माता-पिता के लिए उनके बच्चे ही उनका जीवन होते है। अगर किसी पैरेंट को उसके बच्चे से अलग किया जाये तो उसकी मानसिक स्थिति क्या होगी यह कल्पना करना बहुत मुश्किल है। ऐसे में अगर कोई पैरेंट मानसिक रूप से पीड़ित है या किसी मानसिक बीमारी से जूझ तरह है तो क्या उसके बच्चे को उससे अलग कर देना सही है। आज इस ब्लॉग में हम इसी से संबंधित जानकारी प्राप्त करेंगे।
मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के बच्चे की कस्टडी
मानसिक बीमारी किसी को भी अपना शिकार बना सकती है। लेकिन फिर भी कई बार इस मुद्दे पर बात करना लोगों को मुश्किल लगता है क्योंकि ज्यादातर लोग किसी भी मानसिक बीमारी को केवल पागलपन का नाम देते है।
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भले ही इसे कितना भी छुपा कर रखा जाए लेकिन एक व्यक्ति की मानसिक बीमारी उसकी ज़िन्दगी के हर पहलू के साथ-साथ उसके आसपास के लोगों को भी प्रभावित करती है। यह अक्सर रिश्तों और शादियों को बुरी तरह से तबाह कर देती है। यह ना सिर्फ शादी के रिश्ते को तलाक तक ले जाती है बल्कि अगर माता-पिता को किसी प्रकार की मानसिक बीमारी हो तो यह उनके बच्चे की कस्टडी के केस में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है या यूँ कहो कि बहुत बुरा प्रभाव डालता है।
पैरेंट की मानसिक बीमारी का बच्चे की कस्टडी पर प्रभाव
मानसिक बीमारी वाले माता-पिता से जुड़े केसिस आमतौर पर पेंचीदा होते हैं। इन केसिस में क्लाइंट और वकील दोनों ही चिंता में पड़ जाते है। ऐसे केसिस में सबसे महत्वपूर्ण है कि क्लाइंट किस तरह की बीमारी का शिकार है और उसके क्या लक्षण है। इस तरह के केसिस में ज्यादार चिंता, डिप्रेशन, सीमा रेखा व्यक्तित्व विकार/डिसॉर्डर, द्विध्रुवी विकार/डिसॉर्डर और कई अन्य स्थितियाँ शामिल है।
हर विकार/डिसॉर्डर की प्रकृति और लक्षण बहुत अलग होते है। यह अलग-अलग स्थितियां और मानसिक बीमारियां ही अलग-अलग बच्चे की कस्टडी के केस को प्रभावित करते है।
कस्टडी के लिए फैक्टर्स
इसी तरह यह बहुत से फैक्टर्स और कारणों पर निर्भर करता है कि बच्चे की कस्टडी मानसिक रोगी पैरेंट को दी जाएगी या नहीं।
- रोगी पैरेंट गंभीर है या नहीं
- उसके सही होने के कितने चांस है।
- इलाज कराने के लिए उनकी इच्छा
- सही होने के लिए ऑप्शन्स
इसके अलावा यह कई अन्य फैक्टर्स पर निर्भर करता है।
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