हिंदू मैरिज एक्ट के तहत आपसी तलाक लेने की शर्तें क्या है?

हिंदू मैरिज एक्ट के तहत आपसी तलाक लेने की शर्तें क्या है?

आपसी सहमति से डाइवोर्स क्या है? 

प्राचीन काल से कुछ कहावते है जिनमे से एक है कि  जोडिया तो स्वर्ग में बनती हैं। लेकिन शादी और डाइवोर्स धरती पर ही होते है। पर डाइवोर्स का मतलब फेलियर नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार है। डाइवोर्स मतलब एक शादी को कानूनी तौर पर ख़त्म करना होता है।

हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत तलाक कैसे ले?

“आपसी सहमति से डाइवोर्स” अलग होने या डाइवोर्स लेने का सबसे आसान और कम दर्दनाक तरीका है। जब कपल अपनी मर्जी से अपनी शादी को खत्म करना चाहते है, तो उसे म्यूच्यूअल कंसेंट डाइवोर्स या आपसी सहमति से डाइवोर्स लेना कहते है। यह दोनों पार्टनर्स की सहमति से होता है इसलिए इसका प्रोसेस भी बाकि सभी डाइवोर्स के प्रोसीजर से आसान होता है।

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के सेक्शन 13, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के सेक्शन 28 और सेक्शन 10ए, इंडियन डाइवोर्स एक्ट 1869 के तहत, हस्बैंड-वाइफ को यह अधिकार है कि वे अपनी शादी को खत्म करके डाइवोर्स की डिक्री ले सकते है।

आपसी तलाक लेने की क्या शर्ते है?

  1. कपल कम से कम एक साल से अलग रह रहे होने चाहिए।
  2. दोनों पार्टनर्स को लग रहा हो कि अब वे एक साथ कपल की तरह नहीं रह सकते है।
  3. दोनों पार्टनर्स सहमत हो की उनकी शादी टूट रही है।
  4. दोनों पार्टनर्स बिना किसी प्रेशर के, डाइवोर्स की जॉइंट पिटीशन फाइल करने और उसका पालन करने के लिए सहमत होने चाहिए।

यह डाइवोर्स लेने के लिए जरुरी डाक्यूमेंट्स 

  1. कपल का मैरिज सर्टिफिकेट।
  2. दोनों पार्टनर्स का एड्रेस प्रूफ।
  3. कपल की शादी की चार तस्वीरें।
  4. कपल के पिछले 3 सालों की इनकम की डिटेल्स (सैलरी स्लिप, ऑफर लेटर) ।
  5. कपल की सारी प्रॉपर्टी की डिटेल्स।
  6. कपल के एक साल से अलग रह रहे होने का सबूत।

आपसी सहमति से डाइवोर्स लेने के फायदे 

हिंदू मैरिज एक्ट में तलाक लेने के नियम क्या है – 

(1) बच्चे की कस्टडी

इस तलाक में ज्यादातर दोनों पार्टनर्स पहले से ही तय कर लेते है कि डाइवोर्स के बाद बच्चे कि कस्टडी किसके पास रहेगी।

(2) गुजारा भत्ता

गुज़ारा भत्ता, कपल के बीच तय की जाने वाली एक फिक्स अमाउंट होता है, जो हस्बैंड द्वारा वाइफ को दिया जाती है। आपसी सहमति वाले केसिस में कपल बिना लड़े-झगडे आपस में गुज़ारा भत्ता तय कर लेते है। जिससे कोर्ट को भी फैसला करने में ज्यादा परेशानियां नहीं आती।

(3) वस्तुएं लौटाना

 अगर कपल चाहें तो डाइवोर्स के समय शादी में मिले हुई वस्तुएं जैसे- दहेज, स्त्रीधन, आदि भी वापस किया जाता है। शादी के समय होने वाले लेन-देन की वस्तुएं भी सहमति से वापस कर दी जाती है।

(4) मुकदमेबाजी खर्च

आपसी सहमति से डाइवोर्स का पूरा प्रोसेस केवल एक वकील भी कर सकता है। दोनों पार्टनर्स को अलग-अलग वकील अपॉइंट करने की जरुरत नहीं है। जिससे मुक़दमे में होने वाला काफी खर्च बच जाता है।

(5) समय की बचत

 बाकी सभी डाइवोर्स की तुलना में इस डाइवोर्स में काफी कम स्टेप्स होते है। जिस वजह से इसमें काफी कम समय लगता है।

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