किसी व्यक्ति के निधन के बाद उसकी वसीयत (Will) में बदलाव करना कानूनी रूप से संभव नहीं है, क्योंकि मृत्यु के बाद वसीयत का कोई अस्तित्व नहीं होता। वसीयत एक ऐसा दस्तावेज है जो व्यक्ति की मृत्यु से पहले तैयार किया जाता है, और इसमें वह अपने संपत्ति के बंटवारे के बारे में निर्णय लेता है।
वसीयत को बदलने का अधिकार व्यक्ति के जीवनकाल में उसे हमेशा प्राप्त होता है, क्योंकि जब तक व्यक्ति जीवित है, वह अपनी संपत्ति और उससे जुड़ी इच्छाओं को बदलने का पूरा अधिकार रखता है। वसीयत बनाने का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि मृत्यु के बाद किसी भी प्रकार का विवाद उत्पन्न न हो और परिवार के सदस्य या उत्तराधिकारी संपत्ति के बंटवारे को लेकर किसी भी प्रकार के उलझन में न फंसे।
वसीयत क्या है?
वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है, जिसे किसी व्यक्ति ने अपनी मृत्यु से पहले तैयार किया होता है। वसीयत के द्वारा व्यक्ति यह निर्धारित करता है कि उसकी संपत्ति और अन्य अधिकारों का बंटवारा किस प्रकार किया जाएगा। इसमें वह यह भी तय कर सकता है कि कौन व्यक्ति उसकी संपत्ति का मालिक बनेगा, या कौन व्यक्ति उसकी संपत्ति का देखभाल करेगा।
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वसीयत बदलने की प्रक्रिया क्या है?
वसीयत का संशोधन या बदलाव
वसीयत को किसी भी समय व्यक्ति के जीवनकाल में बदलने का अधिकार होता है। इस बदलाव के लिए एक नई वसीयत बनानी होती है, जिसमें पुराने वसीयत की सभी शर्तों को स्पष्ट रूप से बदल दिया जाता है। वसीयत को बदलने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते हैं:
- नवीन वसीयत बनाना: अगर कोई व्यक्ति अपनी वसीयत बदलना चाहता है, तो उसे एक नई वसीयत तैयार करनी होती है। नई वसीयत पुराने सभी नियमों और शर्तों को नकार देती है।
- वसीयत में संशोधन (Codicil): यदि कोई व्यक्ति अपनी वसीयत में छोटे बदलाव करना चाहता है, तो वह “कोडिसिल” नामक एक अतिरिक्त दस्तावेज तैयार कर सकता है। यह वसीयत का हिस्सा होता है और इसके माध्यम से संपत्ति में बदलाव किए जाते हैं।
वसीयत की वैधता
किसी भी वसीयत को बदलने या संशोधित करने के लिए यह आवश्यक है कि वह कानूनी तौर पर वैध हो। वैधता के लिए निम्नलिखित शर्तें पूरी करनी होती हैं:
- वसीयत बनाने वाले की मानसिक स्थिति: वसीयत बनाते समय व्यक्ति की मानसिक स्थिति पूरी तरह से ठीक होनी चाहिए। अगर व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ है, तो उसकी वसीयत को चुनौती दी जा सकती है।
- गवाहों की उपस्थिति: वसीयत को दो गवाहों की उपस्थिति में बनाया जाना चाहिए, जो इसके निष्पक्ष होने की पुष्टि करें।
मृत्यु के बाद वसीयत बदलने के क्या विकल्प है?
मृत्यु के बाद वसीयत में बदलाव करना कानूनी रूप से संभव नहीं होता है। एक बार जब कोई व्यक्ति मर जाता है और उसकी वसीयत प्रस्तुत की जाती है, तो उस वसीयत को बदलने के लिए कुछ कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित विकल्प होते हैं:
वसीयत की वैधता पर चुनौती देना: अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि मृतक की वसीयत उसकी इच्छा के अनुसार नहीं है, तो वे वसीयत की वैधता को चुनौती दे सकते हैं। यह चुनौती निम्नलिखित आधारों पर हो सकती है:
- अगर वसीयत का निर्माण दबाव, धोखाधड़ी या गलतफहमी के आधार पर हुआ हो।
- अगर वसीयत में किए गए बदलाव मृतक की मानसिक स्थिति या इच्छा के खिलाफ हों।
उत्तराधिकार और संपत्ति का बंटवारा: अगर वसीयत नहीं बनाई गई है, तो संपत्ति का बंटवारा भारतीय उत्तराधिकार कानून के अनुसार किया जाएगा। इस स्थिति में परिवार के सदस्य या अन्य उत्तराधिकारी संपत्ति का हिस्सा पाने के लिए अदालत में आवेदन कर सकते हैं।
मृत्यु के बाद वसीयत बदलने के क्या कानूनी विवाद है?
किसी व्यक्ति के मृत्यु के बाद वसीयत में बदलाव नहीं किया जा सकता, लेकिन कुछ कानूनी उपाय हैं जिनसे इसे चुनौती दी जा सकती है। इनमें से कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं:
- वसीयत का परीक्षण (Probate): वसीयत का परीक्षण अदालत द्वारा किया जाता है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि वसीयत सही है और मृतक की वास्तविक इच्छा को व्यक्त करता है। अगर वसीयत के खिलाफ कोई दावा प्रस्तुत किया जाता है, तो इसे अदालत द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
- नवीन वसीयत की आवश्यकता: अगर कोई व्यक्ति चाहता है कि उसके द्वारा बनाई गई वसीयत को बदला जाए, तो उसे एक नई वसीयत बनानी होगी। किसी मृतक की वसीयत को बदलने का कोई कानूनी तरीका नहीं है, इसलिए उत्तराधिकारी और अन्य संबंधित पक्षों को नई वसीयत बनाने का प्रयास करना चाहिए।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मोती राम बनाम रिट्टू, 17 सितम्बर 1968 के केस में यह कहा की
भारतीय पंजीकरण अधिनियम की धारा 40 और 41 में निर्धारित की गई हैं। धारा 40(1) के तहत वसीयत को वसीयतकर्ता द्वारा या उसकी मृत्यु के बाद उसके निष्पादक होने का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा या अन्यथा वसीयत के तहत पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। धारा 41(1) के तहत वसीयतकर्ता द्वारा पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किए जाने पर वसीयत को किसी अन्य दस्तावेज़ की तरह ही पंजीकृत किया जाना चाहिए। यह शर्त कि वसीयत को या तो निष्पादक द्वारा स्वयं लिखा जाना चाहिए या किसी लाइसेंस प्राप्त दस्तावेज़-लेखक द्वारा लिखा जाना चाहिए, वसीयत की प्रस्तुति और पंजीकरण के उद्देश्य के लिए आवश्यक शर्तों में से एक नहीं है। यदि वसीयत को वसीयतकर्ता द्वारा पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो इसे किसी अन्य दस्तावेज़ की तरह ही पंजीकृत किया जाना चाहिए, अर्थात पंजीकरण अधिकारी अधिनियम की धारा 35 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके स्वयं को संतुष्ट कर सकता है और वह वसीयतकर्ता की नाबालिगता या मानसिक स्वास्थ्य आदि के बारे में जांच कर सकता है। लेकिन जब वसीयत को इसे प्रस्तुत करने के हकदार किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो पंजीकरण अधिकारी धारा 41 की उपधारा (2) के तहत इसे पंजीकृत करने के लिए बाध्य है यदि वह संतुष्ट है कि वसीयत को वसीयतकर्ता द्वारा निष्पादित किया गया था, कि वसीयतकर्ता मर चुका है और वसीयत पेश करने वाला व्यक्ति धारा 40 के तहत इसे पेश करने का हकदार है।
निष्कर्ष
किसी व्यक्ति के मृत्यु के बाद वसीयत बदलने का कोई कानूनी तरीका नहीं है। हालांकि, मृत्यु से पहले व्यक्ति अपनी वसीयत को बदल सकता है या संशोधित कर सकता है। अगर किसी मृतक की वसीयत पर विवाद उत्पन्न होता है, तो उसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन वसीयत के बाद के परिवर्तनों का कोई कानूनी आधार नहीं है। वसीयत बनाने और उसे बदलने की प्रक्रिया में कानूनी सावधानियां आवश्यक हैं ताकि परिवार के सदस्यों के बीच कोई विवाद न हो और मृतक की इच्छाओं का सही तरीके से पालन किया जा सके।
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