ऑनलाइन लेन-देन और ई-कॉमर्स में धोखाधड़ी के मामलों को कानून कैसे देखता है?

How does the law view cases of fraud in online transactions and e-commerce

आधुनिक समाज में इंटरनेट ने व्यापार और उपभोक्ताओं के बीच एक नई और प्रभावी कड़ी स्थापित की है। ऑनलाइन शॉपिंग, डिजिटल भुगतान, और इंटरनेट के माध्यम से व्यापार ने व्यापारिक क्षेत्र में एक नया मोड़ लाया है। अब उपभोक्ता बिना घर से बाहर जाए, किसी भी वस्तु को इंटरनेट के माध्यम से खरीद सकते हैं। इसके अलावा, ऑनलाइन लेन-देन ने भी भुगतान के तरीकों को सरल और सुरक्षित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

ऑनलाइन लेन-देन के कई रूप होते हैं – क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, मोबाइल वॉलेट्स, यूपीआई (UPI), और अन्य डिजिटल भुगतान प्रणाली। इन प्रणालियों के माध्यम से उपभोक्ता किसी भी उत्पाद को खरीदने के बाद, भुगतान तुरंत कर सकते हैं, और व्यापारी को भी त्वरित भुगतान मिलता है। ई-कॉमर्स के बढ़ते प्रभाव के कारण उपभोक्ता और व्यापारियों को कई फायदे मिलते हैं, जैसे – समय की बचत, सुविधा, और व्यापक उत्पाद उपलब्धता।

हालांकि इस नए व्यापारिक वातावरण ने कई सकारात्मक बदलाव लाए हैं, लेकिन यह कुछ जोखिमों और समस्याओं को भी उत्पन्न करता है, जिनमें प्रमुख है – ऑनलाइन धोखाधड़ी।

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ऑनलाइन धोखाधड़ी के प्रकार कितने प्रकार है?

ऑनलाइन धोखाधड़ी का मतलब है इंटरनेट या अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग करके किसी अन्य व्यक्ति या संस्था से अवैध रूप से धन या अन्य संपत्ति प्राप्त करना। ऑनलाइन धोखाधड़ी के कई प्रकार हो सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

  • फिशिंग: फिशिंग एक प्रकार की धोखाधड़ी है जिसमें धोखेबाज उपभोक्ताओं को ईमेल, फोन कॉल या संदेश के जरिए फंसाते हैं। यह संदेश अक्सर एक प्रतिष्ठित संस्थान या कंपनी के नाम से आता है, जैसे कि बैंक, सरकारी संस्था, या ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म। इसमें उपयोगकर्ताओं से उनकी निजी जानकारी जैसे कि पासवर्ड, क्रेडिट कार्ड विवरण, बैंक खाता जानकारी आदि मांगी जाती है। धोखेबाज इन सूचनाओं का उपयोग कर धोखाधड़ी करते हैं।
  • स्पूफिंग: स्पूफिंग में धोखेबाज किसी अन्य व्यक्ति, संगठन या संस्था की पहचान की नकल करते हैं। उदाहरण के तौर पर, एक धोखेबाज बैंक के नाम से एक फर्जी वेबसाइट बनाकर उपभोक्ताओं से उनका खाता नंबर, पिन और अन्य संवेदनशील जानकारी प्राप्त कर सकता है।
  • स्मिशिंग: स्मिशिंग में धोखेबाज फोन कॉल्स या SMS के माध्यम से उपभोक्ताओं से संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इन संदेशों में अक्सर ऐसे लिंक होते हैं, जिनसे क्लिक करते ही उपभोक्ता का डेटा चुराया जा सकता है।
  • ऑनलाइन मार्केटप्लेस धोखाधड़ी: ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर नकली उत्पाद बेचना या उपभोक्ता को वस्तु भेजे बिना उनका पैसा हथियाना भी ऑनलाइन धोखाधड़ी का हिस्सा है। इसके अलावा, कुछ धोखेबाज उपभोक्ताओं से नकली या घटिया उत्पाद भेजने का वादा करते हैं और वास्तविक उत्पाद के स्थान पर अन्य सामान भेज देते हैं।
  • क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी: क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी तब होती है जब कोई व्यक्ति आपकी क्रेडिट कार्ड जानकारी को चोरी कर लेता है और इसका गलत इस्तेमाल करता है। यह धोखाधड़ी अक्सर ऑनलाइन शॉपिंग के दौरान होती है।
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भारत में साइबर अपराध और धोखाधड़ी से निपटने के लिए कौन से कानूनी प्रावधान हैं?

भारत में साइबर अपराध और ऑनलाइन धोखाधड़ी से निपटने के लिए कई कानूनी प्रावधान और विधिक उपाय उपलब्ध हैं। भारतीय कानून ने समय के साथ इन अपराधों को रोकने और अपराधियों के खिलाफ कठोर दंड का प्रावधान किया है। भारतीय कानून में प्रमुख रूप से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) और भारतीय न्याय संहिता 2023 जैसे अधिनियमों का उल्लेख किया गया है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000,  (IT Act, 2000) भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया एक प्रमुख अधिनियम है, जिसका उद्देश्य भारत में साइबर अपराधों को नियंत्रित करना और डिजिटल लेन-देन को सुरक्षित बनाना है। यह अधिनियम ऑनलाइन धोखाधड़ी से संबंधित अपराधों को गंभीरता से देखता है। इसके तहत कुछ प्रमुख धाराओं का उल्लेख किया गया है:

धोखाधड़ी और पहचान की चोरी (धारा 66C और 66D)

  • धारा66C: यदि कोई व्यक्ति धोखाधड़ी के लिए किसी अन्य की पहचान या जानकारी का उपयोग करता है, तो इसे साइबर अपराध माना जाता है। इस धारा के तहत आरोपी को तीन साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
  • धारा 66D: इसमें फर्जी वेबसाइट्स और धोखाधड़ी के लिए उपयोग किए गए साधनों के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। यह धोखाधड़ी के लिए एक गंभीर अपराध है, और इसे अपराधी के खिलाफ सजा दी जाती है।

साइबर टेररिज्म (धारा 66F): इस खंड के तहत साइबर अपराधों को आतंकवादी गतिविधियों के रूप में देखा जाता है। यदि कोई व्यक्ति इंटरनेट का उपयोग कर किसी राष्ट्र के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त होता है, तो इसे गंभीर अपराध माना जाता है।

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भारतीय न्याय संहिता

भारतीय न्याय संहिता के तहत भी ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए कई प्रावधान हैं। कुछ प्रमुख धाराएं निम्नलिखित हैं:

धोखाधड़ी (धारा 318): भारतीय न्याय संहिता की धारा 318 के तहत धोखाधड़ी के मामलों को देखा जाता है। यदि किसी व्यक्ति ने धोखाधड़ी के जरिए दूसरे व्यक्ति से संपत्ति या धन प्राप्त किया है, तो वह अपराधी माना जाता है। इस धारा के तहत आरोपी को तीन साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं को धोखाधड़ी और अन्य शोषण से बचाना है। इसमें विशेष रूप से ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों को ध्यान में रखते हुए कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं:

ई-कॉमर्स और उपभोक्ता अधिकार (धारा 94 to 101)

  • ई-कॉमर्स कंपनियों को उपभोक्ताओं के लिए स्पष्ट और सही जानकारी प्रदान करना अनिवार्य किया गया है। इसमें उत्पाद की गुणवत्ता, कीमत, वापसी नीति, और अन्य शर्तों की स्पष्टता जरूरी है।
  • यदि उपभोक्ता को धोखाधड़ी का सामना करना पड़ता है, तो वह उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर सकता है।

धोखाधड़ी से बचने के क्या उपाए है?

ई-कॉमर्स और ऑनलाइन लेन-देन के दौरान धोखाधड़ी से बचने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। ये कदम उपभोक्ताओं को अपनी जानकारी सुरक्षित रखने और धोखाधड़ी से बचने में मदद कर सकते हैं:

  • ऑनलाइन खरीदारी करते समय केवल प्रमाणित वेबसाइट्स का ही उपयोग करें। इसके लिए हमेशा “https” और सुरक्षित कनेक्शन की जांच करें।
  • अपने ऑनलाइन खातों और बैंकिंग ऐप्स पर दो-चरणीय प्रमाणीकरण को सक्रिय करें, ताकि आपकी जानकारी सुरक्षित रहे।
  • संदिग्ध ईमेल या संदेशों से लिंक क्लिक करने से बचें। हमेशा सुनिश्चित करें कि लिंक वैध और विश्वसनीय स्रोत से है।
  • अपने डिवाइस में एंटीवायरस और फ़ायरवॉल सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करें, ताकि साइबर हमलों से बचा जा सके।
  • अपनी निजी जानकारी जैसे कि क्रेडिट कार्ड नंबर, बैंक खाता विवरण आदि को केवल सुरक्षित और विश्वसनीय वेबसाइट्स पर ही साझा करें।
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निष्कर्ष

ऑनलाइन लेन-देन और ई-कॉमर्स के बढ़ते प्रभाव के साथ धोखाधड़ी के मामलों में भी वृद्धि हुई है, जिससे उपभोक्ताओं को अपनी सुरक्षा और अधिकारों के प्रति जागरूक होना आवश्यक है। भारतीय कानून में ऑनलाइन धोखाधड़ी के खिलाफ कई प्रावधान हैं, जो अपराधियों को सजा देने के साथ-साथ उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, भारतीय न्याय संहिता और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम जैसे कानून ऑनलाइन धोखाधड़ी से निपटने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

हालांकि कानून द्वारा धोखाधड़ी के मामलों में कार्रवाई की जाती है, फिर भी उपभोक्ताओं को सतर्क रहना चाहिए और डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए। केवल कानूनी उपायों से ही धोखाधड़ी को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, बल्कि उपभोक्ताओं को भी अपने अधिकारों और सुरक्षा उपायों के बारे में पूरी जानकारी होना चाहिए।

ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचने के लिए जागरूकता और सही कदम उठाना आवश्यक है। यदि उपभोक्ता अपनी सुरक्षा और कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक रहते हैं, तो वे धोखाधड़ी के मामलों से बच सकते हैं और अपने डिजिटल लेन-देन को सुरक्षित बना सकते हैं।

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