चाइल्ड एडॉप्शन एक अत्यधिक संवेदनशील और जटिल कानूनी प्रक्रिया है, जब किसी बच्चे को उसके असली माता-पिता से अलग कर के उसे दूसरे परिवार में कानूनी रूप से भेजा जाता है। हिन्दू कानून में चाइल्ड एडॉप्शन के संबंध में कुछ विशेष नियम और शर्तें हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है। हिन्दू कानून में चाइल्ड एडॉप्शन का उद्देश्य समाज में बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना, परिवारों को एकजुट करना और संतानहीन दंपत्तियों (Childless couple) को संतान की प्राप्ति करना है। हिंदू कानून में, एडॉप्शन का नियम मुख्य रूप से हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 (HAMA) द्वारा नियंत्रित होता है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि इस एक्ट के तहत बच्चे को गोद कैसे लिया जाता है, कौन लोग इसके योग्य होते हैं, कब यह योग्य माना जाता है , और गोद लिए गए बच्चे के क्या अधिकार होते हैं।
चाइल्ड एडॉप्शन क्या है?
एडॉप्शन एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति या कपल्स उस बच्चे की देखभाल और पालन-पोषण की जिम्मेदारी लेते है, जो उनका जैविक बच्चा नहीं होता। इस प्रक्रिया में बच्चे के कानूनी अधिकार उसके असली माता-पिता से लेकर गोद लेने वाले माता-पिता को दिए जाते हैं। जब एडॉप्शन पूरा हो जाता है, तो वह बच्चा उस परिवार का पूरी तरह से कानूनी सदस्य बन जाता है, और उसे उस परिवार के जैविक बच्चों जैसे सभी अधिकार और सुविधाएं मिलती हैं।
क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?
चाइल्ड एडॉप्शन में हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट,1956 (HAMA) की भूमिका क्या है?
भारत में, बच्चों को गोद लेने के लिए अलग-अलग कानून होते हैं जो गोद लेने वाले माता-पिता के धर्म पर आधारित होते हैं। हिंदू कानून के तहत, बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया में हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 की बहुत अहम भूमिका है। यह कानून यह सुनिश्चित करने के लिए है कि गोद लेने की प्रक्रिया पारदर्शी, कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त हो और बच्चे के भले के लिए हो।
1956 से पहले, भारत में गोद लेने का नियम व्यक्तिगत परंपराओं पर आधारित था, और इसका कोई एक समान कानून नहीं था। उस समय लड़कियों को भी गोद नहीं लिया जाता था लेकिन हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट को इस उद्देश्य से बनाया गया था कि हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदायों के बीच गोद लेने के नियम एक जैसे हों और लड़कियों को कानूनी तौर पर गोद लिया जा सके।
बाल गंगाधर तिलक बनाम श्रीनिवास पंडित, 1915 के मामले में, अदालत ने कहा कि गोद लेने का संबंध धर्म से नहीं है। गोद लेने का मुख्य उद्देश्य यह है कि एक ऐसा बच्चा हो जो गोद लेने वाले का नाम आगे बढ़ा सके।
बच्चे को अडॉप्ट करने का अधिकार किसे है?
हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट के तहत अडॉप्ट करने का अधिकार पुरष और महिला दोनों के पास होता है लेकिन दोनों के लिए पात्रता निर्धारित की गयी है:
पुरुष की पात्रता:
- मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए और नाबालिग नहीं होना चाहिए।
- गोद लेने वाले बच्चे से कम से कम 21 साल बड़ा होना चाहिए।
- शादीशुदा पुरुष को केवल तब गोद लेने की अनुमति है जब उसकी पत्नी भी इस प्रक्रिया में शामिल हो।
- यदि पत्नी मानसिक या शारीरिक रूप से अस्वस्थ है या पति द्वारा छोड़ दी गई है, तो उसकी सहमति जरूरी नहीं है।
महिला की पात्रता:
- मानसिक रूप से स्वस्थ होनी चाहिए और नाबालिग नहीं होनी चाहिए।
- यदि महिला शादीशुदा है, तो पति को भी गोद लेने की सहमति देनी चाहिए।
- विधवा या तलाकशुदा महिला अकेले भी गोद ले सकती है।
- आयु के अंतर की कोई विशेष आवश्यकता नहीं, लेकिन आम तौर पर गोद लेने वाली महिला को बच्चे से कम से कम 21 साल बड़ा होना चाहिए।
किसे अडॉप्ट किया जा सकता है?
हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट की धारा 10 उस व्यक्ति के बारे में बात करती है जिसे गोद लिया जाना है। इस धारा के अनुसार उस बच्चे को गोद लिया जाता है जो:
- बच्चा हिन्दू होना चाहिए: इस एक्ट के अनुसार कानून के अनुसार, जो बच्चा गोद लिया जाता है, वह हिंदू होना चाहिए। हालांकि, जो व्यक्ति बच्चा गोद दे रहा है, उसका धर्म कोई भी हो सकता है। अगर बच्चा छोड़ दिया गया हो या उसका धर्म स्पष्ट न हो, तो उसे गोद लेने के लिए हिंदू माना जाएगा।
- बच्चा अविवाहित होना चाहिए: आम तौर पर, जो व्यक्ति गोद लिया जाता है, वह अविवाहित होना चाहिए। लेकिन कुछ स्थानों जैसे मुंबई और पंजाब में विवाहित व्यक्तियों को भी गोद लिया जा सकता है, अगर उस स्थान के रिवाज़ ऐसा करने की अनुमति देते है। माया राम बनाम जय नारायण, 1989 मामले में सवाल यह था कि रोहतक (हरियाणा) के जाट समुदाय में एक शादीशुदा व्यक्ति, जिसके पास बेटा है, तो क्या उस शादीशुदा व्यक्ति को गोद लिया जा सकता है ? अदालत ने यह निर्णय दिया कि अगर स्थानीय रिवाज इसकी अनुमति देते हैं, तो ऐसा व्यक्ति गोद लिया जा सकता है, और उसके पास बेटा होना कोई समस्या नहीं है
- बच्चे की आयु 15 वर्ष से कम होनी चाहिए: गोद लिए जाने वाले बच्चे की आयु 15 वर्ष से कम होनी चाहिए, जब तक कि रिवाज इसके विपरीत न हो। किसी स्थान के रिवाज़ ऐसा करने की अनुमति देते है, तो 15 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति भी गोद लिया जा सकता है। धन राज बनाम सूरज बाई, 1975 मामले में अदालत ने कहा कि 15 साल तक के बच्चे को गोद लेने की उम्र सीमा इसलिये रखी गई है, ताकि बच्चा नई परिवार और वातावरण में अच्छे से घुलमिल सके और आसानी से ढल सके।
- बच्चे को केवल एक बार ही गोद लिया जा सकता है: गोद लेने की प्रक्रिया केवल एक ही बार होती है, अगर एक बार बच्चे को गोद ले लिया गया है तो उसे किसी दूसरी परिवार में नहीं दिया जा सकता। बच्चे को दूसरी बार गोद लेने की अनुमति नहीं होती।
एडॉप्शन कब वैध माना जाता है?
हिंदू कानून के अनुसार, गोद लेने के लिए कुछ कानूनी नियमों का पालन करना जरूरी होता है, ये नियम यह सुनिश्चित करते हैं कि गोद लेने की प्रक्रिया वैध हो और गोद लेने वाले माता-पिता और बच्चे की भलाई सुरक्षित रहे।
- जैविक माता-पिता की सहमति: गोद लेने के लिए बच्चे के जैविक माता-पिता या कानूनी अभिभावक (Legal guardian) की सहमति जरूरी है। अगर बच्चे के माता-पिता जीवित नहीं हैं, गुम हो गए हैं, या सहमति देने में सक्षम नहीं हैं, तो गोद लेना कानूनी अभिभावक की मंजूरी या अदालत की अनुमति से किया जा सकता है।
- गोद लेने वाले माता पिता की पात्रता: हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट के तहत केवल हिंदू व्यक्ति (जिसमें बौद्ध, जैन और सिख भी शामिल हैं) ही गोद ले सकते हैं। गोद लेने वाले माता-पिता को कानूनी रूप से गोद लेने के योग्य होना चाहिए। इसमें उम्र, वैवाहिक स्थिति और मानसिक स्थिति से संबंधित शर्तें पूरी करनी होती हैं। अगर यह शर्तें पूरी नहीं होती तो एडॉप्शन अवैध माना जायेगा।
- जैविक परिवार से रिश्ते का खत्म होना: गोद लेने के बाद, बच्चे का जैविक माता-पिता से कानूनी संबंध खत्म हो जाता है। इसका मतलब है कि बच्चे को जैविक परिवार से विरासत का अधिकार नहीं होता, लेकिन गोद लेने वाले माता-पिता से उसे पूरी विरासत का अधिकार मिल जाता है।
- एडॉप्शन की प्रक्रिया: एडॉप्शन की प्रक्रिया में एक समझौता किया जाता है, जिसमें गोद लेने वाले माता-पिता और एक गवाह को साइन करने होते है। कभी-कभी, अगर कोई परेशानी हो या असली माता-पिता मौजूद न हों, तो अदालत से मंजूरी लेनी पड़ती है। एक बार साइन हो जाने के बाद, गोद लेना कानूनी रूप से सही माना जाता है।
गोद लिए गए बच्चे के कानूनी अधिकार क्या होते हैं?
हिंदू कानून के तहत गोद लिए गए बच्चों को कई महत्वपूर्ण अधिकार मिलते हैं:
- विरासत के अधिकार: गोद लिया हुआ बच्चा, गोद लेने वाले माता-पिता से वही विरासत के अधिकार प्राप्त करता है जो जैविक बच्चों (Biological child) को मिलते हैं। यह बच्चा उस परिवार का कानूनी वारिस बन जाता है।
- परिवार की संपत्ति पर अधिकार: गोद लिय हुआ बच्चा परिवार की चल और अचल संपत्तियों (Movable and Immovable property) पर अधिकार रखता है। यदि वसीयत बनाई गई हो, तो उसे जैविक बच्चों के समान विरासत का हिस्सा मिलेगा।
- मेंटेनेंस का अधिकार: गोद लिया हुआ बच्चा, गोद लेने वाले माता-पिता से मेंटेनेंस का हकदार होता है। इसका पालन हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट के तहत किया जाता है, जिससे बच्चे को सभी बुनियादी सुविधाएं मिलती हैं।
- सामाजिक स्थिति: गोद लिया हुआ बच्चा जैविक बच्चे (Biological child) की तरह ही सामाजिक स्थिति प्राप्त करता है और कानूनी रूप से उस परिवार का सदस्य माना जाता है।
एडॉप्शन होने के बाद क्या उसे रद्द किया जा सकता है?
एक बार बच्चे को गोद लेने के बाद, उसे वापस नहीं किया जा सकता। अगर गोद लेने की प्रक्रिया क़ानूनी तौर से सभी नियमों का पालन करते हुए की गई हो, जो HAMA एक्ट की धारा 15 में यह बताया गया है तो यह स्थायी होता है।
उदाहरण के लिए, अगर गोद लिया हुआ बच्चा गोद लेने वाले माता-पिता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता, तो उसे जैविक परिवार में वापस नहीं भेजा जा सकता। इसी तरह, बच्चा भी अपनी इच्छा से उस परिवार को छोड़कर अपने जैविक परिवार में नहीं जा सकता। गोद लेने के बाद बच्चा उसी परिवार का हिस्सा बन जाता है। इसलिए गोद लेने से पहले इस फैसले को अच्छे से सोच-समझ कर लिया जाना चाहिए।
अगर किसी बच्चे के साथ गोद लेने वाले घर में गंभीर दुरुपयोग या उपेक्षा हो रही है, तो चाइल्ड प्रोटेक्टिव सर्विसेस से संपर्क किया जाता है। वह इस पर कानूनी कार्यवाई करते है और बच्चे को उस घर से निकाल कर उसे दूसरे परिवार के पास फोस्टर केयर के माध्यम से भेज देते हैं।
निष्कर्ष
अडॉप्शन का तरीका और इसके अधिकार समझना बहुत जरूरी है, खासकर उन बच्चों और परिवारों के लिए जो इसे अपनाना चाहते हैं। कानूनी प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि अडॉप्शन सही तरीके से हो और बच्चे का भला हो। यह प्रक्रिया बच्चों को एक प्यार भरे और सुरक्षित परिवार में रहने का मौका देती है। इस प्रक्रिया में दोनों, बच्चे और गोद लेने वाले माता-पिता के अधिकारों की रक्षा की जाती है। अगर परिवार इसे सही तरीके से समझे, तो अडॉप्शन एक सुखद और सुरक्षित अनुभव बन सकता है।
किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।
FAQs
1. क्या कोई विदेशी माता-पिता किसी हिन्दू बच्चे को गोद ले सकते हैं?
हां, विदेशी माता-पिता हिंदू बच्चों को गोद ले सकते हैं, लेकिन इसके लिए भारत सरकार की अनुमति और अदालत का आदेश जरूरी है। गोद लेने की प्रक्रिया भारत के कानूनी दिशा-निर्देशों के तहत होती है और इसमें इंटरनेशनल गोद लेने के नियमों और प्रक्रिया का पालन करना होता है।
2. हिंदू कानून के तहत कौन बच्चा गोद ले सकता है?
हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट के तहत, पुरुष और महिला दोनों ही बच्चा गोद ले सकते हैं। हालांकि, गोद लेने के लिए कुछ पात्रता शर्तें हैं, जैसे कि गोद लेने वाले का बच्चे से कम से कम 21 साल का अंतर होना चाहिए और मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए। अगर वह विवाहित हैं तो पत्नी की सहमति भी जरूरी है।
3. क्या गोद लिया हुआ बच्चा संपत्ति का अधिकार रखता है?
हां, गोद लिया हुआ बच्चा अपने गोद लेने वाले माता-पिता से वही संपत्ति का अधिकार रखता है जो जैविक बच्चों को मिलता है। गोद लिया हुआ बच्चा परिवार की संपत्ति का कानूनी वारिस बन जाता है।
4. क्या गोद लिया हुआ बच्चा वापस किया जा सकता है?
नहीं, एक बार गोद लेने की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद उसे रद्द या वापस नहीं किया जा सकता। गोद लिया हुआ बच्चा स्थायी रूप से गोद लेने वाले परिवार का हिस्सा बन जाता है और जैविक परिवार से सारे रिश्ते कानूनी रूप से खत्म हो जाते हैं।