भारत में कई बार भारत के कानून के तहत, केस फाइल किया जाता है लेकिन उस केस पर जितना जल्दी एक्शन लिया जाना चाहिए उतना हो देर से होता है ऐसा कानून की लापरवाही की वजह से हो सकता है। हालाँकि, ऐसा केसिस की भरमार और बहुत ज्यादा काम की पेंडेन्सी की वजह से हो सकता है।
एक केस जिसमे पेंडेंसी की वजह से पिटीशनर के केस में 9 साल तक छानबीन की गयी लेकिन फिर भी कोई रिजल्ट नहीं निकला कोर्ट द्वारा कोई भी फैसला नहीं किया गया।
केस के फैक्ट्स
पिटीशनर की तरफ से पेश हुए वकील अल्जो के. जोसेफ ने कोर्ट के सामने यह फैक्ट रखा कि उसके क्लाइंट मतलब इस पिटीशनर का केस सीआरपीसी के सेक्शन 436 A के तहत फाइल किया गया था। इस कानून के तहत सज़ा के प्रोविजन्स के अनुसार एक आरोपी जिसका आरोप सिद्ध हो गया है उस व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा 5 साल तक की सज़ा हो सकती है। और उसका क्लाइंट 4 साल की सज़ा पहले ही काट चुका है और अब इससे ज्यादा सज़ा देना सही नहीं है।
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अवैध गिरफ्तारी
केस के इन सभी जरूरी फैक्ट्स को देखने के बाद पिटीशनर द्वारा यह बात भी सामने आयी कि पुलिस के द्वारा पिटीशनर को गिरफ्तार करना भी अवैध था। पिटीशनर को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था। और यह गिरफ्तारी अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सिद्धांतों (international human rights principles) के हिसाब से नहीं की गयी है, बल्कि यह उनकी प्रोसेस के बिलकुल खिलाफ थी।
विदेश के अपराध की सज़ा भारत में नहीं दी जाएगी
प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) की तरफ से पेश हुए एसवी राजू ने कोर्ट के सामने यह फैक्ट भी रखा कि भारत के एक्सट्राडिक्शन (Extradition) एक्ट के सेक्शन 21 के तहत एक विदेश (foreign) से आये हुए व्यक्ति पर इस बात के लिए केस नहीं किया जा सकता है कि वो व्यक्ति विदेश में कुछ अपराध करके भारत रहने आया है। इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि उसके द्वारा क्या अपराध किया गया है।
अगर एक व्यक्ति भारत के बाहर किसी भी देश में कोई अपराध करने के बाद भारत में रहने आ गया है तो उस व्यक्ति को भारत की कोर्ट के तहत विदेश में किये गए किसी भी अपराध की सज़ा नहीं दी जाएगी, बशर्ते उसने ऐसा कोई काम या अपराध ना किया हो जिसके तहत उसे यहां सज़ा देने के प्रोविज़न हो।
केस पर सीजीआई चंद्रचूड़ की मौखिक टिप्पणी
पहले ही आरोपी माइकल को चार साल से ज्यादा समय के लिए जेल में रखा जा चुका है, और वह चार साल की सज़ा काट चूका है। माईकल एक विदेशी है और उसके केस में जो भी सज़ा दी जाएगी वह विदेश के कोर्ट द्वारा ही ग्रांट की जाएगी सिर्फ इसलिए माईकल को भारत की कोर्ट से ना तो सज़ा मिली और ना ही उसे बेल दी गयी। हालाँकि, अगर वह व्यक्ति भारतीय नागरिक होता, तो उस व्यक्ति को कोर्ट से पहले ही बेल दी जा चुकी होती।
माइकल वह विदेशी व्यक्ति था जिसे दिसंबर 2018 में दुबई से वापस भेज दिए जाने के बाद गिरफ्तार/अरेस्ट किया गया था। वीवीआईपी हेलिकॉप्टर के एक घोटाले में हुए एक अवैध/इललीगल लेनदेन के केस में उसका भी नाम था। इस केस के अवैध लेन देन में उस विदेशी व्यक्ति का नाम एक बिचौलिए की तरह लिया गया था।
इस केस में सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में विदेशी व्यक्ति को आरोप लगाया था कि यूरो 398.21 मतलब भारत की करेंसी के हिसाब से 266 करोड़ का घोटाला किया गया था।
8 फरवरी, 2010 को इस चॉपर का 556.262 मिलियन यूरो में सौदा हुआ था जिस पर साइन भी किये थे। इस तरह प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने जून 2016 में माइकल के खिलाफ चार्ज शीट फाइल की और आरोप लगाया कि उसने अगस्ता वेस्टलैंड से 30 मिलियन यूरो लगभग भारत के 225 करोड़ रूपये लिए है।
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