मौलिक अधिकार कौन से हैं, क्या है इसकी ताकत

हर देश कुछ नियम कायदों और कानून के आधार पर चलता है। इसलिए हर देश में एक संविधान यानी क़ानून होता है। हमारे देश में भी संविधान है, और हमारे संविधान ने देश के नागरिको को कुछ मौलिक अधिकार हैं। जो हमारी उन्नति और रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मौलिक अधिकारों की विशेषता यह है कि सामान्य परिस्थितियों में सरकार भी इनका हनन नहीं कर सकती। इनकी रक्षा स्वयं भारत का सर्वोच्च न्यायालय करता है।

क्या हैं हमारे मौलिक अधिकार

मौलिक अधिकार हमें शान्ति, समानता और सम्मान से जीने का हक़ देते हैं। मौलिक अधिकार सुनिश्चित करते हैं कि भारत के किसी भी नागरिक के साथ जाती, वंश, धर्म, भाषा, प्रांत, रंग अथवा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।

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मूल अधिकारों का वर्णन संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 के बीच किया गया है। आइये जानते हैं कि हमारे मूल अधिकार कौन से हैं। भारत के संविधान के मुताबिक़ हमारे 6 मूल अधिकार इस प्रकार हैं-

1. समता या समानता का अधिकार

2. स्वतंत्रता का अधिकार

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

आइये विस्तार से जानते हैं कि प्रत्येक मौलिक अधिकार किस अनुच्छेद में वर्णित है और क्या कहता है।

1 – समानता का अधिकार – अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक

संविधान के भाग तीन में अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक समानता के अधिकार को विस्तार से बताया गया है। इसके अनुसार भारत के किसी भी नागरिक से साथ, धर्म, वंश, जाति लिंग या जन्‍म स्‍थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। साथ ही इसमे भारत के सभी नागरिको के लिए रोजगार के अवसरों में समानता को भी शामिल किया गया है।

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2 – स्वतन्त्रता का अधिकार – 19 से लेकर अनुच्छेद 22 तक

अनुच्छेद 19 से 22 तक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है। इसमें समाहित अन्य अधिकार इस प्रकार हैं- शिक्षा का अधिकार, वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, किसी जगह इकट्ठा होने का अधिकार, संघ, संस्था या यूनियन बनाने का अधिकार, स्वतंत्र रूप से कहीं भी आने-जाने तथा निवास करने का अधिकार और जीविकोपार्जन के लिए किसी भी व्‍यवसाय को चुनने का अधिकार, किसी आरोप में फंस जाने पर दोष सिद्ध होने तक संरक्षण का अधिकार।

प्राण और दैहिक स्‍वतंत्रता के संरक्षण का अधिकार। इसमे 19 (1) (क) के अंतर्गत आने वाला वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अन्दर प्रेस यानी मीडिया को भी रखा गया है। इस लिहाज से ये एक काफी महत्वपूर्ण अधिकार है।

3 – शोषण के विरुद्ध अधिकार – अनुच्छेद 23 से लेकर 24 तक  

अनुच्छेद 23 से 24 के बीच शोषण के विरूद्ध अधिकारों का वर्णन है।  इस अधिकार के तहत कोइ भी व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह या यहाँ तक कि सरकार भी देश के किसी भी नागरिक का शोषण नहीं कर सकता। पहले हमारे देश में बेगार, बाल श्रम की प्रथा थी। लेकिन शोषण के विरुद्ध अधिकार से मिली शक्ति के कारण ही इस कुरीती का अंत हो सका।

अब कोइ भी 14 वर्ष तक के बच्चों को फैक्ट्री या घरों में काम पर नहीं रख सकता। शोषण के विरुद्ध अधिकार भारत के हर नागरिक को अधिकार देता है कि अगर उसके साथ किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक शोषण हो तो वो उसके खिलाफ शिकायत कर सकता है।

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4 – धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार – अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक

धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में यह सुनिश्चित किया गया है कि देश का प्रत्येक नागरिक किसी भी धर्म का पालन करने के लिए स्वतन्त्र है। वो किसी भी धर्म में विश्‍वास रख सकता है उस धर्म का प्रचार प्रसार भी कर सकता है। धार्मिक स्वतंत्रता का यही अधिकार सिक्ख धर्म को मानने वाले लोगो को किरपाण रखने की आजादी देता है।

इसी में आता है किसी भी धार्मिक संस्था, संगठन या संस्था की अभिवृद्धि का अधिकार।, इसी के तहत धार्मिक चंदे आदि का संकलन किया जाता है। इसी के तहत कुछ शिक्षण संस्‍थाओं में धार्मिक शिक्षा या पूजा प्रार्थना में शामिल होने या ना होने की स्वतन्त्रता भी मिली है।

5 – सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार – अनुच्छेद 29 से लेकर 30 तक

सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार के अंतर्गत भारत के प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा लिपि और संस्कृति विशेष की रक्षा करने तथा उसकी उन्नति करने का अधिकार है, इसमे अल्‍पसंख्‍यकों को अपनी पसंद की शैक्षिक संस्‍थाएं चलाने का अधिकार भी है जैसे मदरसे आदि। लेकिन इसमें एक शर्त है कि ऐसा करने से किसी अन्य वर्गों को हानि नही पहुंचनी चाहिए। इसी के तहत अल्‍पसंख्‍यक-वर्गों के हितों के संरक्षण की बात होती है।

6 – संवैधानिक उपचारों का अधिकार अनुच्छेद 32

आख़िरी और सबसे महत्त्वपूर्ण फंडामेंटल राईट  यानी मौलिक अधिकार संवैधानिक उपचारों का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 32  में भारत के नागरिको के लिए संवैधानिक उपचारों के अधिकार की व्यवस्था की गई है।

अगर व्यक्ति के किसी भी अधिकार का हनन होता है तो वो सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। इन संवैधानिक उपचारों को लागू कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट से कह सकता है। संवैधानिक उपचारों के अधिकार को विस्तार से इस प्रकार समझ सकते हैं-  

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बन्दी प्रत्यक्षीकरण: बंदी प्रत्यक्षीकरण के माध्यम से गिरफ़्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश पेश किये जाने का आदेश दिया जाता है। यदि व्यक्ति को ग़ैरकानूनी तरीके से या गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया हो तो कोर्ट उस व्यक्ति को छोड़ने का आदेश जारी कर सकता है।

परमादेश : जब कोर्ट यह पाता है कि कोइ सार्वजनिक पदाधिकारी अपने कानूनी और संवैधानिक कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा है तो कोर्ट परमादेश जारी करता है ताकि वो पदाधिकारी किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन ना कर सके।

निषेधाज्ञा : ऊपरी अदालत यानी हाई कोर्ट निषेधाज्ञा उस परिस्थिति में जारी करती हैं जब वो यह देखती हैं कि कोइ निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर किसी मुक़दमें की सुनवाई कर रही है। इसे ‘निषेधाज्ञा या प्रतिषेध लेख’ भी कहते हैं।

अधिकार पृच्छा : न्यायालय ‘अधिकार पृच्छा आदेश’ उस परिस्थिति में जारी करता है जब उसे लगता है कि कोइ व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त किया गया है जिस पर उसका कानूनी हक़ नहीं है, तब न्यायालय उस व्यक्ति को काम करने से रोक देता है।

उत्प्रेषण रिट : जब कोर्ट यह नोटिस करता है कि किसी निचली अदालत ने या सरकारी अधिकारी ने बिना अधिकार के कोइ कार्य किया है और वो किसी मुकदमे की सुनवाई या जांच करता है तो कोर्ट ऐसे केसेस को सीधे-सीधे ऊपरी अदालत में उत्प्रेषित यानी ट्रांसफर कर देती है।

इसी तरह यदि कोइ अधिकारी बिना अधिकार किसी मामले की जांच कर रहा है तो कोर्ट उस मामले को दूसरे किसी सक्षम अधिकारी को सौंप देता है।

तो ये थे हमारे मौलिक अधिकार जो समय-समय पर हमारी रक्षा करते हैं।

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