POCSO एक्ट क्या है?

POCSO एक्ट क्या है?

बचपन एक ऐसा समय होता है जब जीवन की नई शुरुआत होती है। यह बच्चों के लिए एक स्वतंत्र, खुशहाल और सुरक्षित माहौल बनाने का समय होता है बच्चे देश का भविष्य होते हैं। लेकिन आधुनिक जीवनशैली में होने वाले तेजी से सामाजिक बदलावों के चीच बच्चों की सुरक्षा का मुद्दा एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गया है। इसी संदर्भ में, भारतीय कानून  में “POCSO एक्ट”  पास किया गया है, जो बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण माध्यम है।

POCSO का फ़ुल फ़ॉर्म है – प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ़्रॉम सेक्सुअल ऑफ़ेंसेस एक्ट।

यह एक्ट बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए साल 2012 में लागू किया गया था। इसका मकसद बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्पीड़न, और पोर्नोग्राफ़ी से सुरक्षा देना है।

यह एक्ट 18 साल से कम उम्र के बच्चों पर लागू होता है। इस एक्ट के तहत, बच्चों और नाबालिगों के साथ अश्लील हरकत करना, उनके प्राइवेट पार्ट्स को छूना या अपने प्राइवेट पार्ट को टच करवाना, बच्चों को अश्लील फ़िल्म या पोर्नोग्राफ़िक कंटेंट दिखाना आता है। यह अधिनियम भारतीय संविधान की धारा 15 (3) के तहत बच्चों की सुरक्षा और अपमानजनक अपराधों के खिलाफ उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। यह एक प्रशासनिक और न्यायिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारो की हिफाजत है।

POCSO एक्ट के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे के साथ अपमानजनक (यौन) गतिविधियों का प्रयास करता है, तो वह अपराधी माना जाता है और सख्त से सख्त दंडादेशों के तहत सजा दी जाती है। यह अधिनियम बाल यौन उत्पीड़न, बाल यौन छेड़खानी, बाल यौन अपहरण, बाल यौन शोषण और बाल यौन उत्पादन जैसे अपराधों को संज्ञान में लाने का उद्देश्य रखता है।

POCSO एक्ट की विशेषताएं

बाल संरक्षण

POCSO एक्ट के तहत, बच्चों की सुरक्षा को महत्व दिया जाता है। यह उन्हें बाल संरक्षा अदालत के माध्यम से तत्परता और संरक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है।

अदालती प्रक्रिया

POCSO एक्ट की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें अपराधी के खिलाफ अदालती प्रक्रिया को तेजी से और प्रभावी बनाने का प्रयास किया गया है। इसका मतलब है कि मामलों का निर्णय तात्कालिकता से किया जाता है ताकि बच्चों को न्याय मिल सके।

बच्चों की साक्ष्य मान्यता

POCSO एक्ट के तहत, बच्चों की साक्ष्य मान्यता को बढ़ावा दिया जाता है। इसका अर्थ है कि अपराधी के खिलाफ मुकदमे में बच्चे की गवाही को महत्व दिया जाता है और उसकी बातचीत पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

अपराध की गंभीरता

POCSO एक्ट में बच्चों के खिलाफ अपराधों को गंभीरता से लिया जाता है। इसका मतलब है कि इस अधिनियम के अंतर्गत किए जाने वाले अपराधों के लिए सख्त सजा का प्रावधान है और अपराधी को समय पर सजा का सामना करना पड़ता है।

POCSO एक्ट ने बचपन की सुरक्षा को सशक्त बनाने का महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह एक ऐसा कानून है जो समाज की संरचना में बदलाव लाने के लिए बच्चों की सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है।

पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपी को सजा का क्या प्रावधान है?

पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपी को सजा का प्रावधान पीड़ित अथवा पीड़िता की उम्र के आधार पर तय किया जाता है। आमतौर पर पॉक्सो एक्ट के तहत, दोषी पाए जाने पर कम से कम 7 साल की जेल और ज़्यादा से ज़्यादा उम्रकैद की सज़ा हो सकती है। लेकिन अगर रेप पीड़िता 12 साल से कम उम्र की बच्ची हो तो POCSO एक्ट के तहत मृत्युदंड या उम्रकैद का भी प्रावधान है। 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ रेप के दोषियों को मौत के साथ-साथ कम से कम 20 साल की जेल या उम्रकैद की सज़ा भी दी जा सकती है। 

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इसके अतिरिक्त POCSO एक्ट के तहत, जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अक्सर जुर्माने की राशि इतनी निर्धारित की जाती है  जिससे पीड़ित का इलाज हो सके।

क्या पॉक्सो एक्ट गैरजमानती है?

पॉक्सो एक्ट गैर जमानती नहीं है लेकिन इसमें जमानत की प्रक्रिया इतनी आसान भी नहीं है। पॉक्सो एक्ट के तहत बच्चों के साथ दुराचार करने पर तुरंत गिरफ़्तारी का प्रावधान है। इस एक्ट के तहत, दोषी को उम्रकैद की सज़ा मिलती है और उसे पूरी ज़िंदगी जेल में बितानी पड़ती है। 

इस एक्ट के तहत जमानत देने का अधिकार सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय को है। सत्र न्यायालय, पॉक्सो मामलों के लिए प्रथम दृष्टया अदालत है। सत्र न्यायालय में नियमित और अग्रिम जमानत दोनों तरह की ज़मानत दी जा सकती है। वहीं, उच्च न्यायालय में अपील पर ज़मानत दी जाती है।

अगर किसी पर पॉक्सो एक्ट के तहत गंभीर अपराध के लिए मामला दर्ज नहीं किया गया है, तो वह ज़मानत के लिए उच्च न्यायालय का रुख़ कर सकता है।  

पॉक्सो एक्ट अथवा अन्य किसी लीगल सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें।

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