क्या भारत में दहेज मृत्यु जैसी गंभीर और दुखद समस्या का समाधान संभव है?

क्या भारत में दहेज मृत्यु जैसी गंभीर और दुखद समस्या का समाधान संभव है?

दहेज मृत्यु एक दुखद और आम समस्या है, खासकर भारत में। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार द्वारा की गई अवैध दहेज की मांग को पूरा नहीं करता है। इसके कारण दुल्हन को परेशान किया जाता है, उसको मानसिक उत्पीड़न और शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप पीड़ित परिवारों को गहरा दुख होता है, और महिलाओं के खिलाफ हिंसा का यह सिलसिला जारी रहता है, जिससे समाज पर भी बुरा असर पड़ता है।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 80 विस्तार से क्या समझते है ? 

धारा 80 बीएनएस में ‘दहेज मृत्यु’ अपराध की परिभाषा और दंड के बारे में जानकारी दी गई है। पहले, यह प्रावधान आई.पी.सी. की धारा 304B के तेहत परिभाषित था।

बीएनएस की धारा 80 (1) में कहा गया है कि, अगर किसी महिला की मृत्यु जलने या किसी चोट के कारण होती है, या शादी के सात साल के भीतर किसी असामान्य स्थिति में होती है, और यह साबित होता है कि उसकी मृत्यु से ठीक पहले उसे दहेज की मांग को लेकर या दहेज संबंधी किसी कारण से उसके पति या ससुराल वालों द्वारा अत्याचार या उत्पीड़न किया गया था, तो ऐसी मृत्यु को ‘दहेज मृत्यु’ कहा जाएगा। ऐसे में पति या ससुराल वालों को उसकी मृत्यु के लिए जिम्मेदार माना जाएगा।

धारा 80(2) के अनुसार, जो भी दहेज मृत्यु का अपराध करता है, उसे कम से कम सात साल की सजा मिलेगी, लेकिन यह सजा आजीवन कारावास तक बढ़ाई जा सकती है।

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भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 118

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 के अनुसार, अगर यह साबित हो जाता है कि किसी महिला की मौत से कुछ समय पहले उसे दहेज की मांग को लेकर या दहेज से जुड़े किसी कारण से अत्याचार या परेशान किया गया था, तो अदालत मान लेगी कि उसकी मौत का कारण वही व्यक्ति है। 

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पंजाब राज्य बनाम इकबाल सिंह 1991 

इस केस में, सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि दहेज की मांग, क्रूरता, और हिंसा अक्सर घर के अंदर ही होती हैं, जिससे सीधे सबूत मिलना मुश्किल होता है। धारा 113-बी के मुताबिक, अगर किसी महिला की दहेज हत्या हुई है और यह साबित हो गया है कि उसकी मौत से ठीक पहले उसे दहेज की मांग के लिए या उसके संबंध में क्रूरता या उत्पीड़न का शिकार बनाया गया था, तो न्यायालय यह मान लेगा कि उस महिला की दहेज हत्या की गई थी. इस धारा के तहत ‘दहेज मृत्यु’ का मतलब वही होगा जो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी में है

इसलिए, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 118 बहुत महत्वपूर्ण है। यह धारा कहती है कि अगर कुछ खास बातें साबित हो जाएं, तो अदालत मान सकती है कि व्यक्ति दोषी है। इसके लिए सात साल की समय सीमा तय की गई है। अगर सात साल के भीतर कोई समस्या नहीं हुई, तो इसका मतलब है कि जोड़े ने अपनी समस्याओं का हल निकाल लिया है। यह तरीका दहेज से जुड़े अपराधों को रोकने और न्याय दिलाने में मदद करता है।

दहेज निषेध अधिनियम, 1961

दहेज निषेध कानून 1961 में भारत में लागू हुआ था, और इसका उद्देश्य दहेज की प्रथा को खत्म करना है। दहेज में वह पैसे, सामान या संपत्ति शामिल होती है जो दुल्हन का परिवार शादी के समय दूल्हे के परिवार को देता है। यह कानून दहेज की मांग, देने या स्वीकार करने पर पूरी तरह से रोक लगाता है।

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इस कानून के तहत, अगर कोई दहेज की मांग करता है या स्वीकार करता है, तो उसे छह महीने तक की जेल और/या जुर्माना हो सकता है। दहेज देने वाले परिवार को भी सजा मिल सकती है, लेकिन मुख्य रूप से उन लोगों को सजा मिलती है जो दहेज को स्वीकार करते हैं। जिन लोगों ने दहेज की मांग या स्वीकार करने में मदद की है, उन्हें भी सजा मिलती है। आरोपी को यह साबित करना होता है कि उसने दहेज नहीं लिया या नहीं मांगा।

इस कानून को लागू करने के लिए दहेज निषेध अधिकारी होते हैं। दहेज से परेशान लोग पुलिस या अदालत में शिकायत कर सकते हैं। हालांकि यह कानून दहेज के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने और कानूनी सुरक्षा देने में मदद करता है, फिर भी समाज में दहेज की प्रथा और लागू करने में कठिनाइयाँ बनी रहती हैं।

भारत में दहेज से जुड़ी मौतों का एक गंभीर संकट है, जिसमें हर दिन लगभग 20 महिलाएं दहेज के कारण मर जाती हैं। ये मौतें या तो हत्या के कारण होती हैं या दहेज की परेशानियों के चलते आत्महत्या करने के कारण। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिपोर्ट के अनुसार, हर घंटे एक महिला दहेज से जुड़ी मौत का शिकार होती है, और वार्षिक आंकड़ा 7,000 से ज्यादा होता है। ये आंकड़े हमारे समाज और कानूनों की कमजोरी को दर्शाते हैं।

दहेज मृत्यु से निपटना: महत्वपूर्ण कदम

दहेज से जुड़े अपराधों को रोकने के लिए बहुत कुछ किया गया है, लेकिन इन मामलों की संख्या अभी भी बहुत अधिक है। इस समस्या को हल करने के लिए हमें कानूनों और सरकारी नीतियों पर फिर से विचार करना होगा। सबसे पहले, महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में बताना जरूरी है, ताकि वे बुरा व्यवहार सहन न करें। जागरूकता अभियान और शिक्षा से महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी मिल सकती है।

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साथ ही, लोगों को यह समझाना चाहिए कि दहेज देना या लेना सही नहीं है कानून को सख्त बनाना चाहिए और मामलों को जल्दी निपटाना चाहिए। पुलिस को भी ज्यादा सक्रिय रहना चाहिए और लोगों को दहेज से जुड़े मामलों की गुमनाम शिकायत करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

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