एक सैनिक दंपत्ति के तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मानसिक क्रूरता को लेकर टिपण्णी की। कोर्ट ने कहा कि उच्च शिक्षित व्यक्ति का अपने जीवनसाथी की प्रतिष्ठा और करियर को ख़राब करना मानसिक क्रूरता है।
तलाक के मामले में फ़ौजी पति ने फैमिली कोर्ट में अर्जी दी कि उनकी शादी 2006 में हुई थी। लेकिन शादी के एक साल बाद ही दोनों अलग रहने लगे। उनकी पत्नी उच्च शिक्षित है उनके पास पीएचडी डिग्री है।
पति ने कहा कि उनकी पत्नी ने कई बार उनकी शिकायत उनके अधिकारियों से की। इसके कारण उनकी इज्जत और करियर को नुक़सान पहुँचा है।
पति ने कहा कि उनकी पत्नी का यह व्यवहार मानसिक क्रूरता है। अत: इस आधार पर उन्हें तलाक़ दिया मिलना चाहिए। फ़ैमिली कोर्ट ने पति की अर्जी स्वीकार कर ली। लेकिन पत्नी ने दाम्पत्य संबंधों को बहाल करने के लिए हाई कोर्ट में अर्जी लगा दी। हाईकोर्ट ने फ़ैमिली कोर्ट के फ़ैसले को पलट दिया और पत्नी की माँग स्वीकार कर ली।
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लेकिन इसके बाद पति हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया। इस मामले में तीन जजों की पीठ ने पति की अपील स्वीकार करते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट का फ़ैसला खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैमिली कोर्ट की तलाक़ की डिक्री बहाल कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला पूरी तरह पत्नी द्वारा की गयी मानसिक क्रूरता है। इस आधार पर पति तलाक़ पाने का हक़दार है।
कोर्ट ने कहा कि मानसिक क्रूरता के आधार पर जब भी तलाक़ के मामले तय किये जाए तो उस वक्त दोनों पक्षों के शिक्षा के स्तर और उनके सोशल स्टेटस को भी ध्यान में रखना चाहिए। इस मामले में पत्नी नादान नहीं थी बल्कि उच्च शिक्षित थी।
दरअसल इस केस में पत्नी ने अपने पति के खिलाफ सोशल मीडिया में काफी कुछ पोस्ट किया था। साथ ही पति के सैन्य अधिकारियों से भी शिकायते कीं थीं। नतीजतन सेना ने कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी बैठा दी। कोर्ट ने माना कि इससे उसकी उन्नति और करियर प्रभावित हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन आरोपों के कारण पति को काफी कुछ सहना पडा। अब पत्नी को उसके क़ानूनी नतीजे झेलने की बारी है।