हैबीस कॉरपस के बजाय वैवाहिक विवाद होने पर पिटीशन खारिज हो सकती है।

हैबीस कॉरपस के बजाय वैवाहिक विवाद होने पर पिटीशन खारिज हो सकती है।

कलकत्ता हाईकोर्ट के जज पार्थ शरतजी चटर्जी और जज तपब्रत चक्रवर्ती की बेंच ने, एक कैदी की हैबीस कोरपस की पिटीशन को खारिज कर दिया। इस पिटीशन को ख़ारिज करने के लिए यह तर्क दिया गया कि इस बात में कोई शक नहीं है कि पति-पत्नी के बीच विवाद चल रहा है जिसके चलते उन्होंने आपस में  दूसरे पर कई आरोप लगाए हैं, जिनकी जांच के बिना इस फैसले पर नहीं आया जा सकता कि पत्नी और बच्चों को गैरकानूनी रूप से पति द्वारा हिरासत में लिया गया था।

बेंच ने यह भी कहा कि गार्डियन एंड वार्डस एक्ट, बच्चों की कस्टडी के केस से संबंधित है और इस एक्ट के तहत जांच और कोर्ट द्वारा शक्तियों के प्रयोग करके फाइल की गयी एक रिट के बीच बहुत अंतर हैं।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

इस केस में, पिटीशनर ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी, उसके नाबालिग बच्चे और उसके ससुराल वाले एक शादी में जाने के लिए हैदराबाद में ससुराल से चले गए थे। पत्नी अपने ससुराल वालों को यह कहकर अपने नाबालिग बच्चों के साथ ट्रेन से निकल गई कि वह अपने बच्चों के साथ शादी में शामिल होने के लिए जा रही है। हालांकि, उसके द्वारा कोई जानकारी नहीं दी गई और वह और उसके बच्चे तब से लापता हैं।

पिटीशनर ने आरोप लगाया था कि पिटीशनर की पत्नी द्वारा किसी प्रकार की सूचना नहीं दी गई थी और तब से वह अपने बच्चों के साथ लापता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने पुलिस और बाल कल्याण समिति से संपर्क किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसलिए पिटीशनर ने हाईकोर्ट में हेबिस कोरपस की पिटीशन फाइल की। पिटीशनर के वकील अयान पोद्दार ने कोर्ट मे प्रस्तुत किया कि पिटीशनर अपने बच्चों का प्राकृतिक अभिभावक/गार्डियन है और पिटीशनर की पत्नी को बच्चों की कस्टडी पति को सौंपने का निर्देश दिया जाना चाहिए।

इसे भी पढ़ें:  पार्टनर एंग्रीमेंट क्या होता है ? इसमें कौन सी चीजें शामिल होती हैं ?

उन्होंने आगे कहा कि बच्चे की कस्टडी को तय करना एक बहुत महत्वपूर्ण फैसला है यह फैसला पार्टियों का अधिकार देखते हुए नहीं, बल्कि बच्चों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। राज्य की तरफ से पेश वकील सिमंत कबीर ने कहा कि पिटीशनर और उसकी पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद चल रहा है। यह भी बताया गया कि पिटीशनर की पत्नी ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के सेक्शन 498ए, सेक्शन 406, सेक्शन 3 और उसके पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज निषेध एक्ट के सेक्शन 4 के तहत कम्प्लेन/शिकायत कराई है। हालांकि, पति को इस मामले में जमानत दे दी गई थी। 

राज्य के वकील द्वारा यह भी बताया किया गया कि बच्चे वर्तमान में अपनी मां के साथ अपने पैतृक घर में रह रहे हैं और पिटीशनर के नाबालिग बेटे को स्कूल में भर्ती कराया गया है। कोर्ट ने कहा कि पिटीशनर और उसकी पत्नी के बीच जो भी वैवाहिक या भौतिक विवाद है, इसका कोई सबूत रिकार्ड्स में नहीं है, जो यह बताता हो कि पिटीशनर की पत्नी और उसके बच्चों को अवैध रूप से कस्टडी में लिया गया है। कोर्ट ने आगे कहा कि हमारे सामने रखी गई दलीलों और दस्तावेजों से हमें यह निष्कर्ष निकालने के लिए कोई ठोस सामग्री नहीं मिली कि नाबालिग बच्चों का कल्याण ख़तरे में है। तदनुसार, कोर्ट ने रिट याचिका खारिज कर दी।

किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से सम्पर्क कर सकते है। यहां आपको पूरी सुविधा दी जाती है और सभी काम कानूनी रूप से किया जाता है। लीड इंडिया के एक्सपर्ट वकील आपकी हर तरह से सहायता करेंगे। हमसे संपर्क करने के लिए आप ऊपर Talk to a Lawyer पर अपना नाम और फ़ोन नंबर दर्ज कर सकते है।

Social Media