पक्षद्रोही गवाह क्या है?

पक्षद्रोही गवाह क्या है

भारत में पक्ष द्रोही गवाहों से संबंधित कई कानून बनाए गए हैं। मगर इन कानूनों को जानने से पहले हमें पक्ष द्रोही गवाह क्या होता है? यह जानना आवश्यक है।

भारतीय कानून के अनुसार पक्षद्रोही उस व्यक्ति को कहा जाता है, जो कि बहुत ही व्यवहारिक या आक्रामक हो या फिर ऐसा व्यक्ति जो हर वक्त बहस करने या लड़ने के लिए तैयार हो। 

पक्ष द्रोही गवाह

सर्वप्रथम इस शब्द “पक्ष द्रोही” का अर्थ सर्वोच्च न्यायालय ने दिया था। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार जब प्रॉसीक्यूशन काउंसिल किसी व्यक्ति को अपने पक्ष में गवाही देने के लिए बुलाती है और वह गवाह अपने पिछले बयान की पुष्टि नहीं करता, तो उस गवाह को पक्ष द्रोही गवाह कहा जाता है।

साधारण शब्दों में यह इस तरह समझा जा सकता है, कि जिस व्यक्ति को एक पक्ष ने अपने गवाह के रूप में बुलाया है। वह व्यक्ति उस पक्ष के लिए या उसके हित में गवाही देने का इच्छुक नहीं होता। तो उसे पक्ष द्रोही गवाह कहते हैं। 

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भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 193 अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति, किसी न्यायिक कार्यवाही के दौरान जानबूझकर झूठी गवाही देता है। तो वह एक अवधि के लिए कारावास या फिर 7 साल तक की सजा और जुर्माना का भागीदार होगा।

प्रति परीक्षण में गवाह के पक्ष द्रोही

प्रति परीक्षण वह परीक्षा होती है, जिससे गुजरने के बाद ही एक व्यक्ति जो गवाह है या साक्ष्य है उसके कथन को सत्य माना जा सकता है।

किसी व्यक्ति को जब साक्ष्य के रूप में अदालत या न्यायालय में बुलाया जाता है, तो उसे साक्षी कहा जाता है। न्यायालय में वह व्यक्ति, जिस पक्ष द्वारा बुलाया गया है उसी पक्ष के व्यक्ति द्वारा ली गई परीक्षा से गुजरता है। इस परीक्षा को जिसे की प्रति परीक्षण कहा जाता है, पास कर लेने पर ही साक्षी के बयान को मान्यता मिलती है। इस

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परीक्षा को लेने का मुख्य कारण होता है, कि उस साक्ष्य व्यक्ति ने जो बयान दिया है क्या वह उन्हीं तथ्यों और अपने कहीं हुई बात और बयान पर कायम है या नहीं इसकी जांच की जा सके।

पक्ष द्रोही गवाहों से संबंधित कानून

धारा 137 , साक्ष्य अधिनियम 1872 के अंतर्गत यदि कोई पक्ष अपने गवाह को बुलाता है, तो वह केवल उसका  मुख्य परीक्षा ले सकता है। वह उससे cross-examination नहीं कर सकता।

हालांकि यदि कोई पक्ष क्रॉस एग्जामिनेशन करना चाहे तो, अदालत से अनुमति लेकर वह अपने ही गवाह का प्रति परीक्षण कर सकता है। इसके लिए भी कुछ नियम बनाए गए हैं :-

  1. धारा 143 के अनुसार साक्ष्य प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति से सूचक प्रश्न ही किए जा सकते हैं।
  2. धारा 145 के अंतर्गत उसके प्रीवियस स्टेटमेंट इन राइटिंग के आधार पर सवाल पूछे जा सकते हैं।
  3. धारा 146 के अंतर्गत उसकी सच्चाई को जांचने के लिए की वह कौन है? उसकी स्थिति, परिस्थितियों, उसके परिवार के लोगों के विषय में प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
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