नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट) भारत में बैंकिंग और वाणिज्यिक लेन-देन को आसान बनाने के उद्देश्य से बनाया गया कानून है । यह अधिनियम ब्रिटिश शासन के दौरान लागू किया गया था और आज तक, अधिकांश प्रावधान अभी भी अपरिवर्तित हैं। इसमें कई धाराएं हैं जो विभिन्न अपराधों और अपराधियों के लिए सजा का प्रावधान करती हैं। इसमें से एक धारा 143A है, जो चेक बाउंस मामले के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। यह धारा व्यक्ति के अपराध के अनुसार चेक बाउंस जैसे जटिल केस को निपटाने के लिए सजा का प्रावधान करती है। इस आर्टिकल में हम धारा 143A के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। लेकिन इससे पहले हम बात करेंगे आखिर
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चेक बाउंस क्या होता है?
जब कोई बैंक किसी वजह से चेक को रिजेक्ट कर देता है, तो इसे चेक बाउंस होना कहते हैं. आमतौर पर ऐसा होने की वजह ज़्यादातर खाते में बैलेंस न होना होता है। इसके अलावा, अगर व्यक्ति के सिग्नेचर में अंतर है, तो भी बैंक चेक को रिजेक्ट कर सकता है। लेकिन कुछ मामले ऐसे भी सामने आते हैं जब कोई व्यक्ति जानबूझकर क्लाइंट या किसी दूसरे व्यक्ति को चीट करने के इंटेंशन से चेक देता है लेकिन अपने बैंक एकाउंट में पर्याप्त बेलेंस नहीं रखता। इससे वो क्लाइंट को या तो झूठी तसल्ली दे रहा होता है या फिर उसे मूर्ख बनाना चाहता है यह अपराध की श्रेणी में आता है, और इस तरह के मामलों का निपटारा करने के लिए नेगोशिएबल इंट्रूमेंट की धारा 143 ए का उपयोग किया जाता है।
क्या कहती है एनआई की धारा 143 ए
एन आई की धारा 143 ए के तहत अदालत को यह अधिकार प्राप्त हो जाता है कि अवैध चेक जारी करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही कर सके। इस धारा के अनुसार अदालत द्वारा अवैध चेक जारी करने वाले व्यक्ति पर मुकदमा चलाया जा सकता है, उसे 2 साल तक की जेल या चेक में भरी राशि का 20% तक जुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है।
2018 में जोड़ी गई इस धारा में पांच उपधाराएं जोड़ी गई है, जो चेक बाउंस मामले के अलग अलग चरणों की बात करती है।
उपधारा 1- धारा 143A की उपधारा 1 में अंतरिम मुआवजे का प्रावधान किया गया है इसके अनुसार न्यायालय आरोपी को अंतरिम मुआवजा कुल चेक का अधिकतम 20 परसेंट जमा करने के लिए आदेश कर सकता है।
उपधारा 2- के अनुसार अंतरिम मुआवजा कुल मुआवजे का 20% से अधिक किसी भी हाल में नहीं होना चाहिए।
उपधारा 3- तीसरी उपधारा में मुआवजा वसूल करने की अवधि की बात की गई है। सामान्यत: 60 दिन के भीतर आरोपी से अंतरिम मुआवजा वसूल किया जाना चाहिए।
उपधारा 4- में यह बात साफ तौर पर लिखी हुई है कि यदि आरोपी पक्ष निश्चित समय सीमा के भीतर मुआवजा दे पाने में असमर्थ रहता है तो उसे कुछ जुर्माने के साथ दोबारा मुआवजा देने का समय दिया जा सकता है।
उपधारा 5- इस धारा में यदि किसी मामले में कोई व्यक्ति 60 दिनों के भीतर अंतरिम मुआवजा नहीं जमा करता है तो उसे 30 दिन का समय और दिया जाता है लेकिन इसके बावजूद यदि आरोपी पक्ष मुआवजा जमा करने में असमर्थ रहता है तो उसे आगे की सजा दी यह बात साफ तौर पर लिखी हुई है कि यदि आरोपी पक्ष निश्चित समय सीमा के भीतर मुआवजा दे पाने में असमर्थ रहता है तो उसे कुछ जुर्माने के साथ दोबारा मुआवजा देने का समय दिया जा सकता है।
यदि कोई व्यक्ति न्यायालय की इस धारा के सभी प्रोसेस को पूरा करने के बाद भी अंतरिम मुआवजा देने में असमर्थ रहता है तो न्यायालय सीआरपीसी की धारा 421 के तहत बलपूर्वक रिकवरी करने का आदेश दे सकता है। सीआरपीसी की धारा 421 के तहत आरोपी पक्ष की धन वसूलने के लिए न्यायालय जमीन कुर्क करने का आदेश दे सकता है इसलिए इस धारा को बिल्कुल भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है ।
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