कोर्ट के आदेशों का पालन ना करने पर हाईकोर्ट ने तीन महीने की सजा सुनाई।

दिल्ली हाई कोर्ट ने वैवाहिक विवाद

दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा एक व्यक्ति को बार बार न्यायालय के आदेश की अवज्ञा करने पर सजा सुनाई गई थी। न्यायालय द्वारा बार बार दिये जा रहे निर्देशों की अवमानना करने से कुपित हुए न्यायालय ने व्यक्ति पर अर्थदंड लगाकर दण्डित किया है। 

दिल्ली हाई कोर्ट के एक वैवाहिक विवाद के मामले में एक व्यक्ति द्वारा बारम्बार भरण-पोषण के आदेश की अवमानना की जा रही थी। व्यक्ति बार बार दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना कर आने दायित्व का निर्वहन नहीं कर रहा था। न्यायालय ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि व्यक्ति भरण-पोषण के दायित्व से बचने के लिए अपनी वास्तविक आय भी ग़लत बता रहा था। 

दिल्ली हाई कोर्ट में पत्नी द्वारा दायर कंटेम्पट ऑफ कोर्ट एक्ट, 1971 की 10, 11 और 12 के तहत अवमानना की याचिका पर सुनवाई करते दिल्ली उच्च न्यायालय ने पाया कि पति ने न सिर्फ़ फैमिली कोर्ट की बात की अवहेलना की थी बल्कि दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेशों का भी पालन नहीं किया था।

सुनवाई के दौरान मौजूद जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह ने इस मामले के लिए कहा कि न्यायालय की अवहेलना किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। यदि ऐसा कोई भी कृत्य किया जाएगा तो इससे निश्चित तौर पर अराजकता बढ़ेगी। 

फैसल सुनाते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि : इस तरह के मामलों पर विचार के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि महज 2000 रुपयों के जुर्माने से न्याय प्राप्ति का लक्ष्य पूर्ण नहीं होता है। इसलिये कारावास की सज़ा इसे ध्यान में रख कर दी जाती है व्यक्ति ने इच्छा से न्यायालय के आदेशों की पूर्ण अवहेलना की है और अपने दायित्वों से पल्ला झाड़ा है।

इस सज़ा को सुनाने के बाद हालांकि कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि दी हुई सज़ा पर न्यायालय विचार कर सकता है यदि व्यक्ति दो हफ्तों के भीतर न्यायालय के निर्देशों का पालन करे। यदि दो हफ्तों में न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया जाता है तो व्यक्ति को 9 दिसम्बर 2021 को केंद्रीय तिहाड़ जेल के जेल अधीक्षक के सम्मुख आत्मसमर्पण करना होगा। हालाँकि न्यायालय ने यह स्पस्ट नहीं किया की पति के जेल जाने की स्थिति में महिला का भरण पोषण कौन करेगा ?

किसी भी विवाहित महिला के पास भरण-पोषण का अधिकार होता है। उसे यह हक़ है कि वह अपने पति से भरण पोषण की हकदार होगी। यदि पति भरण पोषण के दायित्व से मुंह फेरता है तो इस स्थिति में वह न्यायालय के समक्ष वाद दायर कर सकती है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने रजनीश बनाम नेहा के मामले में इस बात को स्पष्ट किया है कि जिस भी महिला को सी आर पी सी की धारा 125 के तहत भरण पोषण प्राप्त करने का आदेश न्यायालय द्वारा दिया जाता है। उसके पति द्वारा यदि आदेश के 1 वर्ष पूर्ण हो जाने पर भी गुज़ारा भत्ता नहीं दिया जाता है तब महिला के पास यह अधिकार होगा कि वो सी आर पी सी की धारा 125 (3) के तहत न्यायालय के समक्ष गुज़ारा भत्ता प्राप्त करने के संबंध में एक आवेदन प्रस्तुत कर सकेगी।

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