गुजारा भत्ता क्या है?
गुजारा भत्ता (Alimony) वह राशि होती है, जो एक पति अपनी पत्नी को तलाक के बाद या तलाक के दौरान भुगतान करता है, ताकि पत्नी अपने जीवनयापन के लिए एक सम्मानजनक जीवन जी सके। यह आर्थिक सहायता विशेष रूप से तब आवश्यक होती है जब पत्नी की अपनी आय का स्रोत नहीं होता, या फिर तलाक के बाद वह अपने और अपने बच्चों के खर्चों को नहीं उठा सकती। गुजारा भत्ता का उद्देश्य पत्नी को तलाक के बाद आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना होता है, ताकि वह अपने जीवन को सम्मानजनक ढंग से जी सके और किसी प्रकार के वित्तीय दबाव का सामना न करना पड़े।
गुजारा भत्ता दो प्रकार का हो सकता है
- आस्थायी (Interim) गुजारा भत्ता: यह भत्ता तब दिया जाता है जब तलाक की प्रक्रिया चल रही होती है, ताकि पत्नी का जीवनयापन चलता रहे। इसे अदालत द्वारा मंजूर किया जाता है और इसका उद्देश्य पत्नी की तत्काल जरूरतों को पूरा करना होता है।
- स्थायी (Permanent) गुजारा भत्ता: यह भत्ता तलाक के बाद स्थायी रूप से दिया जाता है, जब अदालत यह तय करती है कि पत्नी को आर्थिक सहायता की आवश्यकता है। यह राशि आमतौर पर पति की आय, पत्नी की जरूरतों, और दोनों पक्षों की सामाजिक स्थिति को देखते हुए तय की जाती है।
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भारतीय कानून में गुजारा भत्ता के लिए क्या प्रावधान है?
भारत में गुजारा भत्ता देने से संबंधित प्रावधान विभिन्न कानूनों के तहत आते हैं। इनमें प्रमुख रूप से हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939, और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 शामिल हैं। प्रत्येक कानून के तहत पत्नी को तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने के अलग-अलग तरीके और प्रक्रिया हैं। आइए इन कानूनों के तहत गुजारा भत्ते के प्रावधानों को विस्तार से समझते हैं।
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत गुजारा भत्ता के दो प्रमुख प्रावधान हैं:
- धारा 24 (Interim Maintenance): इस धारा के तहत तलाक की प्रक्रिया के दौरान पत्नी को आस्थायी गुजारा भत्ता दिया जाता है। यदि पत्नी का आय का स्रोत सीमित है और वह अपने लिए और अपने बच्चों के लिए पर्याप्त रूप से जीवनयापन नहीं कर सकती, तो अदालत उसे गुजारा भत्ता देने का आदेश देती है। इसमें पति की आय, पत्नी की जरूरतें, और दोनों के जीवन स्तर को ध्यान में रखा जाता है।
- धारा 25 (Permanent Alimony): इस धारा के तहत तलाक के बाद पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता मिल सकता है। इसे तब दिया जाता है जब पत्नी अपनी आय अर्जित करने में असमर्थ हो और वह अपने जीवन को सम्मानजनक रूप से जीने के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकता महसूस करती है। इस भत्ते की राशि का निर्धारण पति की आय और पत्नी की जरूरतों के आधार पर किया जाता है।
मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939 और मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986
मुस्लिम महिलाओं के लिए भी तलाक के बाद गुजारा भत्ता का प्रावधान है। मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939 के तहत यदि पत्नी तलाक चाहती है, तो उसे गुजारा भत्ता मिल सकता है। इसके अलावा, मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत भी पत्नी को गुजारा भत्ता का अधिकार है। यह अधिनियम विशेष रूप से तब लागू होता है जब तलाक का कारण पति द्वारा महिला के अधिकारों का उल्लंघन करना हो।
मुस्लिम कानून के तहत गुजारा भत्ता की राशि का निर्धारण महिला की जरूरतों और पति की आय के आधार पर किया जाता है। इस कानून में विशेष रूप से यह सुनिश्चित किया जाता है कि महिला को तलाक के बाद कम से कम एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आवश्यक आर्थिक सहायता प्राप्त हो।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत एक विशेष विवाह के बाद तलाक की स्थिति में भी गुजारा भत्ता दिया जाता है। यह अधिनियम उन जोड़ों के लिए होता है, जिन्होंने धर्म परिवर्तन किए बिना एक विशेष विवाह किया हो। इस कानून के तहत, यदि पत्नी को तलाक के बाद आर्थिक सहायता की आवश्यकता है, तो अदालत उसे गुजारा भत्ता देने का आदेश देती है।
यह भत्ता भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144 के तहत भी प्रदान किया जा सकता है, जो किसी भी नागरिक को उनके जीवनयापन के लिए सहायता देने का प्रावधान करता है।
गुजारा भत्ता के लिए कानूनी प्रक्रिया क्या है?
पत्नी को तलाक के बाद गुजारा भत्ता प्राप्त करने के लिए उसे अदालत में आवेदन करना होता है। यह प्रक्रिया कुछ विशिष्ट कदमों में पूरी होती है:
- आवेदन दाखिल करना: पत्नी को सबसे पहले एक सिविल कोर्ट में आवेदन दाखिल करना होता है, जिसमें वह गुजारा भत्ता की मांग करती है। इस आवेदन में पत्नी को अपनी आर्थिक स्थिति, पति की आय, और उसकी जरूरतों का विवरण देना होता है। अगर पत्नी के पास बच्चे हैं, तो बच्चों की देखभाल के लिए गुजारा भत्ते की अतिरिक्त मांग की जा सकती है।
- पति की आय का मूल्यांकन: अदालत इस प्रक्रिया में पति की आय और संपत्ति का मूल्यांकन करती है। अदालत यह सुनिश्चित करती है कि पति आर्थिक रूप से सक्षम है और वह पत्नी को गुजारा भत्ता देने में सक्षम है। अदालत पति की आय और उसके खर्चों को ध्यान में रखते हुए भत्ते की राशि तय करती है।
- पत्नी की जरूरतों का मूल्यांकन: अदालत पत्नी की जरूरतों का भी मूल्यांकन करती है। इसमें उसके दैनिक खर्चे, बच्चों की देखभाल की लागत, स्वास्थ्य सुविधाओं की आवश्यकता, और अन्य जीवनयापन संबंधी खर्चों को ध्यान में रखा जाता है।
- गुजारा भत्ते की राशि का निर्धारण: अदालत द्वारा गुजारा भत्ते की राशि का निर्धारण पति की आय और पत्नी की जरूरतों के आधार पर किया जाता है। इसके अलावा, यह भी देखा जाता है कि पत्नी की स्थिति में कोई सुधार हुआ है या नहीं, और क्या वह अपनी आय अर्जित करने में सक्षम है या नहीं।
ऐतिहासिक निर्णय
मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम, AIR 1985 SC 945 मामले में, अदालत ने यह निर्णय दिया कि धारा 125 क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) सभी व्यक्तियों पर लागू होती है, चाहे उनकी कोई भी धर्म हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 125 के व्याख्या के तहत (b) खंड में ऐसा कोई शब्द नहीं है जो मुस्लिम महिलाओं को इससे बाहर करने के लिए सीमा निर्धारित करता हो।
चरणमुनिया बनाम वीरेंद्र कुमार सिंह कुशवाहा, (2011) 1 SCC 141 मामले में, अदालत ने यह निर्णय दिया कि उन मामलों में, जहां एक पुरुष ने एक महिला के साथ लंबे समय तक साथ रहकर, भले ही उन्होंने कानूनी शादी नहीं की हो, अगर वह महिला को छोड़ देता है, तो उसे महिला को गुजारा भत्ता देना चाहिए। पुरुष को इस प्रकार की कानूनी खामियों का फायदा उठाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जहां वह बिना कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाए, एक वास्तविक विवाह के लाभों का आनंद लेता है। अगर ऐसा नहीं होता, तो इससे महिला को दर दर की ठोकरें खानी पड़ सकती हैं और वह गरीबी में जीने के लिए मजबूर हो सकती है, जबकि धारा 125 का उद्देश्य ही महिलाओं को इस स्थिति से बचाना है।
गुजारा भत्ते का भुगतान कैसे होता है?
गुजारा भत्ता पति द्वारा पत्नी को नियमित रूप से मासिक रूप में दिया जाता है। इसका भुगतान पत्नी के बैंक खाते के माध्यम से किया जा सकता है, या फिर अन्य तरीके से, जैसे कि व्यक्तिगत भुगतान, चेक, आदि। गुजारा भत्ते का भुगतान हर महीने किया जाता है, और इसके लिए एक निश्चित समय सीमा तय की जाती है।
अगर पति द्वारा गुजारा भत्ते का भुगतान नहीं किया जाता है, तो पत्नी अदालत में कार्यवाही कर सकती है और न्यायिक आदेश प्राप्त कर सकती है।
क्या गुजारा भत्ते में बदलाव या समाप्ति संभव है?
गुजारा भत्ते में बदलाव या समाप्ति भी संभव है। यदि पत्नी की स्थिति में कोई बदलाव आता है, जैसे कि उसकी आर्थिक स्थिति सुधरती है, तो पति अदालत में आवेदन करके भत्ते की राशि कम करने की कोशिश कर सकता है। इसके अलावा, यदि पत्नी पुनः विवाह करती है, तो गुजारा भत्ता समाप्त हो सकता है।
निष्कर्ष
तलाक के बाद गुजारा भत्ता पत्नी के अधिकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और भारतीय कानून इसे सुनिश्चित करता है। यह भत्ता तलाक के बाद महिला को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है, ताकि वह सम्मानजनक जीवन जी सके। गुजारा भत्ता के लिए अदालत में आवेदन करना एक कानूनी प्रक्रिया है, जो पति की आय, पत्नी की जरूरतों, और अन्य सामाजिक परिस्थितियों के आधार पर तय की जाती है।
भारतीय समाज में गुजारा भत्ते को लेकर कई तरह के विवाद होते हैं, लेकिन यह जरूरी है कि महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी हो और वे अपनी स्थिति को सुधारने के लिए कानूनी मदद लें।
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