास किसी अन्य आदेश को देने की स्थिति नहीं होती। उच्च न्यायालय सिर्फ़ अपील को वापस लिए जाने का आदेश जारी कर देता है।

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