अब मनी रिकवरी के केसिस में पुलिस द्वारा जांच का आदेश जरूरी है।

अब मनी रिकवरी के केसिस में पुलिस द्वारा जांच का आदेश जरूरी है

वसूली के केस में अब पुलिस जांच का आदेश जरूरी हो गया है ।‌ हाल ही में केरल राज्य में एक घटना सामने आई । जिसमें कोर्ट ने ऐसा आदेश दिया है कि यदि कोई अभियुक्त जिसका संबंध वसूली से है , ऐसे में किसी भी तरह की वसूली करने से पूर्व पुलिस जांच द्वारा छान बीन आवश्यक है । अभी तक कई जगहों पर ऐसे मामले देखने को मिलते थे जिसमें कुछ फ्राड निर्दोषों से विभिन्न रिश्तों के आधार पर जैसे नकली विवाह आदि करके उनसे वसूली करवाते थे । लेकिन अब ऐसे केस में कोर्ट ने पुलिस जांच का आदेश जरूरी कर दिया है ।

वसूली के वारंट वाले मामले में केरल हाईकोर्ट का निर्णय क्या है 

केरल हाईकोर्ट के न्यायधीश के. बाबू. की एकल अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए अपने जारी एक आदेश के माध्यम से कहा 

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‘यदि ऐसे तथ्य सामने आते हैं जिससे पता चलता है कि केस से संबंधित दस्तावेज या दूसरी भौतिक वस्तुएं अभियुक्त के कब्जे में हैं, तो न्याय के लिए पुलिस को अधिनियम के तहत शक्ति का सहारा लेकर जांच करने और उन्हें पुनर्प्राप्त करने का कार्य दिया जाए। ऐसे मामलों में, सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत दिए गए जांच के आदेश के बिना, कोई भी शिकायत करने वाला व्यक्ति अपने आरोपों के संबंध में प्रासंगिक साक्ष्य को दोबारा प्राप्त करने की स्थिति में नहीं हो सकता है।’

इस निर्णय में पुलिस जांच के संबंध में हाईकोर्ट ने आदेश दिया 

 ऐसे किसी भी मामले को न्यायिक तर्क द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए। इस सवाल पर विचार करते हुए कि क्या शिकायत को जांच के लिए पुलिस को भेजा जाना है, ‘पुलिस जांच की आवश्यकता’ है। पुलिस जांच की आवश्यकता आरोपों की प्रकृति पर निर्भर करती है।”

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अतः यदि आरोप ऐसे हुए जिसमें पुलिस की जांच की आवश्यकता होगी तो उस मामले की  जांच पुलिस को भी मजिस्ट्रेट के द्वारा सौंपी जा सकती है और एक निश्चित समयावधि के दौरान पुलिस अधिकारी को वह जांच कोर्ट में प्रस्तुत करनी होगी।

वसूली का वारंट क्या होता है?

वसूली का वारंट मुख्य रूप से उन आरोपियों के लिए जारी होता है जो संविधान द्वारा स्थापित नियमों का पालन नहीं करते । उदाहरण के लिए एक पत्नी के भरण पोषण की जिम्मेदारी उसके पति की होती है । अल्प वयस्क बच्चों के भरण पोषण की जिम्मेदारी उनके पिता की होती है । वृद्ध माता और पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी उनके बच्चों की होती है। और भी कई जगहों पर ये नियम लागू होते हैं । यदि इस प्रकार की जिम्मेदारी का निर्वहन करने से कोई भी व्यक्ति पीछे हटता है तो कोर्ट उसे वारंट जारी करने का आदेश करता है ।

CRPC की धारा 156(3) की सीमाएं क्या है?

सी आर पी सी की धारा 156(3) के अनुसार धारा 190 के अधीन कोई भी मजिस्ट्रेट पूर्वोक्त प्रकार की खोजबीन करने का अथारिटी रखता है तथा वो इसका आदेश कर सकता है। अर्थात सीआरपीसी की धारा 156 (3) में ऐसा प्रावधान है, अगर पुलिस तहरीर मिलने पर केस न लिखे तो कोर्ट उसे आदेश दे सकती है। कई बार  अलग अलग जगहों पर हमें देखने को मिलता है कि हत्या तक के वे मामले भी कोर्ट के पास पहुंच जाते हैं, जिनमें पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती। अहम बात ये होती है कि कोर्ट के आदेश  पर पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी ही पड़ती है। अगर कोर्ट के आदेश के बाद भी उपरोक्त पुलिस थाने में केस दर्ज नहीं किया जाता तो इसे कोर्ट की अवमानना माना जाएगा।

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