लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे जायज़ है?

लिव-इन-रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे समन्यायी है

लिव-इन रिलेशनशिप बिल्कुल शादी के रिश्ते जैसा ही एक रिश्ता होता है। इस रिश्ते में दो लोग बिल्कुल एक शादीशुदा कपल की तरह एक ही घर में साथ रहते है। हालाँकि, भारत में इस रिश्ते को कुछ ख़ास अहमियत या इज़्ज़त नहीं दी जाती है और ना ही कानून के तहत लिव इन रिलेशनशिप को बहुत अच्छे से परिभाषित नहीं किया गया है। कानूनी भाषा में इस रिश्ते को ”नेचर ऑफ मैरिज” के रूप में समझा गया है। लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा होने वाले बच्चों को भारत में कानूनी रूप से जायज़ माना जाता है लेकिन जैसा की ऊपर बताया गया समाज की नजरों में ना ही इस रिश्ते को इज़्ज़त मिली है और ना ही उनसे होने वाले बच्चों को। 

हालाँकि न्यायालयों ने ऐसे केसिस के सामने आने के दौरान कई बार लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के अधिकारों, जरूरतों, कंडीशंस आदि को समझाया है। आईये जानते है वह क्या है। 

शर्तें –

कपल का बालिग़ होना जरूरी है।  

भारतीय कोर्ट द्वारा लगाई गयी पहली शर्त यह है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले दोनों लोगों का बालिग़ होना यानि 18 साल की उम्र या उससे ज्यादा का होना जरूरी है।  

पार्टनर्स की तरह रहना – 

लिव-इन रिलेशनशिप मे लड़का और लड़की को समाजिक तौर पर एक कपल की तरह ही रहना जरूरी है। इस रिश्ते को निभाते हुए दोनों  पार्टनर्स को एक दूसरे की जिम्मेदारियां उठानी होगी और मैरिड कपल की तरह ही सेक्सुअल रिलेशन में रहना होगा। 

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रिलेशन का समय 

इस रिश्ते में कपल को लगातार रहना होगा। ऐसे रिश्ते को लिव-इन नहीं समझा जायेगा जिसमे कपल 1-2 महीने साथ रहे फिर अलग हो गए फिर थोड़े समय साथ रहे। 

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शर्तों के साथ-साथ लिव इन रिलेशन में रहने वाले कपल्स और उनसे होने वाले बच्चों को कुछ अधिकार भी दिए जाते है।

बच्चों की वैधता 

लिव-इन-रिलेशनशिप से पैदा होने वाले बच्चों के लिए एक सबसे जरूरी अधिकार उनकी ‘वैधता का अधिकार’ होता है। इसके अलावा, यह सभी अधिकार बच्चे को मिलने वाले या ना मिलने वाले बाकि अधिकारों के आधार पर भी होते है। 

बालासुब्रमण्यम वी. श्रुतयान के केस में कहा गया था “अगर एक लड़की और लड़का एक घर में सालों से रह रहे है और उनके बीच सेक्सुअल रिलेशन्स भी बनते है, तो एविडेंस एक्ट के सेक्शन 114 के तहत उनको एक शादीशुदा कपल समझा जायेगा। साथ ही, उनसे पैदा होने वाले बच्चे को नाजायज़ नहीं ठहराया जा सकता है। इस रिश्ते से होने वाले बच्चों को किसी भी परिस्थिति में नाजायज नहीं माना जा सकता है।

संपत्ति के अधिकार

संपत्ति के अधिकारों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भारत माता और अन्य V. विजया रंगनाथन एंड एसोसिएट्स के मामले में एक फैसला सुनाया था। फैसला यह था कि दो लोगों के लिव-इन संबंध से पैदा होने वाले बच्चों को उनके माता पिता की सम्पत्ति में उत्तराधिकारी माना जा सकता है। साथ ही, कानून की नजर में भी उन्हें एक वैध उत्तराधिकारी माना जा सकता है। संविधान के आर्टिकल 39(एफ) के अनुसार ही यह स्टेटमेंट है, जिसमें बताया गया है कि सभी बच्चे कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में अपने माता पिता की सम्पत्ति पर हक़ रखते है।

इसी प्रकार से कई और केसिस के द्वारा भी बच्चों और लिव-इन पार्टनर्स को काफ़ी अधिकार मिले है। 

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