भारत में विवाह को एक संस्कार के रूप में देखा जाता है हमारी प्राचीन संस्कृति ऐसी रही है कि विवाह को 7 जन्मों का बंधन भी मानते हैं। विवाह का बन्धन यह सिर्फ परंपरा के तौर पर किए गए विवाहों में लागू नहीं होता है कोर्ट मैरिज में भी इस मुद्दे को बहुत ही संवेदनशील तरीके से देखा जाता है। कोर्ट मैरिज करते समय एक पूरी प्रक्रिया होती है जिसे फॉलो करना अनिवार्य होता है।
कोर्ट मैरिज करने की प्रक्रिया अलग-अलग स्टेप्स में होती है इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि किस तरीके से कोई भी प्रेमी जोड़ा जो कि कोर्ट मैरिज करने के लिए वैध है यानी कि वह उम्र और लीगली अथॉरिटी के साथ कोर्ट मैरिज करने के योग्य है तो वह निम्न प्रक्रिया फॉलो करके कोर्ट मैरिज कर सकता है।
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कोर्ट मैरिज का पहला स्टेप
जो भी महिला या पुरुष कोर्ट मैरिज करना चाहते हैं उन्हें कोर्ट मैरिज करने के पहले स्टेप में सबसे पहले अपने जिले के विवाह अधिकारी को सूचित करना होता है। इसमें विवाह में सम्मिलित होने वाले दोनों ही महिला और पुरुष को लिखित आवेदन के रूप में अपनी अपनी बुनियादी जानकारी के साथ-साथ एक डीटेल्ड ब्यौरा भी विवाह अधिकारी को देना होता है।
यहां पर एक शर्त और होती है कि आप जिस जिले में रह रहे हैं और वहां पर अगर आप विवाह के अधिकारी को आवेदन पत्र देते हैं तो यह जरूरी है कि कम से कम आप पिछले एक महीने से लगातार उसी शहर में रह रहें हों। जैसे अगर कोई महिला लखनऊ की रहने वाली है और वह बनारस में विवाह अधिकारी को कोर्ट मैरिज करने का आवेदन देती है तो यह जरूरी होता है कि वह महिला कम से कम 1 महीने से बनारस में रह रही हो।
कोर्ट मैरिज करने वाले इच्छुक महिला और पुरुषों को अपने-अपने निवास प्रमाण पत्र और अन्य डॉक्यूमेंट के साथ विवाह अधिकारी के पास पहुंचना पड़ता।
कोर्ट मैरिज का दूसरा स्टेप
कोर्ट मैरिज करने का दूसरा स्टेप फॉलो करने की आगे की जिम्मेदारी मैरिज अधिकारी की हो जाती है। मैरिज अधिकारी सबसे पहले कोर्ट मैरिज करने वाले महिला और पुरुष की सूचना को उसे जिला कार्यालय में प्रकाशित करते हैं जहां के वह स्थाई निवासी होते हैं। सूचना प्रकाशित करने के लिए कार्यालय में एक विशिष्ट स्थान होता है वहीं पर इस तरह की सूचना लगाई जाती है कि उक्त पुरुष और महिला दोनों कोर्ट मैरिज करने के लिए तैयार हैं तथा दोनों ने आवेदन किया हुआ है ।
कोर्ट मैरिज का तीसरा स्टेप
इस स्टेप में कोर्ट मैरिज करने वाले महिला और पुरुष के खिलाफ आपत्तियां दर्ज की जा सकती हैं। सामान्य तौर पर इसके लिए विवाह के अधिकारी किसी को आमंत्रित नहीं करते हैं लेकिन इसके बावजूद यदि किसी को इस विवाह से आपत्ति है तो वह कोर्ट में मैरिज करने वाले अधिकारी को इसकी आपत्ति दे सकता है।
अब सवाल आता है कि आखिर कौन आपत्ती देने के लिए पात्र होता है तो ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसे कोर्ट मैरिज करने वाले व्यक्ति से किसी भी प्रकार से संबंध है और उसे लगता है कि कोर्ट मैरिज करने से उसे आपत्ति है तो वह विवाह के अधिकारी को इसकी सूचना दे सकता है।
इसके बाद 30 दिन के भीतर इसकी एक गहन जांच होती है और यदि आपत्तियों को सही पाया जाता है और ऐसा लगता है कि यह कोर्ट मैरिज उचित नहीं है तो विवाह के अधिकारी इस मैरिज को कैंसिल भी कर देते हैं लेकिन यदि आरोप निराधार हुए तो कोर्ट मैरिज आपत्तियों के बावजूद संपन्न कर दी जाती है। इसलिए यह आवश्यक है कि आपत्ति दर्ज कराने में कौन से मुद्दे बताए गए हैं।
इस चरण के बाद यह सब कुछ सही रहा तो विवाह का अधिकारी विवाह की घोषणा पर हस्ताक्षर कर देता है इस घोषणा का प्रारूप अनुसूची 11 से लिया गया है। और इस प्रकार कोर्ट मैरिज पूरी तरह से संपन्न हो जाती है
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