क्या अडल्ट्री के केस में कोर्ट डीएनए टेस्ट के लिए आर्डर दे सकता है?

क्या अडल्ट्री के केस में कोर्ट डीएनए टेस्ट के लिए ऑर्डर दे सकता है

भारतीय कोर्ट कई बार कड़वे वैवाहिक विवादों/मैट्रिमोनियल डिस्प्यूट्स का गवाह बना हैं जिसके बीच बच्चे अक्सर अपने ही माता-पिता की लड़ाई के शिकार बनते हैं। फैक्ट यह है कि एक वैध शादी से होने वाले एक बच्चे को कानूनी रूप से “वैध” माना जाता है, जब तक की यह बात साबित ना हो जाए की उसका पिता महिला के पति के अलावा कोई अन्य है। अक्सर इस तरह के डिस्प्यूट्स में बच्चों के पितृत्व पर सवाल उठाया जाता है जिनको डील करने के बीच बच्चे परेशान हो जाते है। 

अक्सर ऐसे केसिस में पति यह साबित करना चाहते हैं कि डीएनए टेस्ट के आधार पर उनकी पत्नी द्वारा की गयी बेवफाई या व्यभिचार/अडल्ट्री साबित हो सके। बच्चे पर इस तरह के कामों के परिणाम बहुत बुरे होते हैं। ऐसे आवेदन नियमित रूप से दायर किये जाते हैं और यहां तक ​​की बच्चों का डीएनए टेस्ट करने के लिए आदेश भी पास किये जाते हैं।

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भारतीय साक्ष्य एक्ट

भारतीय साक्ष्य एक्ट (Indian Evidence Act) के सेक्शन 112 में कहा गया है कि एक वैध शादी के दौरान या उस शादी के टूटने के 280 दिनों के अंदर एक बच्चे का जन्म होता है तो उस बच्चे को वैध माना जाता है, बशर्ते कि इस बीच पत्नी ने दूसरी शादी ना की हो या किसी अन्य पुरुष के साथ रिलेशन्स ना बनाये हो। 

सेक्शन 114 में कहा गया है कि किसी भी पर्टिकुलर केस के दौरान केस के फैक्ट्स को देखते हुए अगर कोर्ट को ऐसा लगता है कि किसी भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं, मानव आचरण और पब्लिक या प्राइवेट व्यवसाय  की वजह से इस प्रकार की कोई सिचुएशन बन सकती है तो कोर्ट उस सबूत के ना होते हुए भी अपने विवेक के आधार पर और फैक्ट्स की संभावनाओं के आधार पर इसे ही सबूत मान सकता है।

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क्या डीएनए टेस्ट पर्याप्त सबूत है?

भारतीय साक्ष्य एक्ट के सेक्शन 112 में कहा गया है कि एक वैध शादी के दौरान या उस शादी के टूटने के 280 दिनों के अंदर एक बच्चे का जन्म होता है तो उस बच्चे को वैध माना जाता है, बशर्ते कि इस बीच पत्नी ने दूसरी शादी ना की हो या किसी अन्य पुरुष के साथ रिलेशन्स ना बनाये हो। 

सेक्शन 114 में कहा गया है कि किसी भी पर्टिकुलर केस के दौरान केस के फैक्ट्स को देखते हुए अगर कोर्ट को ऐसा लगता है कि किसी भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं, मानव आचरण और पब्लिक या प्राइवेट व्यवसाय  की वजह से इस प्रकार की कोई सिचुएशन बन सकती है तो कोर्ट उस सबूत के ना होते हुए भी अपने विवेक के आधार पर और फैक्ट्स की संभावनाओं के आधार पर इसे ही सबूत मान सकता है।

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