भारत में श्रम कानून कौन कौन से हैं?

भारत में श्रम कानून कौन कौन से हैं?

बड़ी-बड़ी कंपनियों के काम हो या या छोटे काम हर जगह पर श्रमिकों का बहुत महत्व होता है। देश में श्रमिकों के योगदान को किसी भी तरह से नकारा नहीं जा सकता और इसीलिए भारतीय कानून में श्रमिकों के लिए उनके अधिकारों के लिए अलग से व्यवस्था है और समय-समय पर भारतीय कानून ने अलग-अलग एक्ट बनाकर श्रमिकों के हितों की रक्षा का प्रयास किया है। 

जैसे न्यूनतम मजदूरी एक्ट 1948 कारखाना एक्ट 1948, मातृत्व लाभ एक्ट 1961 आदि।

आज हम श्रमिकों के हित से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण एक्ट पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

भारतीय श्रम कानून तय करता है कि श्रमिक वर्ग को एक निश्चित मजदूरी, जॉब सिक्योरिटी और एक निश्चित समय तक काम कराए जाएँ कई बार देखने को मिलता है कि कम मजदूरी में लोग श्रमिकों से अधिक काम करवाते हैं अक्सर बड़ी-बड़ी कंपनी में भी काफी समय तक ऐसा देखने को मिला लेकिन श्रमिक कानून आने के बाद कर्मचारियों का जीवन आसान हुआ है। 

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

भारत के अंदर कुछ महत्वपूर्ण श्रम कानूनों की सूची निम्नलिखित है।

मजदूरी भुगतान एक्ट 1936

यह कानून सुनिश्चित करता है कि भारत में काम करने वाले प्रत्येक श्रमिक को एक निश्चित समय पर उचित मजदूरी का भुगतान किया जाए।  मजदूरी भुगतान एक्ट 1936 के तहत यह भी कहा गया है कि मजदूरी का भुगतान भारतीय मुद्रा में होना चाहिए। पुराने समय में कई बार के बदले श्रमिकों को गाय बकरी, घोड़ा अथवा अन्य चीजें दे दी जाती थी लेकिन अब इस पर शख्त पाबंदी है।

इसे भी पढ़ें:  जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराना कब जरूरी है?

औद्योगिक विवाद एक्ट 1947

यह एक्ट भारत में काम करने वाले प्रत्येक कर्मचारी की जॉब सिक्योरिटी को निश्चित करता है ।‌ इसके अनुसार कोई भी कंपनी किसी भी कर्मचारी को यदि वह उक्त कंपनी में एक वर्ष से अधिक कार्य कर रहा है तो उसे बर्खास्तगी के लिए वैध कारण देने होंगे। 

न्यूनतम मजदूरी एक्ट 1948

कम पैसों में ज्यादा काम करना यह भारतीय कानून के अंतर्गत दंडनीय अपराध है इसलिए भारत में काम करने वाले हर श्रमिक को न्यूनतम मजदूरी दी जानी चाहिए और न्यूनतम मजदूरी एक्ट 1948 इसी परिप्रेक्ष्य में बनाया गया है।

इस एक्ट के तहत अलग-अलग जगहों के हिसाब से न्यूनतम वेतन 143 रुपए से 1120 रुपए प्रतिदिन के बीच हो सकता है। 

मातृत्व लाभ एक्ट 1961

मुख्य रूप से मातृत्व लाभ एक्ट 1961 श्रमिक वर्ग में काम करने वाली महिलाओं के लिए बनाया गया है। इस एक्ट के तहत महिलाओं को अधिक छुट्टियां मिलनी चाहिए ‌। महिलाओं के मासिक धर्म से लेकर प्रसव तक में अत्यधिक पीड़ा और परेशानी का सामना करना पड़ता है इसलिए ऐसे सभी कार्यालयों को यह निर्देश दिए जाते हैं कि ऐसी स्थिति में उन्हें आसानी के साथ अवकाश की व्यवस्था भी कराई जाए। मातृत्व लाभ एक्ट 1961 ऐसे सभी कार्यालय और संस्थानों में लागू होता है जहां 10 से अधिक कर्मचारी काम कर रहे होते हैं।

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न एक्ट 2013

यह एक्ट भी मुख्य रूप से महिलाओं को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया है, एक्ट के अनुसार संगठन में काम करने वाली महिलाओं से कोई यौन संबंध की मांग करना या अनुरोध करना दंडनीय अपराध में आता है, फिर चाहे वह अभद्र भाषा का प्रयोग हो या अनचाहा शारीरिक संपर्क हो हर तरीके की यौन गतिविधियों किस एक्ट के तहत निस्तारित की  जाती हैं। साथ ही काम करने वाली महिलाओं को किसी भी प्रकार की पोर्नोग्राफी कार्यस्थल पर दिखाना या देखने के लिए मजबूर करना दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।

इसे भी पढ़ें:  आर्बिट्रेशन और मीडीएशन के बीच क्या अंतर है?

यह एक्ट भी उन सभी संगठनों कार्यस्थलों पर लागू होता है जहां कर्मचारियों की संख्या 10 से ज्यादा है और इसे काफी शक्ति के साथ वहां पर लागू किया जाता है। 

यह कुछ भारतीय श्रमिकों के महत्वपूर्ण कानून है जिनके माध्यम से कोई भी श्रमिक अपने अधिकारों को जान सकता है और अपने हितों की रक्षा कर सकता है।

किसी भी सहायता के लिए लीड इंडिया लीगल फर्म से संपर्क करें।

Social Media