नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के केसिस के लिए क्या नई अदालतें बनवाने की जरूरत है?

नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के केसिस के लिए क्या नई अदालतें बनवाने की जरूरत है?

वैसे तो भारत में न्याय व्यवस्था के लचीलेपन के कारण हर तरह के केसों में देरी हो ही जाती है । यही कारण हैं कि आज भी लाखों की संख्या में केस पेंडिंग में पड़े हुए हैं । एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में भारत में लगभग 2.31 करोड़ केस पेंडिंग हैं । जिसमें से नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के केसों की बात करें तो 35.16 लाख केस ऐसे हैं जो कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत दर्ज मामलों से संबंधित हैं। नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के इतनी भारी मात्रा में पेंडिंग केस भारत की न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते हैं। इसलिए यदि व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाना तथा नागरिकों को यथोचित अधिकार प्रदान करना है तो भारत में अतिरिक्त  अदालतों की स्थापना की आवश्यकता है। क्योंकि यह आर्थिक मामले अत्यंत संवेदनशील है इसलिए समस्त वरिष्ठ विधिक विद्वानों का भी मानना है कि इस तरह के अदालतों में इजाफा करने की अत्यंत आवश्यकता है।

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नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट में कौन से केस आते हैं?

नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट खास तौर पर चेक बाउंस के मामलों से संबंधित है। यदि कोई व्यक्ति चेक के माध्यम से फ्रॉड करने की कोशिश करता है तो वह नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के अंतर्गत अपराधी माना जाता है। इस एक्ट के अंतर्गत खासकर निम्नलिखित मुद्दे आते हैं।

  • किसी कर्जदार व्यक्ति द्वारा धन वापसी के संबंध में यदि चेक बाउंस होता है तो उसका निस्तारण इसी एक्ट के तहत होता है । 
  • किसी एग्रीमेंट से संबंधित आर्थिक समझौते के निस्तारण हेतु।
  • किसी विनियम बिल के निस्तारण हेतु।
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नेगोशिएबल एक्ट 138 के अंतर्गत सजा का क्या प्रावधान है?

इस इस केस में 15 दिन का समय अदालत द्वारा आरोपी पक्ष को दिया जाता है यदि इस 15 दिन के अंतराल में कोई जवाब नहीं मिलता है तो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 के सेक्शन 138 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है इस तरह के केस में जो व्यक्ति जारी करता है उसे 2 साल तक की सजा हो सकती है। इसके अतिरिक्त उसे राशि का 2 गुना भुगतान भी अदालत के आदेश पर देना पड़ सकता है।

नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के लिए क्या विशेष कोर्ट होते हैं?

नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 18 सो 81 के सेक्शन 138 के तहत मुकदमा दर्ज करने के लिए आपको अपने स्थानीय न्यायालय में ही जाना होगा । जहां पर आपको अलग-अलग तरह के मुकदमों के लिए अलग-अलग बेंच और केस फाइल के बारे में जानकारी मिल जाएगी। यह काम बहुत मुश्किल नहीं है लेकिन फिर भी आपको इस तरह के केस को फाइल करने के लिए एक लीगल एडवाइजर की आवश्यकता होगी । केस फाइल करने से पहले आपको यह ध्यान रखना है कि आपके पास इस केस से संबंधित समस्त दस्तावेज पहले से ही मौजूद हों जैसे कि चेक संबंधी दस्तावेज, एग्रीमेंट ( यदि उपलब्ध हो) , लीगल नोटिस की प्रति जो कि  30 दिन पूर्व चेक प्रदाता को भेजनी होती है और अन्य दस्तावेज। इस तरह से आप अपने स्थानीय न्यायालय,  हाईकोर्ट आदि जगहों से इस तरह का केस फाइल कर सकते हैं।

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