सभी कहते है कि बच्चे भगवान् का रूप होते है। अगर वही वो एक नाजायज़ बच्चा हो तो सभी की सोंच और नजरिया बदल जाता है। हालाँकि, कानून की नज़र में ऐसा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने एक केस के चलते फैसला सुनाया कि नाजायज बच्चे भी अपने पेरेंट्स की प्रॉपर्टी के हकदार है। हांलांकि, वह केवल अपने माता-पिता की प्रॉपर्टी में हिस्से के हकदार होंगे, लेकिन संयुक्त परिवार की प्रॉपर्टी के मैटर में, वह इसे अपने दम पर दावा नहीं कर सकते है।
संविधान के आर्टिकल 39 (एफ) में कहा गया है कि बच्चों को स्वस्थ तरीके से और स्वतंत्रता और सम्मान के साथ बड़ा होने के मौके और सुविधाएं दी जानी चाहिए। बिना गलती किये बच्चों को सजा नहीं मिलनी चाहिए। नैतिकता के नाम पर बचपन और जवानी का शोषण नहीं किया जाना चाहिए। प्रॉपर्टी का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है। आर्टिकल 300A के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी सम्पत्ति या प्रॉपर्टी से वंचित नहीं किया जा सकता है।
आईये इस लेख में जानते है कि पिता की सम्पत्ति में विवाहित बेटी का अधिकार, नाजायज बच्चों की कानूनी परिभाषा क्या है? और माँ की संपत्ति में बेटी का अधिकार क्या है आदि।
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नाजायज बच्चों की कानूनी परिभाषा
एक नाजायज बच्चा वह होता है, जिसके माता-पिता कानून के अनुसार विवाहित/मैरिड नहीं हैं। शादी के बाद पैदा हुए बच्चे को वैध माना जाता है जबकि शादी से पहले पैदा हुए बच्चे को नाज़ायज़ माना जाता है। हिंदू कानून के तहत, एक बच्चे को निम्नलिखित स्थितियों में नाजायज करार दिया जाता है –
- शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे।
- रद्द/शून्यकरणीय विवाह से पैदा हुए बच्चे।
- अवैध संबंधों जैसे सपिण्डा रिलेशन से पैदा हुए बच्चे।
- दूसरी या किसी अन्य पत्नी के माध्यम से पैदा हुए बच्चे।
नाजायज़ बच्चों के प्रॉपर्टी से संबंधित अधिकार क्या है?
हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 16(3) के तहत नाजायज बच्चों के अधिकार बताये गए है। सेक्शन 16(3) के अनुसार, नाजायज बच्चा केवल अपने माता-पिता की संपत्ति की हकदार होता है, किसी अन्य रिश्ते की प्रॉपर्टी का नहीं। इसी प्रकार नाजायज़ बच्चे कानून के अनुसार किसी पुश्तैनी प्रॉपर्टी के भी हकदार नहीं है। यह कानून हिंदुओं के अलावा सिखों, जैनियों और बौद्धों पर भी लागू होता है।
गार्डियनशिप
नाजायज बच्चों का कोई प्राकृतिक अभिभावक या गार्डियन नहीं होता है क्योंकि उन्हें किसी का वैध बच्चा नहीं माना जाता है। उसके बायोलॉजिकल पिता को भी स्वचालित रूप से नाजायज बच्चे का प्राकृतिक संरक्षक नहीं माना जाता है। एक नाजायज बच्चे की माँ को ही केवल उसका प्राकृतिक संरक्षक माना जाता है जब तक कि बच्चा पाँच साल का नहीं हो जाता है।
मेंटेनेंस
भारत में आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के सेक्शन 125 के तहत नाजायज बच्चों के मेंटेंनेस को वैधानिक रूप से मान्यता दी गयी है। किसी भी बच्चे को उसके माता-पिता द्वारा ऐसे ही नहीं छोड़ दिया जाना चाहिए। एक नाजायद बक्ठे के खर्च को उठाने की सबसे जयादा जिम्मेदारी उसके माता-पिता की ही बनती है।
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